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वैसे मैंने बचपन से ही अपने घर के पपछवाड़े के पेड़ों पर तरह-तरह के पक्षियों को वास करते देखा है |
पीछे की दीवारों में तोता, मैना आदद चचड़ड़यों के लिये ताक (आिा) जैसा छेद छोड़ा करते थे | वे पिी
घोंसिा नहीीं बना सकते | उन ताकों में ततनके जुटाकर अपना पररवार बसाते | भोर में ही उनकी मधुर
आवाज़ गूँजा करती थी | कु छ तो कोटरों में तनवास करते और आपस में झगड़ते, चीखते-चचल्िाते, फिर
पता नहीीं कै से हेि-मेि भी बढ़ा िेते | घर के िोग बचा हुआ खाना और कु छ अनाज आूँगन में उनके
लिए बबखेरते | गौरैये तो िु दक-िु दक कर घर भर में पवचरण करते थे | यह रही पुरानी बात |
अभी पन्द्रह साि पहिे की बात है यह | हमारी माताजी पहिी रोटी कौओीं को खखिाती थीीं | िु िके के
टुकडों को िें कती थीीं और कौए उड़ते-उड़ते चोंच से पकड़ िेते | हमें बहुत आश्चयय होता | ठीक नौ बजे वे
बाज के नीम के पेड़ पर उपस्थथत रहकर काूँव-काूँव करके याद ददिाते थे | माूँ जब छज्जे मेँ खड़ी होतीीं
तब बाज में बैठकर उनका आूँचि चोंच से पकड़कर खीींचते | दसरी आश्चययजनक बात तो यह है फक कु छ
चगिहररयाूँ उनके हाथ से रोटी के टुकड़े िे जातीीं | जब तक वे उन्द्हें न खखिातीीं तब तक छ्जज्जे में दीवार
पर चढ़तीीं-उतरतीीं, दोनों हाथ उठाकर उचक-उचक कर सकय स करना शुरू कर देतीीं | ये सब अब यादें
बनकर रह गईं | न अब माताजी रहीीं और न ही उन जैसा उन जीवों से प्यार से बात करने वािा कोई
लमिा |
अब हमारे अपाटयमेण्ट (चेन्द्नै) में दोनों ओर खुिी जगह है और थनानघर के
गह ह - ह , , ग | -
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