4. कममयोग
इिमेंकोई िंशय नहीं की कोई भी मनुष्य सकिी भी वि क्षणभर िुद्दा
कममकरते रहता है । योंसक वह प्रकृसत के गुणों िे पराधीन होने के
कारण कममकरने का सहस्िा िन जाता है।
योगः कममिु कौशलम् ।
5. कममयोग
कमम का कम िे कम िंचय करके जन्म मरण के फे रे िे िहार
सनकलना और परमात्मा मेंसवलीन होने का प्रयाि याने योग और
परमात्मा मेंसवलीन होना भी योग . . .
योग ही िाधन हैऔर योग ही िाध्य ।
6. कममयोग
कममके मागम में–
स्वधममिमज के करना
िमरि हो के करना
कुशलता िेकममकरना – शरीर और सचत्त
िमत्व िुसद्द िेकरना और कममफल का त्याग करना
7. कममयोग
कममयोग के टप्पे (steps)
दृविकोण विशाल हो जाता है
योग के आधीन वकये गये कमम सेसमाज का कल्याण होता है
अहंकार का धीरे धीरे नाश होता है
वित्तशुवि होती है
ब्रह्मज्ञान की प्रावि होती है
Over a period of time विया वकये बगैर कमम आपोअप होता है
होने का अहसास होता है|
9. भवियोग
भसि का मतलि है– ईश्वरके असस्तत्व की िवमत्र और ितत जाणीव
और उिके प्रसत आत्मिमपमण करना ।
पंसित श्रीपद शास्त्री सकं जविेकर –
अंतर मेंप्रेम, सवचारोंमेंपसवत्रता और आचरण मेंशुद्दता जो भसि िे
सनमामण होती हैवह भसि प्रत्येक मनुष्य की प्रचंि शसि है।
10. भवियोग
नारदमुसन की भसि की पररभाषा –
नारदस्त तदसपमता सिला चारता ।
तद सवस्मरणेपरमव्या कुलतेसत ॥ ना. भ. िूत्र १९
अपने िारे आचार सवचार प्रभु को अपमण करो और जि प्रभु का
सवस्मरण हो ति अत्यंत व्याकुल हो जाना यह भगवंत की परम भसि
15. ज्ञानयोग
मैंकौन ह ूँ।
स्थल और काल की मयामदा नहीं ऐिेशाश्वत ित्य या है, ऐिेतत्त्वज्ञान
के प्रश्न कर के उिके उत्तर, सचंतन, मनन द्वारा ढूूँढना ।
इिके सलयेिाधक गुरु ग्रंथ और स्वाध्याय का आधार लेतेहै।
अंसतम फल – ब्रह्मज्ञान की प्रासि ।
16. िमथम के मुतासिक -
ज्ञानयोग
एक ज्ञानाचेलक्षण । ज्ञान म्हसणजेआत्मज्ञान ।
पहावेआपणासि आपण । या नावे ज्ञान ॥
योग िाधना िेिुद के शुद्द स्वरूप का पररचय और आत्मशसि की
पहचान मतलि के स्वरूपज्ञान या तो आत्मज्ञान की प्रासि ।
17. Different path of yog selected to achieve the
eternal has same requirement and result
सनरंतर और दीर्मकाल पयमन्त िाधना
सचत्तशुसद्द
सनरंतर आसण दीर्मकाळ िाधना
ज्ञानप्रासि
19. राजयोग
पतंजसल के अĶांग योग को ही राजयोग कहते है।
पतंजसल के मुजि –
योगसित्तवसृत्तसनरोधः । प.यो.ि.ू१.२ ॥
20. राजयोग
राजयोग – िसहरंग योग िाधना ।
यम: िमाज मेंरहने के िाथ पालने के सनयम ।
सनयम: व्यसि को अपने जीवन मेंपालने के सनयम ।
आिन: शारीररक स्तर पेजो सस्थर और िुिमय है।
प्राणायम: श्विन सनयंत्रण िेमनो सनयंत्रण; प्राणशसि का अनुभव ।
21. राजयोग
राजयोग – अंतरंग िाधना
प्रत्याहार: िवम इसन्ियों को िाहर के सवषय िेअंतरंग तरफ मोड़ना |
धारणा: सचत्त को एक सवषय पर सस्थर करने का प्रयत्न |
ध्यान: धारणा के सवषय मेंलंिे िमय तक सचत्त एकाग्र रिना
िमासध: ज्ञान प्रासि ; कै वल्य प्रासि
22. योग का प्रवाि :
राजयोग
स्थूल िेिूक्ष्म तक और
िूक्ष्म िेअनंत की तरफ
24. अंतरंग योगसाधना की पूिम तैयारी
महत्त्ि के अंग -
वलवित
िाविक (िैिरी) - उच्िार स्थान –
मुख; मध्यमा (कंठ); पश्यन्ति (हृदय); परा (नाभि)
मानवसक
उपांशु जप
अजपाजप
जप योग
25. िमथम के मुतासिक,
जप योग
श्वािािरोिर र्ेता िो | िोसिता अहम |
ऐिेचाले| िोिहम् िोिहम् ||
कोई भी पद्दसत (method) िेकरे, अल्प िमय के सलये करे , पर
िमरि हो के करे
27. मंत्र योग
मंत्र योग
मंत्र के द्वारा मन को अंदर की तरफ मोड़ना
शब्दप्रधान या तो ध्वसन प्रधान मंत्र
ध्वसनप्रधान मंत्र – कं पन पैदा करना –स लं, ह्रीं, etc
शब्दप्रधान – ॐ नमः सशवाय:
ध्वसन िे ज्यादा शब्द और शब्द िे ज्यादा भाव
29. हठ योग
ह – िूयम वाचक, ठ – चंि वाचक
िूयम और चंि, येदोनों जीवन के द्वन्द्व का प्रसतक है
िूयम नािी और चंि नािी, येदोनों का िंतुलन पाकर िुषुम्ना नािी को
जागृत करना है
हठयोग की िाधना द्वारा येद्वन्द्व पेसनयंत्रण पाना है
योग की िाधना िेसशव और शसि का समलन
राजयोग मेंप्रगसत होती है
31. नाद योग / लय योग
नाद िेअनुिंधान
नादयोग की िूक्ष्म ध्वसन लहेरों िे जुड़ना
अवणमनीय आनंद की अनुभूसत
मन और मज्जािंस्था पर िुिमय सवश्रांसत का अनुभव
मत्रंयोग और हठयोग द्वारा कंुिसलनी शसि जागतृहोती ह,ैउिकेशरण मेंजाना
और शसि िेजड़ुना ति सचत्तवसृत्त का लय होता है– उिेलय योग कहतेह|ै
नाद एक अनाहत नाद का प्रकार और सचत्त का लय
मन शांत और सनसवमचार
िंकल्प लेने की सस्थसत का सनमामण
िाधना में प्रगसत का अहिाि