1. रेवा (नर्मदा) - तट पर र्हीना भर
- श्रीमती शान्ता शमाा
नमस्ते / प्रणाम !
करीब करीब पचास या बावन वर्म पूवम की बात है | एक बार चौर्ासे
(आर्ाढ़ से कुआर तक के बाररश के र्हीने) के सर्य र्ेरे पपताजी
र्ेरी र्ाताजी और र्ुझे साथ लेकर नर्मदा – दशमन और स्नान के ललए
होशंगाबाद गए | आज के ज़र्ाने की बात र्ुझे र्ालूर् नहीं, पर उस
ज़र्ाने के अनेकानेक धर्मननष्ट भक्त नर्मदा-पररक्रर्ा करते थे | रास्ते
के शहरों र्ें ठहर जाते और चातुर र्ास-व्रत पूरा कर आगे बढ़ते | हर्
लोग होशंगाबाद पहूूँचे तो सन्ध्या डूब रही थी | तब से घटी सारी
घटनाएूँ आश्चयमजनक अपवस्र्रणीय और अद्भुत थीं |
स्टेशन पर की एक चाय की दूकान से चाय पीकर जगन्धनाथजी के
र्ंददर जाकर एक पखवारे (पन्धरह ददन) तक ठहरनेवाले थे | जब उस
दुकानदार को यह पता चला तो उन्धहोंने एक घोड़ागाड़ी बुलवाकर हर्ारे
साथ चलकर र्ंददर पहुूँचाया | गाड़ी का ककराया तक नहीं ललया |
जगन्धनाथ र्ंददर से एक सेठजी बाहर ननकले ( उनका नार् अब याद
नहीं आ रहा है ) और बोले के आप लोग सत्यनारायणजी के र्ंददर र्ें
ठहररए |
2. चायवाले सज्जन हर्ें उस र्ंददर र्ें उतारकर गए | हर् लोगों ने
भगवान सत्यनारायण के दशमन ककए | ओदी ज़र्ीनवाले कर्रे र्ें
ककसी तरह रात काटी | दूसरे ददन प्रात:काल दरवाज़ा खोला तो देखते
हैं कक चाय के फ़्लास्क के साथ दुकानदार खड़े हैं | पपताजी से उन्धहोंने
कहा कक पपछली रात जो चाय पपलाई थी वह अच्छी नहीं थी, इसललए
अच्छी चाय ले आए हैं | उनके इस सत्कार से पपताजी की आूँखें नर्
हो गईं | वे हर्ें चाय पपलाकर दार् लेने से इन्धकार कर चले गए |
हर् लोग स्नान के ललए ननकलने ही वाले थे कक जगन्धनाथजी र्ें ठहरे
हुए सेठजी आये और कहने लगे कक चललए आपके ललए र्ंददर र्ें
रहने का प्रबंध हो गया है | इतना ही नहीं इतने बड़े व्यक्क्त अपने
लसर और कंधों पर हर्ारा सार्ान उठाकर हर्ें जगन्धनाथजी के र्ंददर
ले गए, वहाूँ हर्ारे ललए बदढ़या कर्रा लर्ला | कई लोग उस र्ंददर र्ें
ठहरे हुए थे | र्ंददर के ऊपरी तल्ले र्ें पुजारीजी का ननवास था |
उन्धहोंने हर्ारा ऐसा सादर स्वागत ककया क्जसे हर् क्ज़न्धदगी भर भूल
नहीं सकते |
उसी र्ंददर र्ें दूसरी ओर एक बाबाजी अपने पररवार के साथ ठहरे हुए
थे | उनका नार् (कोई उपा्याय) ठीक से याद नहीं आ रहा है | वे
बेलगाूँव या जलगाूँव के थे | हर साल चौर्ासे र्ें उस र्ंददर र्ें ठहरते
थे | प्रनतददन सुबह-शार् नर्मदाजी की पूजा और आरती करते थे |
भक्त लोग एक-एक नाररयल लाकर र्ाताजी की तस्वीर के पास रख
3. जाते थे | दो-तीन ददन बाद बाबाजी नाररयल फोड़्ते तो उसके अन्धदर
से छपा हुआ कागज़ का टुकडा ननकलता क्जसे र्ाूँ की कृपा का संदेश
र्ानकर भक्तजन ले जाते | उन बाबाजी को लोग नाररयल बाबा
कहते थे |
वहाूँ के ननवासी कन्धयाओं को नर्मदा र्ाता र्ानकर उनके पाूँव छूकर
पूजा करते थे | र्ुझे तो हर ददन र्ाता की तस्वीर के बगल र्ें बैठने
का सौभाग्य लर्लता था और र्ेरी भी आरती होती थी | दूसरा कारण
यह था कक र्ैं धड़ाधड़ बोलती और कुछ सूक्तों का पाठ करती थी |
प्रनतददन शार् को वहाूँ के पक्डडतजी का श्रीर्द् भागवत, रार्ायण
आदद पर प्रवचन होता था | दोपहर के भोजनोपरान्धत सारे सज्जन
आरार् करते हुए धालर्मक पवर्यों पर संभार्ण भी करते थे | तब र्ेरे
पपताजी से अनुरोध ककया कक रेवा-खडड़ का प्रवचन (स्कन्धद पुराण का
अंश) करें | कथा-वाचन और प्रवचन र्ें पूरे दो पखवारे का सर्य लग
गया |
नर्मदाजी उस सर्य बाढ़ के कारण सर्ुर सर्ान लगती थी | घाट पर
बैठकर प्रवाह देखना बहुत अच्छा लगता था | बाईं ओर बहुत बड़ा
र्ौललसरी का पेड़ था | नीचे उसके फ़ूल बबखरे होते थे | उनकी खुशबू
वातावरण को र्हकाती थी | स्नान करते सर्य डुबकी लगाते ही
कछुए लर्त्रता जताते हुए पीठ से टकराकर लसर उठाकर शान से तैरते
हुए गुज़रते थे | उस सर्य ड़र लर्श्रश्रत आश्चयम और आनन्धद का
4. अनुभव होता था | होशंगाबाद के ननवासी अपनी नर्मदा र्ाता को
प्रदूपर्त नहीं होने देते और बाढ़ का र्टर्ैला जल बडी श्रद्धा से
बरतनों र्ें भरकर ले जाते थे | इस भक्क्त भाव ने हर् सबको रपवत
ही नहीं प्रभापवत भी कर ददया था | नर्मदाजी के स्नान घाट पर
र्हकते फ़ूलोंवाला र्ौललसरी का पेड़ र्ेरी याद से कभी हटेगा नहीं |
जब हर् लोग वहाूँ से ननकलने लगे तो बड़ी भीड़ जर्ा हो गई | सब
हर्ारे संग स्टेशन तक आए और गाड़ी र्ें बबठाकर आदर सम्र्ान
सदहत छलकते आूँसुओं के साथ हर्ें पवदा की | ये जादू-सी घटनाएूँ
र्ेरे स्र्नृत-पटल स ेकभी उतर नहीं सकती ं| र् ैंसोचती हूूँ कक र्ाता
नर्मदाजी की कृपा सचर्ुच असीर् है और वहाूँ के ननवालसयों की
सज्जनता भी |