2. योग और स्वास््य
स्वास््य का मतलब क्या है ?
यह समजने के ललए हमे स्वास््य यह शब्द का अर्थ समझना होगा |
स्व - याने हम खुद | (स्वयं)
स्र् - याने लस्र्र होना |
याने स्वयं में लस्र्र होना |
क्या हम लस्र्र है ?
3. योग और स्वास््य
WHO द्वारा की गई व्याख्या –
स्वास््य के वल रोगोंका अभाव नहीं. बलकक शारीररक, मानलसक,
आध्यालममक और सामालजक सुलस्र्लत याने स्वास््य |
4. योग और स्वास््य
अब सवाल यह है की, क्या हम स्वस्थ है ?
हमारा स्वास््य ठीक क्यों नहीं है ?
इसका कारण है- हमारी आधुननक जीवनशैली और भागदौड़ भरी नजिंदगी|
इसका पररणाम - कई मनोकानयक रोग : निप्रेशन, िायनबटीस, ब्लि प्रेशर इन रोगोंका
सामना करना पड़ता है | साथ - साथ शारीररक दुबबलता, शरीर का लचीलापन कम होता है|
थकान मेहसुस होती है |
इसके कारण हमने स्वयिं की लस्र्रता खो दी है |
अगर हमें इनसे बचना है, तो उसके नलए उत्तम मागब है योग|
5. योग और स्वास््य
योग अनुसार स्वास््य के दो मुख्य घटक है |
स्वास््य
१) शारीररक २) मानलसक
आहार लवहार लवश्ांलत लवकार लवचार लववेक
6. योग और स्वास््य
शारीररक
आहार लवहार लवश्ांलत
आहार - हमारे शरीर का स्वास््य बहेतर रखने के ललए आहार की भूलमका
सबसे महमव पूणथ है |अलिक मात्रा और अयोग्य आहार से हमारा
स्वास््य लबगड़ता है |
इसललए हमें सालमवक, सीलमत और संतुललत आहार लेना चालहए |
7. योग और स्वास््य
लवहार - लवहार का मतलब है, शारीररक स्वास््य और स्वास््य संविथन के
उद्देश्य से की गई शारीररक लियाए/ हलन - चलन | लेलकन इस हलन
चलन में अगर आनंद प्रालि का भी उद्देश्य हो तो इसे लवहार कहते है|
लवश्ांलत - लवश्ांलत में लनद्रा का समावेश होता है | लनंद्रा से हमारे शरीर और
मन को लवश्ांलत लमलती है | हम अपने जीवन में लजस प्रमाण में क्ट,
श्म करते है | मुसीबतों का सामना करते है , उसी प्रमाण में हमें
लवश्ांलत लेनी चालहए |
8. योग और स्वास््य
मानलसक
लवकार लवचार लववेक
लवकार - लवकार याने शारीररक और मानलसक स्तरों का रोग | यहााँलवकार
का अर्थ है - मनोकालयक व्यािी या मनोलवकार | इसके कारण है -
िोि, द्वेश, ममसर, बुरे लवचार, अलत कामवासना इनके अलतरेक से
हमारा मानलसक स्वास््य पूरी तरह लबगड़ता हैऔर हम मनोकालयक
व्यलियोसे ग्रस्त हो जाते है|
9. योग और स्वास््य
लवचार - अलत लवचार, अयोग्य लवचार, बुरे लवचार , गलत लवचार इनसे भी
हमारा मानलसक स्वास््य लबगड़ता है | गर, हम अपने जीवनमें
सकाराममक द्रल्टकोन अपनाएंगे तो हम अनेक लवकारो सेदूर होकर
लववेक की और जा सकते है|
लववेक - संयम, संतुलन, बंिन, लनयंत्रण याने लववेक, लेलकन लववेकशून्य
वतथन हमारा मानलसक और सामालजक स्वास््य लबगाड़ता है |
इसललए हमे समाजमे रहते हुए और दैलनक जीवनमे लववेक बुलि
अपनानी चालहए |
10. योग और स्वास््य
योग द्वारा उत्तम स्वास््य
योग में की जानेवाली लियाए
आसन - आसनों द्वारा हमारा शारीररक स्वास््य सुिरता है| शरीर में
लचीलापन आता है | मांसपेलशयां मजबूत होती है | और शरीर में लस्र्रता
प्राि होती है|
प्राणायाम - प्राणायाम से हम श्वसन द्वारा मनोलनयंत्रण प्राि करते है लजसके
कारण हमे मानलसक स्वास््य और मानलसक संतुलन प्राि होता है|
शुलिलिया - इन लियाओ ंसे हमारे शरीर कीआंतररक शुलि होती है| और
हमारा आंतररक स्वास््य सुिरता है|
11. योग और स्वास््य
त्राटक - इस लियासे हमारे मनकी चंचलता कम होकर हमारी एकाग्रता बढ़ती है|
मनके लवचार कम होते है| बुलि का लवकास होता है| स्मरणशलति बढ़ती है|
लशलर्लीकरण - (शवासन) इससे हमारे शरीर और मनका स्वास््य बना रहता है | हम
कई मनोकालयक रोगोसे मुलति पा सकते है | यही एक कम अंतर का रास्ता है जो हमे
तनावयुति जीवनसे- तनावमुति जीवन की और ले जाता है|
मुद्रा और बंि - इन लियाओ से हमारी अन्तःस्त्रावी (इंडोिाइन ग्लेंड्स ) ग्रंलर्यों पर
उत्तम कायथ होता है| इन ग्रंलर्यों का गहरा संबंि हमारे मानलसक स्वास््य से होता है |
इनके लनरंतर अभ्यास से हम, हमारे शरीर में जो सुिशलति यााँ है, उन्हें जागृत कर सकते
है | और सार् - सार् आध्यामम की और बढ़ सकते है |
12. योग और स्वास््य
आयुवेद
आयुवेद मे भी उत्तम स्वास््य के लवषय में यही कहा गया है की,
समदोषा: समालग्नश्च समिातु मललिया: |
प्रसन्नाममेंलद्रयामन: स्वस्र् इमयलभलियते ||
अर्ाथत - शारीररक स्वास््य के सार्-सार् हमारे आममा, इलन्द्रय और मन
इनकी प्रसन्नता ही उत्तम स्वास््य है |
13. सारांश
हमे सुखमय जीवन जीने की ललए उत्तम स्वास््य की आवश्यकता होती है |
यह स्वास्स््य हम योग द्वारा प्राि कर सकते है |
योगमे आहार को बहुत महमव लदया गया है | इस लवषय में बहुत कहा भी गया
है | सालमवक, लसलमत और संतुललत आहार से हमे न की लसर्थ शारीररक
स्वास््य प्राि होता है, बलकक इसका गहरा प्रभाव मानलसक स्वास््य और
हमारी भावनाओ ंपर भी होता है |
इसललए कहा गया है “यर्ा अन्न तर्ा मन:”
14. सारांश
आसन, प्राणायाम और अन्य लियाए करते समय जब मन इन लियाओ के
सार् जुड़ जाता है तब हमे आनंद प्राि होता है इसे ही हम लवहार कहते है |
शवासन से उत्तम प्रकार लशलर्लीकरण होकर लवश्ांलत प्राि होती है | योग
सािना और समसंग द्वारा लवकारों का प्रमाण कम होकर, हमारे लवचार उलचत,
सही और सकराममक होने लगते है |
“जैसे लवचार वैसाही आचार” याने इस तरह से हमारे आचार और स्वभाव में
भी पररवतथन होता है | और हम लववेकशील बनते है |
15. सारांश
इसतरह लनयलमत, लनरंतर और उलचत योगसािना करने से हमे शारीररक एवं
मानलसक स्वास््य की प्रालि होती है| और हमारा स्वास््य संविथन होता है|
हमे जीवनमे सर्लता और संतुल्ट प्राि होती है |
योग द्वारा प्राि लकया हुआ स्वास््य ही मानव की संपलत है, और इस संपलत
का नाम है “संतोष” |
|| हरी ॐ तमसत् ||