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छतरपुर का शक्तत-पीठ
श्री गुरु रामकृ ष्ण परमहंस माता महाकाली के महा भक्त थे | उन्होंने मााँ शक्क्त को यंत्री तथा स्वयं
को यंत्र माना था | भावनोपननषद् के अनुसार मनुष्य शरीर को श्री चक्र और आराधना पद्धनत में
आत्म समपपण सवप श्रेष्ट तरीका है | `सौन्दयप लहरी’ में कहा गया है कक हम जो भी बोलते हैं वह मााँ
का जप है, जो भी काम करते हैं, पूजा में प्रयुक्त मुद्राएाँ हैं, चलना- मााँ की पररक्रमा, भोजन -हवन,
लेटना- साष्टांग नमस्कार तथा सारे काम ससवा माता की पूजा के और कु छ नहीं है |
हमारे पूवपजों ने जो कहा है और माना है वह ककतना महत्वपूणप है “देहो देवालय: प्रोक्तो जीवो देव:
सनातन: | त्यजेत ् अज्ञान ननमापल्यम ् सोऽहम भावेन पूजयेत ् |”
माता शक्क्त की पूजा, अनादद काल से भारतीय संस्कृ नत में असभन्न रूप से समायी हुई अद्भुत जीवन-
शैली है | देवी माहत््य में कहा गया है,
“दुगे स्मृता हरसस भीनतमशेषजन्तो:
स्वस्थै: स्मृता मनतमतीव शुभां ददासस।
दाररद्र्य दु:ख भयहाररणण का त्वदन्या
सवोपकारकरणाय सदाऽऽद्रपचचत्ता॥“
हम लोग श्रीववद्या के उपासक हैं| बड़ों से ज्ञात हुआ कक हमारे पूवपज ननयसमत रूप से वषप में चार
नवरात्रत्रयों (वसंत नवरात्रत्र – चैत्र, आषाढ़ – गुप्त, शारद, पौष – माघ) में ववचधवत ् पूजा ककया करते थे|
पर हम लोग के वल दो ही (वसंत तथा शारद) नवरात्रत्र की पूजा करते हैं |
वपछले साल (अप्रैल २०१४) ददल्ली गयी तो माता आद्या कात्यायनी देवी के दशपन का सौभाग्य मुझे
प्राप्त हुआ जो मेरे सलये ववशेष महत्ववाला था |
छतरपुर में माता कात्यायनी का शक्क्त-पीठ क्स्थत है | बड़े ववस्तृत
भू-भाग में बना है मााँ का यह मक्न्दर | शायद चुनाव का समय
होने के कारण सख्त जााँच के बाद अन्दर जाने ददया गया | अन्दर
खासी भीड़ थी | कई सीदढ़यााँ चढ़ने के बाद देवी माता आद्या
कात्यायनी देवी के दशपन कर पाते हैं | माता सोने की मढ़ी हुई है |
गु्बद का ऊपरी दहस्सा भी स्वणप ननसमपत है | सूरज की ककरणों में
उसकी चमक देखते ही बनता है | माता के पीछे की दीवार भी
चााँदी की बनी है क्जस पर की कलाकृ नत बहुत लुभावनी है |
नीचे उतर आते हैं तो माता का शयन-कक्ष है, रजत-पलंग त्रबछा हुआ है | बाजू में मेज़ है (चााँदी की)
क्जस पर थासलयों में फल (नकली) सजे हुए हैं |
पलंग के पास एक बाबाजी दशपनाचथपयों को आशीवापद देते हुए
ददखाई देते हैं | ध्यान से देखने पर ही पता चलता है कक वह
बाबाजी की मूनतप है | पर बनानेवाले ने इस खूबी से बनायी है कक
वह सजीव-सी लगती है |
पुन: सीदढ़यााँ उतरकर एक ववशाल भवन में प्रवेश करते हैं | वह
श्री रामचन्द्रजी का दरबार है |
भक्त हनुमानजी, सीता माता, ससंह आदद के दशपन होते हैं | उस
भवन में शारद नवरात्रत्र तथा वसंत नवरात्रत्र के समय रामायण के
सुन्दर काण्ड़ का पाठ होता है | शननवार को ववशेष आराधना भी
होती है | वहााँ से कफर उतरना पड़ता है | कहीं भी दशपन के सलए
ननकसलए तो यह उतरना-चढ़ना शायद बना ही रहता है |
अब इस ददव्य क्षेत्र के ननमापता बाबाजी नागपाल महाराज के बारे
में जानना अत्यंत आवश्यक है | कहते हैं कक उनका जन्म दक्षक्षण
भारत में हुआ | तब तो उनका नाम नागप्पनजी होना चादहए, जो होते-होते नागपाल में बदल गया |
यह के वल मेरा अनुमान है, नाम पर शोध-कायप तो मुझे करना नहीं है | उन्होंने जो लोक-दहत का
काम ककया है, अत्यंत महत्व रखता है | और आगे बढ़ते हैं तो दादहनी ओर सशवजी तथा दूसरी ओर
पावपतीजी हमें अभय प्रदान करते हैं |
इस स्थान को पार कर जाते हैं तो हमारे सलए बहुत बड़ा आश्चयप खड़ा ददखाई देता है – एक ववशाल
मण्डप तथा उस पर बना दक्षक्षण भारतीय शैली का गोपुर
(गोपुरम) |
लगता है कक उत्तर तथा दक्षक्षण का भव्य संगम बाबाजी
ने प्रस्तुत करवाया है | कफर सीदढ़यााँ चढ़कर अन्दर जाइए
तो लक्ष्मीजी तथा गणेशजी (ववनायक) हमें अभय प्रदान
करते हुए आसीन हैं | यह भवन बनने के पूवप बाबाजी
अपनें भक्तों के साथ वहााँ मौजूद थे और ज़ोरों की आाँधी
ने ऊपर का छप्पर उड़ा ददया | उसी क्षण उन्होंने ननश्चय
ककया कक उस स्थान पर पक्का भवन बनवाएाँगे क्जसमें
तीन-चार हज़ार लोग बैठ सकें , प्रवचन सुन सकें | उनके
भक्तों ने उनकी इच्छा पूरी की | इतने लोगों को णखलाने के सलए रसोईघर भी बना हुआ है |
इन सबके दशपन से असभभूत हो बाहर आते हैं तो सड़क के उस पार बाबाजी की समाचध बनी हुई है |
वह जगह बहुत ही बड़ी है समाचध के ससरहाने बाबाजी हम
पर कृ पा दृक्ष्ट ड़ाले सजीव-से मौजूद है | देवी-देवताओं की
मूनतपयााँ हैं | वहााँ से बाहर आते हैं तो बृहदाकार घंटा लटक
रहा है क्जसका वज़न तीन हज़ार ककलो है |
थोड़ी देर उस शांत वातावरण में बैठकर ध्यान करने का मन
करता है | लेककन मच्छरों की सेना हम पर हमला बोल देती
है मानो यह समझाते हुए कक हम आपके ही सलए हैं और
सदा आपके ही साथ हैं |
लाचार होकर ननकल पड़ते हैं, बाबा नागपालजी महाराज तथा
आद्या कात्यायनी मााँ को जी में भरकर| बाबाजी की धमपशाला है, ववद्यालय है, कई ननधपन-असहाय
पररवारों को सहायता पहुाँचाने का भी प्रबंध है | जय हो उन बाबाजी महाराज की, माता आद्या
कात्यायनी देवी की |
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छतरपुर का शक्ति पीठ

  • 1. छतरपुर का शक्तत-पीठ श्री गुरु रामकृ ष्ण परमहंस माता महाकाली के महा भक्त थे | उन्होंने मााँ शक्क्त को यंत्री तथा स्वयं को यंत्र माना था | भावनोपननषद् के अनुसार मनुष्य शरीर को श्री चक्र और आराधना पद्धनत में आत्म समपपण सवप श्रेष्ट तरीका है | `सौन्दयप लहरी’ में कहा गया है कक हम जो भी बोलते हैं वह मााँ का जप है, जो भी काम करते हैं, पूजा में प्रयुक्त मुद्राएाँ हैं, चलना- मााँ की पररक्रमा, भोजन -हवन, लेटना- साष्टांग नमस्कार तथा सारे काम ससवा माता की पूजा के और कु छ नहीं है | हमारे पूवपजों ने जो कहा है और माना है वह ककतना महत्वपूणप है “देहो देवालय: प्रोक्तो जीवो देव: सनातन: | त्यजेत ् अज्ञान ननमापल्यम ् सोऽहम भावेन पूजयेत ् |” माता शक्क्त की पूजा, अनादद काल से भारतीय संस्कृ नत में असभन्न रूप से समायी हुई अद्भुत जीवन- शैली है | देवी माहत््य में कहा गया है, “दुगे स्मृता हरसस भीनतमशेषजन्तो: स्वस्थै: स्मृता मनतमतीव शुभां ददासस। दाररद्र्य दु:ख भयहाररणण का त्वदन्या सवोपकारकरणाय सदाऽऽद्रपचचत्ता॥“ हम लोग श्रीववद्या के उपासक हैं| बड़ों से ज्ञात हुआ कक हमारे पूवपज ननयसमत रूप से वषप में चार नवरात्रत्रयों (वसंत नवरात्रत्र – चैत्र, आषाढ़ – गुप्त, शारद, पौष – माघ) में ववचधवत ् पूजा ककया करते थे| पर हम लोग के वल दो ही (वसंत तथा शारद) नवरात्रत्र की पूजा करते हैं | वपछले साल (अप्रैल २०१४) ददल्ली गयी तो माता आद्या कात्यायनी देवी के दशपन का सौभाग्य मुझे प्राप्त हुआ जो मेरे सलये ववशेष महत्ववाला था | छतरपुर में माता कात्यायनी का शक्क्त-पीठ क्स्थत है | बड़े ववस्तृत भू-भाग में बना है मााँ का यह मक्न्दर | शायद चुनाव का समय होने के कारण सख्त जााँच के बाद अन्दर जाने ददया गया | अन्दर खासी भीड़ थी | कई सीदढ़यााँ चढ़ने के बाद देवी माता आद्या कात्यायनी देवी के दशपन कर पाते हैं | माता सोने की मढ़ी हुई है | गु्बद का ऊपरी दहस्सा भी स्वणप ननसमपत है | सूरज की ककरणों में उसकी चमक देखते ही बनता है | माता के पीछे की दीवार भी चााँदी की बनी है क्जस पर की कलाकृ नत बहुत लुभावनी है |
  • 2. नीचे उतर आते हैं तो माता का शयन-कक्ष है, रजत-पलंग त्रबछा हुआ है | बाजू में मेज़ है (चााँदी की) क्जस पर थासलयों में फल (नकली) सजे हुए हैं | पलंग के पास एक बाबाजी दशपनाचथपयों को आशीवापद देते हुए ददखाई देते हैं | ध्यान से देखने पर ही पता चलता है कक वह बाबाजी की मूनतप है | पर बनानेवाले ने इस खूबी से बनायी है कक वह सजीव-सी लगती है | पुन: सीदढ़यााँ उतरकर एक ववशाल भवन में प्रवेश करते हैं | वह श्री रामचन्द्रजी का दरबार है | भक्त हनुमानजी, सीता माता, ससंह आदद के दशपन होते हैं | उस भवन में शारद नवरात्रत्र तथा वसंत नवरात्रत्र के समय रामायण के सुन्दर काण्ड़ का पाठ होता है | शननवार को ववशेष आराधना भी होती है | वहााँ से कफर उतरना पड़ता है | कहीं भी दशपन के सलए ननकसलए तो यह उतरना-चढ़ना शायद बना ही रहता है | अब इस ददव्य क्षेत्र के ननमापता बाबाजी नागपाल महाराज के बारे में जानना अत्यंत आवश्यक है | कहते हैं कक उनका जन्म दक्षक्षण भारत में हुआ | तब तो उनका नाम नागप्पनजी होना चादहए, जो होते-होते नागपाल में बदल गया | यह के वल मेरा अनुमान है, नाम पर शोध-कायप तो मुझे करना नहीं है | उन्होंने जो लोक-दहत का काम ककया है, अत्यंत महत्व रखता है | और आगे बढ़ते हैं तो दादहनी ओर सशवजी तथा दूसरी ओर पावपतीजी हमें अभय प्रदान करते हैं | इस स्थान को पार कर जाते हैं तो हमारे सलए बहुत बड़ा आश्चयप खड़ा ददखाई देता है – एक ववशाल मण्डप तथा उस पर बना दक्षक्षण भारतीय शैली का गोपुर (गोपुरम) | लगता है कक उत्तर तथा दक्षक्षण का भव्य संगम बाबाजी ने प्रस्तुत करवाया है | कफर सीदढ़यााँ चढ़कर अन्दर जाइए तो लक्ष्मीजी तथा गणेशजी (ववनायक) हमें अभय प्रदान करते हुए आसीन हैं | यह भवन बनने के पूवप बाबाजी अपनें भक्तों के साथ वहााँ मौजूद थे और ज़ोरों की आाँधी ने ऊपर का छप्पर उड़ा ददया | उसी क्षण उन्होंने ननश्चय ककया कक उस स्थान पर पक्का भवन बनवाएाँगे क्जसमें तीन-चार हज़ार लोग बैठ सकें , प्रवचन सुन सकें | उनके
  • 3. भक्तों ने उनकी इच्छा पूरी की | इतने लोगों को णखलाने के सलए रसोईघर भी बना हुआ है | इन सबके दशपन से असभभूत हो बाहर आते हैं तो सड़क के उस पार बाबाजी की समाचध बनी हुई है | वह जगह बहुत ही बड़ी है समाचध के ससरहाने बाबाजी हम पर कृ पा दृक्ष्ट ड़ाले सजीव-से मौजूद है | देवी-देवताओं की मूनतपयााँ हैं | वहााँ से बाहर आते हैं तो बृहदाकार घंटा लटक रहा है क्जसका वज़न तीन हज़ार ककलो है | थोड़ी देर उस शांत वातावरण में बैठकर ध्यान करने का मन करता है | लेककन मच्छरों की सेना हम पर हमला बोल देती है मानो यह समझाते हुए कक हम आपके ही सलए हैं और सदा आपके ही साथ हैं | लाचार होकर ननकल पड़ते हैं, बाबा नागपालजी महाराज तथा आद्या कात्यायनी मााँ को जी में भरकर| बाबाजी की धमपशाला है, ववद्यालय है, कई ननधपन-असहाय पररवारों को सहायता पहुाँचाने का भी प्रबंध है | जय हो उन बाबाजी महाराज की, माता आद्या कात्यायनी देवी की | X---------X---------X