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फु फ्फुस कक र्ट रो( Lung Cancer)
फु फ्फुस या फ ेफड़� का क �सर एक आ�ाम, �ापक, कठोर, कु �टल और घातक रोग है िजसम� फे फड़े के ऊतक� क�
अिनयंि�त संवृि� होती है।
90%-95% फे फड़े के क�सर छोटी और बड़ी �ास निलका�
(bronchi and
bronchioles) के इिपथीिलयल कोिशका� से उत्प� होते ह�। इसीिलए इसे ��कोजेिनक कारिसनोमा भी कहते ह�।
फु फ्फुसावरण(प्लूर) से उत्प� होने वाले क �सर को मीजोथािलयोमा कहते ह�। फ ेफड़े के क �सर का स्थलान्तर ब�त ते
होता है यािन यह ब�त जल्दी फैलता है। हालां�क यह शरीर के �कसी भी अंग म� फैल सकता है। यह ब�त जानलेवा
रोग माना जाता है। इसका उपचार भी ब�त मुिश्कल है।
फे फड़� क� संरचना (फे फड़� क� संरचना डॉ. मनोहर भंडारी के आलेख �ाणायाम का वैज्ञािनक रहस्य से
साभार ली गई)
हमारा �सन तं� नािसका से शु� होकर फे फड़� म� िस्थ
वायुकोष� तक फै ला �आ है। फे फड़� आकार म� शंकु क� तरह
ऊपर से सँकरे और नीचे से चौड़े होते ह�। छाती के दो ितहाई
िहस्स म� समाए फे फड़े स्पं क� तरह लचीले होते ह�। नाक से ली
गई साँस स्व यं� और �सनी (फै �रक्) से होते �ए �ास नली
(�ै�कया) म� प�ँचती है। गदर् के नीचे छाती म� यह पहले दाएँबाएँ दो भाग� म� िवभािजत होती है और पेड़ क� शाखा��शाखा� क� तरह स�ह-अठारह बार िवभािजत होकर �सन
वृक बनाती है। यहाँ तक का �सन वृक वायु संवाहक क्ष
(एयर कं ड�क्ट झोन) कहलाता है। इसक� अंितम शाखा जो �क
ट�मनल �ां�कओल कहलाती है, वह भी 5-6 बार िवभािजत
होकर उसक� अंितम शाखा पं�ह से बीस वायुकोष� म� खुलती
है। वायुकोष अँगूर के गुच्छ क� तरह �दखाई देते ह�। ट�मनल
�ां�कओल से वायुकोष� तक का िहस्स �सन ��या को संप�
करने म� अपनी मुख् भूिमका िनभाता है। इसे �सन क्ष
(रेिस्परेटर झोन) कहते ह�।
�ास नली के इस वृक क� सभी शाखा�-�शाखा� के साथ र� लाने और ले जाने वाली र� वािहिनयाँ भी होती ह�।
साँस लेने पर फू लने और छोड़ने पर िपचकने वाले इन वायुकोष� और घेरे रखनेवाली सू�म र� निलका� (कै िपलरीज)
के बीच इतने पतले आवरण होते ह� �क ऑक्सीज और काबर् डाई ऑक्साइ का लेन-देन आसानी से और पलक झपकते
हो जाता है। पल्मोनर धमनी �दय से अशु� र� फे फड़े तक लाती है और वायुकोष� म� शु� �आ र� छोटी िशरा� से
पल्मोरनर िशरा के माध्य से पुन �दय तक प�ँच जाता है।
�ापकता
फे फड़े का क�सर �ी और पु�ष दोन� म� मृत्य का सबसे बड़ा कारण है। सन् 2010 म� अमे�रका म� इस क�सर के 222,520
नये रोगी िमले और 157,300 रोिगय� क� मृत्य �ई। नेशनल क�सर इिन्स्ट� के अनुसार हर 14 �ी और पु�ष म� से एक
को जीवन म� कभी न कभी फे फड़े का क�सर होता है।
फे फड़े का क�सर �ायः वृ�ावस्थ का रोग है। लगभग 70% रोगी िनदान के समय 65 वषर से बड़े होते ह�, िसफर 3% रोगी
45 वषर से छोटे होते ह�। 1930 से पहले यह रोग ब�त कम होता था। ले�कन जैसे जैसे धू�दिण्डक धू�पान का �चलन
बढ़ता गया, इस रोग क� �ापकता म� नाटक�य वृि� होती चली गई। इन �दन� कई देश� म� धू�पान िनषेध सम्बन्
स्वास्-िशक्, �चार और सावर्जिन स्थान पर धू�पान िनषेध के कड़े िनयम� के कारण इस क�सर क� �ापकता म�
िगरावट आई है। �फर भी फे फड़े का क�सर पूरे िव� म� �ी और पु�ष दोन� म� मृत्य का सबसे बड़ा कारण बना �आ है।
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कारण
धू�पान
िसगरेट धू�पान फे फड़े के क�सर का सबसे बड़ा कारण है। यह देखा गया है �क इस क�सर के 90% रोगी िनि�त तौर पर
तम्बकू सेवन करते ह�। फे फड़े के क�सर का जोिखम इस बात पर िनभर् करता है �क वह �दन भर म� �कतनी िसगरेट पीता
है और �कतने समय से िसगरेट पी रहा है। इससे िच�कत्स रोगी के धू�पान इितहास के पैक इयर क� गणना करता ह�।
मान लीिजये कोई �ि� 10 वषर से िसगरेट के 2 पैकेट रोज पी रहा है तो उसका धू�पान इितहास 20 पैक-इयर �आ।
�ि� म� 10 पैक-इयर का धू�पान इितहास भी फे फड़े के क�सर का जोिखम रहता है, ले�कन 30 पैक-इयर म� फे फड़े के
क�सर का जोिखम ब�त ही ज्याद होता है। 2 पैकेट से ज्याद िसरगरेट पीने वाले 14% लोग फे फड़े के क�सर से मरते ह�।
बीड़ी, पाइप और िसगार पीने वाले लोग� को फे फड़े के क�सर का जोिखम धू�पान नह� करने वाले �ि� से पांच गुना
अिधक रहता है। जब�क िसगरेट पीने वाल� म� यह जोिखम 25 गुना अिधक होता है।
तम्बाक म� िनकोटीन समेत 400 क�सरकारी पदाथर होते ह�, िजनम� �मुख ह� नाइ�ासेमीन् और पॉलीिसिस्ट ऐरोमे�टक
हाइ�ोकाबर्न् िसगरेट छोड़ने वाल� के िलए एक अच्छ खबर यह है �क िसगरेट छोड़ने के बाद क�सर का जोिखम साल
दर साल कम होता जाता है और 15 वषर् बाद उनके बराबर हो जाता है िजन्ह�ने कभी िसगरेट पी ही नह� है। क्य�
उनके फे फड़� म� नई कोिशकाएँ बनने लगती है और पुरानी न� होती जाती ह�।
परोक्ष धू�पा
धू�पान करने वाल� के साथ रहने वाले या उनके साथ लम्बा समय िबताने वाले लोग� म� भी इस क �सर का जोिखम
सामान्य �ि�य� से24 % अिधक होता है। अमे�रका म� हर साल फे फड़े के क�सर से मरने वाले रोिगय� म� से 3000
रोगी इस �ेणी के होते ह�।
ऐसबेस्टस
ऐस्बेस् कई �कार के खिनज िसलीकेट� के रेश� को कहते ह�। इसके तापरोधी और िव�ुतरोधी गुण� के कारण कई
उ�ोग� म� इसका �योग �कया जाता है। यहाँ सांस लेने से ये रेशे फे फड़� म� प�ँच जाते ह� और एकि�त होते रहते ह�।
इन उ�ोग� म� काम करने वाले लोग� म� फे फड़े के क�सर और मीजोथेिलयोमा (फे फड़� के बाहरी आवरण प्लूरा का
क�सर) का जोिखम सामान्य लोग� से5 गुना अिधक रहता है। य�द ये धू�पान भी करते ह� तो जोिखम 50-90 गुना हो
जाता है। इसिलए आजकल अिधकतर उ�ोग� म� ऐसबेस्टस का �योग या तो �ितबंिधत कर �दया है या िसिमत कर
�दया गया है।
राडोन गैस
राडोन एक �ाकृ ितक, अदृष्, गंधहीन
एवम् िनिष्�य गैस है जो यूरेिनयम के
िवघटन से बनती है। यूरेिनयम के िवघटन
से राडोन समेत कई उत्पाद बनते ह� जो
आयॉनाइ�जग िव�करण छोड़ते ह�। ले�कन
राडोन एक ज्ञात क�सरकारी है औ
अमे�रका म� फे फड़े के क�सर के 20000
लोग� क� मृत्यु के िलए िजम्मेदार है
अथार्त राडोन फ ेफड़े के क �सर का दूसरा
बड़ा कारण है। राडोन गैस जमीन के
अन्दर फैलती रहती है और घर� क� न�,
नािलय�, पाइप� आ�द म� पड़ी दरार� से
घर� म� �वेश कर जाती है। अमे�रका के
हर 15 म� से एक घर म� राडोन क� मा�ा
खतरनाक स्तर पर अिधक आंक� गई है।
भारत के भी अिधकांश इलाक� म� (िवशेष
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तौर पर ऐटानगर, गौहाटी, िशल�ग, आसाम, हमीरपुर, नागपुर, हादराबाद, िसकं दराबाद, पालमपुर, उ�राकाशी,
पुरी, कु लु, कोटा, केरेला, रांची, बंगलु� आ�द) राडोन क� िस्थित �चताजनक है।
फे फड़े के रोग
फे फड़े के कु छ रोग जैसे टी.बी., सी.ओ.पी.डी. आ�द क� उपिस्थित भी क �सर का जोिखम बढ़ती है।
वायु �दूषण
गािड़य�, उ�ोग� और ऊजार् इकाइय� से िनकला धुँआ और �दूषण भी फ ेफड़े के कैसर का जोिखम बढ़ाता है।
आनुवंिशक
हाल ही म� �ए एक अध्ययन से संकेत िमले ह� �क फ ेफड़े के क �सर के रोगी के करीबी �रश्तेदोर(चाहे वे धू�पान करते
हो या न करते ह�) म� फे फड़े के क�सर का जोिखम अपेक्षाकृत अिधक रहता है
वग�करण
फे फड़े का क�सर को मुख्यतः दो �जाित के होते है।1स्मॉल सेल क �सर (SCLC) और 2- नोन स्मॉल सेल क �सर
(NSCLC)। यह वग�करण क�सर क� सू�म संरचना के
आधार पर �कया गया है। इन दोन� तरह के क�सर क�
संवृि�, स्थलांतर और उपचार भी अल-अलग होता है।
इसिलए भी यह वग�करण ज�री माना गया है।
20% फे फड़े के क�सर
स्मॉल सेल क �सर (SCLC)
�जाित के होते ह�। यह ब�त आ�ामक होता ह� और बड़ी
तेजी से फै लता है। यह हमेशा धू�पान करने से होता है।
स्मॉल सेल क �सर के िसफर1% रोगी ही धू�पान नह� करने
वाले होते ह�। यह शरीर के दूरस्थ अंग� म� तेजी से
स्थलांतर करता है। �ायः िनदान के समय भी ये शरीर के कई िहस्स� म� फैल चुका होता है। अपनी िविश� सू�
संरचना के कारण इसे ओट सेल का�सनोमा भी कहते ह�।
नोन स्मॉल सेल क �सर(NSCLC) सबसे �ापक �जाित है। 80 % फे फड़े के क�सर नोन स्मॉल सेल क �सर �जाित के
होते ह�। इन्ह� सू�म संरचना के आधार पर िन� उ-�जाितय� म� िवभािजत �कया गया है।
ऐडीनोका�सनोमा – यह सबसे �ापक ( 50%
तक) उपजाित है। यह धू�पान से सम्बिन्धत ह
ले�कन धू�पान नह� करने वाल� को भी हो सकता
है। �ायः यह फे फड़े के बाहरी िहस्से म� उत्प
होता है। इस उपजाित म� एक िवशेष तरह का
���कयोऐलिवयोलर का�सनोमा
(Bronchioloalveolar
carcinoma) भी
शािमल �कया गया है जो फे फड़े म� कई जगह
उत्प� होता है और वायु कोष� क� िभि�य� के
सहारे फै लता है।
स्�ेमस सेल का�सनोम पहले ऐडीनोका�सनोमा
से अिधक �ापक था, ले�कन आजकल इस �जाित
क� �ापकता घट कर ऐडीनोका�सनोमा क� मा�ा
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30 % रह गई है। इसे इिपडरमॉ यड का�सनोमा भी कहते ह�। �ायः यह फे फड़े के मध्य क� �कसी �ास नली से उत्प
होता है।
लाजर् सेल का�सनोमा – इसे अिवभे�दत का�सनोमा ( undifferentiated carcinomas) भी कहते ह�। यह सबसे
कम पाया जाता है।
िमि�त का�सनोमा कभी-कभी इस उपजाित के कई क�सर साथ भी पाये जा सकते ह�।
अन्य क �सर- फे फड़े म� उपरो� दो मुख्य �जाितय� के अलावा भी अन्य �कार के क�सर हो सकते ह�। इनक� �ापकत
5-10 % होती है।
���कयल का�सनॉयड - 5% फे फड़े के क�सर इस �जाित के होते ह�। िनदान के समय यह अबुर्द �ायः छोटा(3-4
स�.मी. या छोटा) रहता है और रोगी क� उ� 40 वषर् से कम होती है। यह धू�पान से सम्बिन्धत नह� होता है। कई ब
यह अबुर्द हाम�न जैसे पदाथर् का �ाव करता है िजससे कुछ िवशेष लक्षण देखे जाते ह�। यह -धीरे बढ़ता और फै लता
है, इसिलए िनदान के समय उपचार के पयार्� िवकल्(शल्य ��य) रहते ह�। ।
स्थलांतर क �सर– शरीर के कई अंग� के मूल क�सर क� कोिशकाएं र�-वािहका� या लिसका-वािहका� �ारा चल
कर फे फड़े म� प�ँच कर स्थलांतर क �सर उत्प� कर सकती ह�। समीप के अंग� से तो क�सर कोिशकाएं चल कर सीध
फे फड़े म� पहँच सकती ह�। स्थलांतर क �सर म� �ायः फ ेफड़े के बाहरी िहस्से कई अबुर्द बन जाते ह�।
लक्षण और संक
इस रोग म� िविवध �कार के लक्षण होते ह� जो अबुर्द क� िस्थित और स्थलांतर पर िनभर्र करते ह�। �ारंिभक अवस
सामान्यतः क �सर के स्प� और गंभीर लक्षण नह� होते
लक्षणही– फे फड़े के क�सर के 25% रोिगय� का िनदान �कसी अन्य �योजन से करवाये गये एक्सरे या .टी स्केन
से होता है। �ायः एक्सरे या सीटी म� एक िस�े के आकार क� एक छाया क �सर को इंिगत करती है। अक्सर इन रोिगय
को इससे कोई लक्षण नह� होता है
अबुर्द से सम्बिन्धत ल– अबुर् क� संवृि� और फे फड़े म� उसके फै लाव के कारण �सन लेने म� बाधा उत्प होती है,
िजससे खांसी, �ासक� ( Dyspnoea), सांस म� घरघराहट
(wheezing), छाती म� ददर, खांसी म� खून आना
(hemoptysis) जैसे लक् हो सकते ह�। य�द अबुर् �कसी नाड़ी का अिभभक् कर लेता है तो कं धे म� ददर जो बांह के पृ�
भाग तक फै ल जाता है (called Pancoast's syndrome) या ध्विनयं ( vocal cords) म� लकवे के कारण आवाज म�
ककर्शत (hoarseness) आ जाती है। य�द अबुर् ने भोजन नली पर आ�मण कर �दया है तो खाना िनगलने म� �द�त
(dysphagia) हो सकती है। य�द अबुर् �कसी बड़ी �ास नली को अव�� कर देता है तो फे फड़े का वह िहस्स िसकु ड़
जाता है, उसम� सं�मण (abscesses, pneumonia) हो सकता है।
स्थलांतर से सम्बिन्धत ल– फे फड़े का क�सर तेजी से र�-वािहका� या लिसका-विहका� �ारा दूरस्थ अंगो म�
प�ँच जाता है। अिस्, एडरीनल �ंिथ, मिस्तष्क और यकृत स्थलान्तर के मुख्य स्थान ह�। इसे याद रखने का-सू�
Babul (Bone, Adrenal glands, Brain and Liver) है। य�द इस क�सर का स्थलांतर हि�य� म� हो जाता है तो
उस स्थान पर ब�त तेज ददर् होता है। य�द क�सर मिस्तष्क म� प�ँच जाता है तो िसर, दौरा, नजर म� धुँधलापन,
स्�ोक के लक्षण जैसे शरीर के कुछ िहस्स� म� कमजोरी या सु�ता आ�द लक्षण हो सकत
पेरानीओप्लािस्टक लक- इस क�सर म� कई बार क�सर कोिशकाएं हाम�न क� तरह कु छ रसायन� का �ाव करती
ह�, िजनके कारण कु छ िवशेष लक्षण होते ह�। ये पेरानीओप्लािस्टक लक्षण �ायः स्माल सेल का�सनोमा म� , परन्तु
�कसी भी �जाित के क�सर म� हो सकते ह�। कु छ स्माल सेल का�सनोमा(
NSCL) ऐडीनोको�टको�ो�फक हाम�न
(ACTH) का �ाव करते ह�, िजसके फलस्व�प ऐडरीनल �ंिथयाँ अिधक को�टजोल हाम�न का �ाव करती ह� और
रोगी म� क�शग िसन्�ोम रोग के लक्षण हो सकते ह�। इसी तरह कुछ नस्मा सेल का�सनोमा (NSCLC) पेराथायरॉयड
हाम�न जैसा रसायन बनाते ह� िजससे र� म� कै िल्शयम का स्तर बढ़ जाता है
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अन्य लक्– जैसे कमजोरी, वजन कम होना, थकावट, अवसाद और मनोदशा िवकार (Mood swing) हो सकते ह�।
िच�कत्सक से परामशर् के संके–
य�द रोगी को िन� लक्षण ह� तो तुरन्त िच�कत्सक से सम्पकर् करना चा
• तेज खांसी आती हो या पुरानी खांसी अचानक बढ़ जाये।
• खांसी म� खून आना।
• छाती म� ददर्।
• तेज ��काइ�टस या बार-बार �सन पथ म� सं�मण हो रहा हो।
• अचानक वजन कम �आ हो या थकावट होती हो।
• �ासक� या सांस लेने म� घरघराहट होती हो।
िनदान
इितहास और िच�कत्सक�यपरीक्ष– पूछताछ और रोगी के परीक्षण से िच�कत्सक को अक्सर कुछ लक्
संकेत िमल जाते ह� जो क�सर क� तरफ इँ िगत करते ह�। वह धू�पान, खांसी, सांस लेने म� कोई तकलीफ, �सनपथ म�
कोई �कावट, सं�मण आ�द के बारे िवस्तार से जान लेता है। त्वचा य �ेष्मकलाका नीला पड़ना र� म� ऑक्सीजन
क� कमी का संकेत देता है। नाखुन� के आधार का फू ल जाना िचरकारी फे फड़े के रोग को दशार्ता है।
छाती का एक्सर -
फे फड़े सम्बन्धी �कसी भी नये लक्षण के िलए छाती का एक्सरे पहली सुगम जांच
कई बार फे फड़े के एक्सरे म�
�दखाई देने वाली छाया क�सर का संदेह मा� पैदा करती है। ले�कन एक्सरे से यह िस� नह� होता है �क यह छाया
क�सर क� ही है। इसी तरह फे फड़े म� अिस्थकृत प�वका( calcified nodules) या सुगम अबुर्द जैसे हेमट�म एक्सरे म�
क�सर जैसे ही �दखाई देते ह�। इसिलए अंितम िनदान हेतु अन्य परीक्षण �कये जाते ह
सी.टी. स्केन(computerized tomography, computerized axial tomography, or CAT)
फे फड़े के क�सर तथा स्थलांतर क �सर के िनदान हेतु छात, उदर और मिस्तष्क का .टी. स्केन �कया जाता है। य�द छाती के
एक्सरे म� क �सर के संकेत स्प� �दखाई नह� द� या गांठ के आकार और िस्थित क� पूरी जानकारी नह� िमल पाये तो.टी.
स्केन �कया जाता है। स.टी. स्केन म� मशीन एक बड़े छल्ले के आकार क� होती ह जो कई �दशा� से एक्सरे लेती है और
कम्प्यूटर इन सूचना� का िव�ेषण क संरचना� को अनु�स्थ काट के �प द�शत करता है। सी.टी. स्केन�ारा ली गई
तस्वीर� सामान्य एक्सरे से अिधक स्प� और िनणार्यक होती ह.टी. �ायः उन छोटी गाठ� को भी पकड़ लेता है जो
एक्सरे म� �दखाई नह� देती ह�। �ायः स.टी. स्केन करने के पहले रोगी क� िशरा म� रेिडयो ओपैक कॉन्�ास्ट दवा छ
दी जाती है िजससे अंदर के अवयव और ऊतक और उनक� िस्थित ज्यादा साफ और उभर कर �दखाई देती है। कॉन्�ा
दवा देने के पहले सेिन्स�टिवटी टेस्ट �कया जाता है। कई बार इससे हािनकारक �ित��या के लक्षण जैसे ख,
िपश्त, त्वचा म� चक�े आ�द हो सकते ह�। ले�कन इससे जानलेवा ऐनाफाईलेिक्टक �ित��य(Anaphylactic
reaction) िवरले रोगी म� ही होती है। पेट के सी.टी. स्केन से यकृत और ऐडरीनल �ंिथ के स्थलांतर क�सर का पत
चलता है। िसर के सी.टी.स्केन से मिस्तष्क के स्थलांतर क�सर का पता चलता
एम.आर.आई. (Magnetic resonance imaging )
एम.आर.आई. अबुर्द(Tumor) क� स्प� और िवस्तृत छायांकन के िलए अिधक उपयु� है। .आर.आई. चुम्ब,
रेिडयो तरं ग� और कम्प्यूटर क� मदद से शरीर के अंग� का छायांकन करती है। .टी.स्केन क� तरह ही रोगी को एक
चिलत शैया पर लेटा �दया जाता है और छल्लाकार मशीन म� से गुजारा जाता है। इसके कोई पाष्वर् �भाव नह� ह�
िव�करण का जोिखम भी नह� है। इसक� तस्वीर� अिधक िवस्तृत होती ह� और यह छोटे सी गांठ� को भी पकड़ लेती है
�दय म� पेसमेकर, धातु के इम्प्लांट या �दय के कृि�म कपाट धारण �कये �ि� के िलए .आर.आई. उपयु� नह�
है क्य��क यह इसका चुम्बक�य बल धातुसे बनी संरचना� को खराब कर सकता है
पोिज�ोन इिमशन टोमो�ोफ� (PET Scaning)
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यह सबसे संवेदनशील , िविश� और मंहगी जांच
है। इसम� रेिडयोएिक्टव लेबल्ड मेटाबोलाइट्
जैसे फ्लोरीनेटेड ग्लूक [18 FDG] का �योग
�कया जाता है और अबुर्द के चयापच
,
वािहकावधर्न( vascularization), ऑक्सीजन
क� खपत और अबुर्द क� अिभ�हण िस्थि
(receptor status) क� सटीक
, िवस्तृ,
ब�रं गी और ि�आयामी तस्वीर� और जानकारी
िमलती है। जहाँ सी.टी. और एम.आर.आई.
िसफर् अबुर्द क� संरचना क� जानकारी देते ,
वह� पी.ई.टी. ऊतक� क� चयापचय गितिविध
और ��याशीलता क� भी सूचनाएं देता है।
पी.ई.टी. स्केन अबुर्द क� संवृि� क� जानकार
भी देता है और यह भी बता देता है �क अबुर्द �कस �कार क� क �सर कोिशकाएं से बना है।
रोगी को क्षिणक अधजीवी रेिडयोधम( short half-lived radioactive drug) दवा दी जाती है, और दो छाती के
एक्सरे िजतना रेिडयेशन �दया जाता है। यह दवा अन्य ऊतक� क� अपेक्षा अमुक ऊ(जैसे क�सर) म� अिधक एकि�त
होती है, जो दी गई दवा पर िनभर्र करता है। रेिडयेशन के �भाव से यह दवा पोिज�ोन नामक कण छोड़ती ह, जो
शरीर म� िव�मान इलेक्�ोन्स से ��या कर गामा रेज़ बनाते ह�। मशीन का स्केनर इन गामा रेज़ को �रकॉडर् कर ल
है और रेिडयोधम� दवा को �हण करने वाले ऊतक� को �द�शत कर देता है। उदाहरण के िलए ग्लूकोज(सामान्य ऊजार
का �ोत) िमली रेिडयोधम� दवा बतलायेगी �क �कन ऊतक� ने ग्लूकोज का तेजी से उपभोग �कया जैसे िवकासशील
और स��य अबुर्द। प.ई.टी. स्केन को स.टी. स्केन से जोड़ कर संयु� मशीन प.ई.टी. - सी.टी. भी बना दी गई है।
यह तकनीक क�सर का चरण िनधार्रणपी.ई.टी. से अिधक बेहतर करती है और क�सर के िनदान म� एक वरदान सािबत
�ई है।
बोन स्के
बोन स्केन �ारा हि�य� के िच� कम्प्यूटर के पटल या �फल्म पर िलए जाते ह�। िच�कत्सक बोन स्केन यह जानने क
करवाते ह� �क फे फड़े का क�सर हि�य� तक तो नह� प�ँच गया है। इसके िलए रोगी क� िशरा म� एक रेिडयोधम� दवा
छोड़ी जाती है। यह दवा हि�य� म� उस जगह एकि�त हो जाती है जहाँ स्थलांतर क �सर ने जगह बना ली है। मशीन का
स्केनर रेिडयोधम� दवा को �हण कर लेता है और ह�ी का िच� �फल्म पर उतार लेता है
बलगम क� कोिशक�य जांच –
फे फड़े के क�सर का अंितम िनदान तो रोगिवज्ञानी अबुर्द या क�सर कोिशका� क� सू�मदश� जांच के बाद ही करता ह
इसके िलए एक सरल तरीका बलगम क� सू�मदश� जाँच करना है। य�द अबुर्द फ ेफड़े के मध्य म� िस्थत है
�ासनली तक बढ़ चुका है तो बलगम म� क�सर कोिशकाएं �दखाई पड़ जाती ह�। यह सस्ती और जोिखमरिहत जाँच है।
ले�कन इसका दायरा िसिमत है क्य��क बलगम म� हमेशा क �सर कोिशकाएँ नह� �दखाई देती है। कई बार साधारण
कोिशकाएं भी सं�मण या आघात के कारण क�सर कोिशका� क� तरह लगती ह�।
��कोस्कोपी –
नाक या मुँह �ारा �ासनली म� �काश �ोत से जुड़ी पतली और कड़ी या लचीली फाइबरओिप्टक नली(��कोस्को)
डाल कर �सनपथ और फे फड़े का अवलोकन �कया जाता है। अबुर्द �दखाई दे तो उसके ऊतक� का नमूना ले िलया
जाता है। ��कोस्कोपी से �ायः बड़ी �सनिलय� और फ ेफड़े के मध्य म� िस्थत अबुर्द आसानी से देखे जा सकते ह�।
जाँच ओ.पी.डी. कक, शल्य कक्ष या वाडर् म� क� जा सकती है। इसम� रोगी को तकलीफ और ददर् होता है इसिलए
या बेहोशी क� सुई लगा दी जाती है। यह जाँच अपेक्षाकृत सुरिक्षत है �फर भी अनुभवी िवशेषज्ञ �ारा क�
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चािहये। य�द अबुर्द �दखाई दे जाये और उसका नमूना ले िलया जाये तो क �सर का िनदान संभव हो जाता है। इस जाँच
के बाद कु छ रोिगय� को 1 या 2 �दन तक खांसी म�
गहरा भूरा खून आ सकता है। इसक� गंभीर
ज�टलता� म� र��ाव होना, र� म� ऑक्सीजन
कम होना, हाटर् ऐ�रदिमया आ�द हो सकते ह�।
सुई �ारा कोिशक�य जाँच Fine needle
aspiration Cytology (FNAC) –
यह सबसे सामान्य जाँच है िजसम� सोनो�ाफ� या
सी.टी. स्केन के �दशा िनद�श म� सुई फेफड़े म� क �सर
क� गाँठ तक घुसाई जाती है और सू�मदश� जाँच
हेतु कोिशका� के नमूने ले िलए जाते ह�। य�द
क�सर क� गाँठ फे फड़े के बाहरी िहस्स� म� िस्थत ह
और जहाँ ��कोस्कोप नह� प�ँच पाता है तब यह
तकनीक ब�त उपयोगी सािबत होती है। इसके
िलए छाती क� त्वचा म� सु� करने क� सुई लगाई
जाती है। उसके बाद छाती म� एक लम्बी सुई क �सर
क� गाँठ तक घुसाई जाती है। सोनो�ाफ� या
सी.टी. स्केन क� मदद अबुर्द तक सुई घुसाना आसान हो जाता है और �फर सुई म� िस�रज लगा कर कोिशका� क
ख�च िलया जाता है। ले�कन कभी कभी रोगिवज्ञानी सही जगह से ऊतक लेने म� कामयाब नह� हो पाता है। इ
तकनीक म� न्यूमोथोरेक्स होने का जोिखम रहता है
थोरेको�सटेिसस -
कभी कभी क�सर फे फड़े के बाहरी आवरण, िजसे प्लूरा कहते ह, तक भी प�ँच जाता है और इस कारण फे फड़े और
छाती के बीच के स्थान म� तरल (called a pleural effusion) इक�ा हो जाता है। इस तरल को सुई �ारा िनकाल
कर उसम� सू�मदश� से क�सर कोिशका� क� जाँच क� जाती है। इस तकनीक म� भी न्यूमोथोरेक्स का थोड़ा जोिख
रहता है।
बड़ी शल्य ��या-
य�द उपरो� सभी तरीक� से भी क�सर का िनदान नह� हो पाये तो शल्य ही अिन्तम िवकल्प बचता है। पहला िवक
मीिडयािस्टनोस्कोपी , िजसम� दोन� फे फड़� के बीच म� शल्य �ारा एक �ोब घुसा कर अबुर्द या लिसकापवर्
कोिशका� के नमूने ले िलए जाते ह�। दूसरा िवकल्प थोरेकोटोमी है िजसम� छाती को खोल कर क �सर कोिशका� के
नमूने ले िलए जाते ह�। इन शल्य ��या� के �ारा अबुर्द को पूरी तरह िनकालना संभव नह� हो पाता है। इसके िल
रोगी को भत� �कया जाता है और शल्य ��या शल्य कक्ष म� ही क� जाती है। साथ ही र, सं�मण, िन�ेतन और
अन्य दवा� के कु�भाव� का जोिखम रहता है।
र� परीक्ष-
वैसे तो अकेले खून के सामान्य परीक्षण से क�सर का िनदान संभव नह�, ले�कन इनसे क�सर के कारण पैदा �ए
रसायिनक या चयापचय िवकार� क� जानकारी िमल जाती है। जैसे कैिल्शयम और एंजाइम अल्कलाइन फोस्फेटेज
स्तर का बढ़ना अिस्थ म� स्थलांतर क�सर के संकेत देता है। इसी तरह ऐस्पाट�ट अमाइनो�ांसफ
(SGOT) और
एलेनाइन अमाइनो�ांसफरेज (SGPT) का बढ़ना यकृ त क� �ग्णता को दशार्ता है िजसका संभवतः कारण यकृत म
स्थलांतर क �सर होना चािहये। इस क �सर के िनदान हेतु र� के िन� परीक्षण �कये जाने चािहय
• सी.बी.सी.
• इलेक्�ोलाइट
• पेराथायरॉयड हाम�न
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ऐस्पाट�ट अमाइनो�ांसफरे, एलेनाइन अमाइनो�ांसफरेज, एल्केलाइन फोस्फेट, �ो�ोिम्बन टाइम
यू�रया, ��ये�टनीन, केिल्शय, मेगनीिशयम
•
•
�ूमर माकर्सर
नॉन स्मॉल सेल दोन� �जाित के क �सर म� स.ए.125 और सी.ई.ए. �ूमर माकर्सर् क� जांच क� जानी चािहये
चरण िनधार्रण
क�सर क� गांठो के आकार, िनकटस्थ संरचना , लिसकापव� (Lymph nodes) और दूरस्थ अंग� म� क �सर के फैलाव
तथा िवस्तार के आधार पर फ ेफड़े के क �सर को िविभ� चरण� म� वग�कृत �कया जाता है। चरण िनधार्रण उपचार औ
फलानुमान क� दृि� से भी ब�त महत्वपूणर् है। हर चरण के िलए अलग तरह के उपचार �दये जाते ह�। िच�कत्सक
तरह क� जांच जैसे र� के परीक्, एक्सर, सी.टी.स्के, बोन स्के, एम.आर.आई.स्के, पी.ई.टी.स्केन आ�द करता है
और उनके आधार पर चरण िनधार्रण करता है।
स्मॉल सेल का�सनोम
स्मॉल सेल का�सनोमा को दो चरण� म� बांटा गया है।
िसिमत चरण Limited-stage (LS) SCLC – इसम� क�सर छाती के भीतर ही िसिमत रहता है।
िवस्तृत चर extensive-stage (ES) SCLC इसम� क�सर छाती से बाहर शरीर के कई अंग� तक फै ल चुका होता
है।
नॉन स्मॉल सेल का�सनोम टी.एन.एम. वग�करण
मूल गाँठ T
T0
मूल गाँठ का आंकलन नह� हो सका है, या बलगम अथवा �ास नली से िलए गये नमून� म� भले क�सर कोिशकाएं
देखी गई हो ले�कन ��कोस्कोपी या छायांकन परीक्षण म� गाँठ नह� पाई गई हो
मूल क�सर के कोई सा�य िव�मान नह� ह�।
Tis
स्वस्थानी क�स(Carcinoma in situ)
TX
T
गाँठ ≤ 3
स�मी. अिधकतम माप म�, जो फे फड़े या िवसरल प्लूरा से िघरी ह, ��कोस्कोपी म� क �सर के कोई
संकेत नह� िमले ह�
T1
गाँठ ≤ 2 स�मी. अिधकतम माप म�
T1b
T2
T1a
गाँठ > 2 स�मी. ले�कन ≤ 3 स�मी. अिधकतम माप म�
गाँठ > 3 स�मी. ले�कन ≤ 7 स�मी. अिधकतम माप म�, या गांठ जो िन� जगह फै ल चुक� हो।
•
िवसरल प्लूरा म� फैल चुक� हो।
•
मुख्य ��कस क� गांठ करीन* से < 2 से.मी. दूर
•
साथ म� एटीलेक्टेिस/ओब्स�िक्टन्यूमोनाइ�ट हाइलार क्षे� तक फैला हो ले�कन पूरे फेफड़े म
नह� फै ला हो।
T2a
T2b
T3
गाँठ > 3 स�मी. ले�कन ≤ 5 स�मी. अिधकतम माप म�
गाँठ > 5 स�मी. ले�कन ≤ 7 स�मी. अिधकतम माप म�
गांठ > 7 स�मी. अिधकतम माप म� या क�सर इन जगह फै ल चुका हो।
•
छाती क� िभि� (सुपी�रयर सल्कस �ूमर समे), डाय�ाम, �े िनक नवर, मीिडयािस्टनल प्लूरा य
पेराइटल पेरीका�डयम
9. 9|Page
•
•
T4
मुख्य ��कस क� गांठ केरीना से< 2 से.मी. क� दूरी तक
साथ म� एटीलेक्टेिस/ओब्स�िक्ट न्यूमोनाइ�ट पूरे फे फड़े म� या फे फड़े के उसी खण्ड म� अन्य गांठ
�कसी भी नाप क� गांठ जो मीिडयािस्टन, �दय, बड़ी र� वािहयाएँ, �े�कया, ले�रिजयल नवर, भोजन नली,
वट��ल बॉडी, केरीना या फे फड़े के उसी खण्ड म� अन्य गांठ म� से �कसी एक संरचना म� फैल चुक� हो।
स्थािनक लिसकापवर् स्थला N
N0
स्थािनक लिसकापवर(Local Lymph nodes) म� कोई स्थलांतर नह� �आ ह
N1
समपाष्व� (ipsilateral) प�र�ासनिलका (peribronchial) और/या िवदर (hilar) और अंतरफु फ्फुसीय
(intrapulmonary) लिसकापवर् म� स्थलांतर �आ हो
N2
समपाष्व� मध्यस्थाि (ipsilateral mediastinal) और या सबके�रना लिसकापवर् म� स्थलांतर �आ हो
N3
�ितपक्ष(contralateral) मध्यस्थािन (mediastinal) , िवदर (hilar) या अिधज�ुक�य
(supraclavicular) लिसकापवर् म� स्थलांतर �आ हो
दूरस्थ स्थलां M
M0
दूरस्थ स्थलांतर नह� �आ ह
M1
दूरस्थ स्थलांतर �आ हो(Distant metastasis)
M1a
�ितपक्ष(contralateral) फे फड़े के �कसी खण्ड म� गांठ ह, गांठ के साथ प्लूरा म� कोई नो�ूल हो या दुदर्
फु फ्फुसावरणीय िनःसरण{malignant pleural (or pericardial) effusion} �आ हो
N1b
दूरस्थ स्थलांतर �आ हो
* In anatomy, the carina is a cartilaginous ridge within the trachea that runs anteroposteriorly between the two
primary bronchi at the site of the tracheal bifurcation at the lower end of the trachea
* For Lung Cancer Staging Calculator click this wonderful link http://staginglungcancer.org/calculator
उपचार
ऐलोपेथी म� फे फड़े के क�सर का मुख्य उपचार शल्य �ारा क�सर का उच्छ, क�मोथेरेपी, रेिडयोथेरेपी या इनका
संयु� उपचार है। उपचार सम्बन्धी िनणर्य क�सर के आ, िस्थि, संवृि�, िवस्ता, स्थलांतर और रोगी क� उ�
तथा उसके स्वास्थ्य पर िनभर्र करता
अन्य क �सर क� तरह ही फ ेफड़े के क �सर का उपचार भी उपचारात्म(क�सर का उच्छेदन या रेिडयेश) या �शामक
(palliative य�द क�सर का उपचार संभव नह� हो तो ददर् और तकलीफ कम करने हेतु �दये जाने वाले उपचार को
�शामक उपचार कहते ह�) हो सकता है। �ायः एक से अिधक तरह के उपचार �दये जाते ह�। जब कोई उपचार मुख्य
उपचार के �भाव को बढ़ाने के िलए �दया जाता है तो उसे सहायक उपचार (
adjuvant therapy) कहते ह�। जैसे
शल्-��या के बाद बचे �ई क�सर कोिशका� को मारने के िलए क�मोथेरेपी या रेिडयोथेरेपी सहायक उपचार के �प
म� दी जाती है। य�द उपचार शल्य के पहले अबुर्द को छोटा करने के िलए �दया जाता है तो उसे नव सहायक उपचा
(Neo adjuvant therapy) कहते ह�।
शल्-��या –
क�सर का उच्छेदन सबसे उपयु� उपचार है य�द क �सर फ ेफड़े के बाहर नह� फैल सका है। क �सर का उच्छेदन नो
स्माल सेल क �सर के कुछ चरण�(चरण I या कभी कभी चरण II) म� �कया जाता है। अमूमन इस क�सर के 10%-35%
रोिगय� म� शल्य ��या क� जाती ह, ले�कन रोगी को पूरी राहत नह� िमल पाती है क्य��क क �सर िनदान के समय ही
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क�सर ब�त फै ल चुका होता है और शल्-��या के बाद क�सर कभी भी दोबारा उत्प� हो जाता है। िजन रोिगय� म�
धीमी गित से बढ़ने वाले एकाक� क�सर का शल्य �कया जाता ह, उनम� से 25%-40% रोगी पांच साल जी ही लेते ह�।
कई बार रोगी का क�सर संरचनात्मक दृि� से तो शल्य योग्य होता है ले�कन रोगी क� गंभीर हा(जैसे �दय या
फे फड़े का कोई बड़ा रोग हो) के कारण शल्य करना जोिखम
भरा काम हो सकता है। स्माल सेल क �सर म� शल-��या क�
संभावना अपेक्षाकृत कम रहती है। क्य��क यह तेजी से फैलता
और फे फड़े के एक िहस्से म� िसिमत हो कर नह� रह पाता है।
शल्य ��या अबुर्द के आमाप और िस्थित पर िनभर्र करती
यह बड़ी शल्य ��या ह, रोगी को भत� करना पड़ता है और
शल्य के बाद भी लम्बे समय तक देखभाल हेतु अस्पताल म�
रखना पड़ता है। इसम� रोगी को बेहोश �कया जाता है और
छाती को खोलना पड़ता है। इसके बाद शल्-कम� फे फड़े का
एक िहस्सा( wedge resection), फे फड़े का एक खण्ड
(lobectomy ) या पूरा फे फड़ा ( pneumonectomy) िनकाल
लेता है। कभी-कभी फे फड़े म� िस्थत लिसकापवर
(lymphadenectomy) भी िनकाले जाते ह�। शल्य के बाद
रोगी को �ास क�, सांस उखड़ना, ददर् और कमजोरी रहती है।
र� �ाव, सं�मण और िन�ेतन के कु �भाव शल्य के मुख्
खतरे ह�।
रेिडयेशन –
रेिडयोथेरेपी स्मॉल सेल और नॉन स्मॉल सेल दोन� �जाित के क�सर म� दी जाती है। रेिडयेशन उपचार म� शि�शाल
एक्सरे या अन्य �कार के रेिडयेशन �ारा िवकासशील क�सर कोिशका� को मारा जाता है। रेिडयोथेरेपी उपचारात
(Curative), �शामक (Palliative) या अन्य उपचार(शल्य या क�म) के साथ सहायक उपचार के �प �दया जाता
है। रेिडयेशन या तो बाहर से मशीन को क�सर पर क���त करके �दया जाता है या रेिडयोधम� पदाथर् से भरे छोटे से
केप्स्यूल शरीर म� क�सर क� गांठ के पास अविस्थत करके �दया जाता है। �ेक�थेरेपी म� ��कोस्कोप �ारा रेिडयो
पदाथर् से भरे छोटे से पेलेट को क �सर क� गांठ म� या पास क� �कसी �ासनली म� अविस्थत कर �दया जाता है। इसम
पेलेट से रेिडयेशन छोटी सी दूरी तय करता है इसिलए यह आसपास के स्वस्थ ऊतक� को नुकसान ब�त कम करता है
�ेक�थेरेपी क�सर का गाँठ को छोटा करने और �ासनली म� िस्थत क �सर के कारण उत्प� लक्षण के उपचार के
�चिलत है।
य�द रोगी शल्-��या के िलए मना कर देता है, उसका क�सर लिसकापवर् या �ासनली तक इतना फैल चुका है �क
शल्-��या संभव ही नह� है या �कसी अन्य गंभीर रोग के कारण उसक� शल-��या करना मुनािसब नह� है तो उसे
रेिडयोथेरेपी दी जाती है। रेिडयेशन जब मुख्य उपचार के �प म� �दया जाता है तो यह िसफर् गांठ को छोटी करता ह
या उसके िवकास को िसिमत रखता है, िजससे रोगी कु छ समय तक स्वस्थ बना रहता है।
10%-15% रोगी लम्बे
समय तक स्वस्थ जीवन जी लेते ह�। रेिडयोथेरेपी के साथ क�मोथेरेपी भी दी जाती है तो जीने क� आस थोड़ी और ब
जाती है। बाहर से दी जाने वाली रेिडयोथेरेपी ओ.पी.डी.िवभाग म� दी जाती है, ले�कन आंत�रक रेिडयोथेरेपी देने के
िलए रोगी को एक या दो �दन के िलए भत� करना पड़ता है। य�द रोगी को क�सर के अलावा कोई अन्य गंभीर फ ेफड़े
का रोग है तो रेिडयोथेरेपी नह� दी जा सकती है क्य��क फ ेफड़े क� हालत और अिधक खराब होने का खतरा रहता है।
एक िवशेष तरह क� गामा नाइफ नामक बा� रेिडयोथेरेपी मिस्तष्क म� एकाक� स्थलांतर क�सर के िलए दी जाती ह
इसम� िसर को िस्थर करके रेिडयेशन के कई पुंज� को क �सर पर क���त करके कुछ िमनट या घन्ट� के िलए रेिडयेश
�दया जाता है। इसम� स्वस्थ ऊतक� को रेिडयेशन क� अपेक्षाकृत कम मा�ा िमलती है।
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बा� रेिडयेशन थेरेपी म� उपचार से पहले सी.टी.स्के, कम्प्यूटर और सही नाप के मदद से िसमुलेशन �ारा यह पत
कर िलया जाता है �क रेिडयेशन �कस जगह क���त हो रहा है। इसम� 30 िमनट से दो घन्टे का समय लगता है। बाहरी
रेिडयेशन स�ाह म� 4 या 5 �दन कई स�ाह क� अविध तक �दया जाता है।
रेिडयेशन थेरेपी म� शल्-��या क� तरह बड़े जोिखम नह� रहते ह�, ले�कन कु छ अि�य कु �भाव जैसे थकावट और
कमजोरी तो होते ही ह�। �ेत र� कण कम होना (इससे सं�मण होने का खतरा रहता है) या �बबाणु (Platelets) कम
होना (इससे र��ाव का खतरा रहता है) भी रेिडयेशन के कु �भाव ह�। य�द रेिडयेशन पाचन अंग� पर भी पड़ता है तो
िमचली, उबकाई आना या दस्त लग सकते ह�। त्वचा म� खुजली और जलन हो सकती है।
क�मोथेरेपी –
स्मॉल सेल और नॉन स्मॉल सेल दोन� �जाित के क�सर म� क�मोथेरेपी दी जाती है। क�मोथेरेपी म� दवाएं क�स
कोिशका� को मारने या उनके तेजी होने वाले िवभाजन को रोकने के िलए दी जाती ह�। क�मोथेरेपी को
उपचारात्म, शल्-��या या रेिडयोथेरेपी के साथ सहायक उपचार के �प म� दी जाती है। वैसे तो आजकल ब�त
सारी क�मो दवाएँ �चिलत ह� ले�कन फे फड़े के क�सर म� प्ले�टनमयु� दवाएं जैसे िससप्ले�टन या काब�प्ले�टन सब
�भावशाली सािबत �ई ह�।
लगभग सभी स्मॉल सेल क �सर म� क�मोथेरेपी ही सबसे मुफ�द इलाज ह, क्य��क िनदान के समय ही यह �ायः पूरे
शरीर म� फै ल चुका होता है। स्मॉल सेल क �सर के िसफर् आधे रोगी ही क�मोथेरेपी के िबना चार महीने जी पाते ह�
ले�कन क�मो के बाद उनका जीवन लम्बा तो होता ही है। नॉन स्मॉल सेल क�सर म� अकेली क�मो इतनी असरदा
सािबत नह� �ई है, ले�कन य�द क�सर का स्थलांतर हो चुका है तो कई रोिगय� का जीवन काल तो बढ़ता ही है।
क�मोथेरेपी गोिलय�, िशरा मागर् या दोन� तरीके से दी जाती है। क�मो �ायः .पी.डी. िवभाग म� दी जाती है। एक
च� म� पूवर् िनधार्�रत िनयमानुसार कुछ दवाएँ दी जाती , इसके बाद थोड़े समय के िलए रोगी के िवराम �दया जाता
है। इस दौरान वह क�मो के कु �भाव� के क� पाता है और �फर धीरे-धीरे उन से मु� हो जाता है तो अगला च� �दया
जाता है। इस तरह क�मो के कई च� �दये जाते ह�। दुभार्ग्यवश क�मो म� दी जाने वाली दवाएँ स्वस्थ कोिशका�
भी क्षित�स्त करता है िजससे कई अि�य और क�दायक कु�भाव होते ह�। �ेत र� कण कम हो(इससे सं�मण होने
का खतरा रहता है) या �बबाणु कम होना (इससे र��ाव का खतरा रहता है) क�मो के �मुख कु �भाव ह�। थकावट,
बाल झड़ना, िमचली, उबकाई, दस्, मुँह म� छाले पड़ जाना आ�द अन्य कु�भाव ह�। क�मो के कु�भाव दवा क� मा�,
िम�ण म� दी जाने वाली अन्य दवा और रोगी के स्वास्थ्य पर िनभर्र करता है। दवा के कु�भाव के िलए भी कुछ ि
दवाएं दी जाती ह�।
स्मॉ सेल फे फड़े के क�सर म� क�मोथेरेपी के �चिलत �रजीम िन� िलिखत ह�।
•
PE �रजीम
िससप्ले�टन25 mg/m2 IV days 1-3
इटोपोसाइड 100 mg/m2 IV days 1-3
•
PEC �रजीम
पेिक्लटेक्स 200 mg/m2 IV day 1
इटोपोसाइड 50 mg/d PO alternating with
100 mg/d PO from days 1-10
कारेबोप्ले�टनAUC 6 IV day 1
•
CAV �रजीम
साइक्लोफोस्फेमा 1000 mg/m2 IV day 1
डोक्सो�बीिस 50 mg/m2 IV day 1
िवन��स्टी 2 mg IV
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•
CAVE
साइक्लोफोस्फेमा 1000 mg/m2 IV day 1
डोक्सो�बीिस 50 mg/m2 IV day 1
िवन��स्टी 2 mg IV
इटोपोसाइड 100 mg/m2 IV day 1
•
एक दवा वाली �रजीम
टोपोटेकॉन 1.5 mg/m2 IV day 1-5
इटोपोसाइड 50 mg PO bid days 1-14
पुनरावृि� क�सर म� िन� क�मोथेरेपी दी जाती है।
• ACE (डोक्सो�बीिस, साइक्लोफोस्फेमा और इटोपोसाइड) या
• CAV (साइक्लोफोस्फेमा, डोक्सो�बीिस और िवन��स्टी)
टोपोटेकॉन य�द रोगी को �दयरोग हो और डोक्सो�बीिस देना संभव नह� हो क्य�� �दय को नुकसान प�ँचाती है।
AUC = area under the concentration curve; bid = twice daily; IV = administered intravenously; PO = administered orally.
नॉन स्मा सेल फे फड़े के क�सर म�
क�मोथेरेपी ब�त ज्यादा �भावशाली सािबत नह� �ई है।
�ायः िससप्ले�ट या काब�प्ले�ट (Paraplatin) के साथ िन� म� से कोई एक दवा दी जाती है।
• वाइनोरेबाइन
• जेमिसटेबाइन
• पेिक्लटेक्स (Taxol)
• डोसीटेक्से (Taxotere)
• डोक्सो�बीिस
• इटोपोसाइड
• पेमे�ेक्से
• इफोस्फ ेमाइ
• माइटोमाइिसन
• टोपोटेकॉन
क�मोथेरेपी क� पूरी जानकारी के िलए इस कड़ी पर चटका कर�।
http://chemoregimen.com/Lung-Cancer-c-43-54.html
मिस्तष्क का सुरक्षात्मक रेिड–
स्मॉल सेल क �सर �ायः मिस्तष्क म� भी फैलता है। इसिलए कई बार स्मॉल सेल क�सर के रोगी को मिस्तष्क म�
चुक� क�सर कोिशका� ( called micrometastasis) को मारने के िलए सुरक्षात्मक रेिडयोथेरेपी दी जाती, भले
मिस्तष्क म� स्थलांतर सम्बन्धी कोई लक्षण नह� हो और .टी. या एम.आर.आई. �ारा स्थलांतर के कोई सुराग
िमले ह�। मिस्तष्क को रेिडयेशन देने के कुछ अल्पकालीन कु�भाव जैसे अल्पकालीन स-लोप
(Short term
memory loss), थकावट, िमचली आ�द होते ह�।
पुनरावृि� क�सर का उपचार –
य�द क�सर क� शल्-��या, क�मोथेरेपी और /या रेिडयेशन �ारा उपचार करने के बाद क�सर दोबारा आ�मण कर देता
है तो इसे आवत� या पुनरावृि� क�सर कहते ह�। य�द पुनरावृि� क�सर फे फड़े म� �कसी एक जगह अविस्थत है तो शल्
�कया जा सकता है। पुनरावृि� क�सर म� �ायः क�मो क� वे दवाएं काम नह� करती ह� जो पहले दी जा चुक� ह�। इसिलए
अन्य दवाएं दी जाती ह�।
13. 13 | P a g e
फोटोडायनेिमक उपचार (PDT) –
य�द फे फड़े और कई अन्य क �सर का नया उपचार है। सभी �जाित और चरण� म� �दया जा सकता है। इसम� एक
फोटो�सथेसाइ�जग पदाथर्(ज�से पोरफाइ�रन जो शरीर म� �ाकृ ितक �प से पाया जाता है) शल्-��या के कु छ घन्टे
पहले िशरा म� छोड़ �दया जाता है। यह पदाथर् तेजी से िवभािजत हो रही कोिशका�(जैसे क�सर कोिशकाएँ) म� फै ल
जाता है। मुख्य ��या म� िच�कत्सक अमुक वैवल�थ का �काश क�सर पर डालता हैयह �काश ऊजार् फोटो�सथेसाइ�जग
पदाथर् को स��य कर देती ह, िजसके असर से क�सर कोिशकाएँ एक टॉिक्सन बनाती ह�। यह टॉिक्सन क�सर कोिशका
को मार डालता है। इस उपचार का फायदा यह है �क यह शल्-��या से कम आ�ामक है और इसे दोबारा भी �दया
जा सकता है। यह उपचार उन्ह� क �सर म� �दया जा सकता ह, िजन पर आप सुगमता से �काश डाल सकते ह� और यह
कई जगह फै ले आ�ामक क�सर म� नह� �दया जा सकता है। एफ.डी.ए. ने पोरफमर्र सोिडयम
(Photofrin) नामक
फोटो�सथेसाइ�जग पदाथर् को नॉन स्मॉल से(फे फड़े के क�सर) और भोजननली के क�सर के िलए �मािणत �कया है।
रेिडयो ����सी ऐबलेशन (RFA) –
रेिडयो ����सी ऐबलेशन उपचार फे फड़े के �ारं िभक क�सर के िलए शल्-��या के िवकल्प के �प म� उभरा है। इस
तकनीक म� त्वचा म� एक लम्बीसुई को सी.टी. क� मदद और �दशा-िनद�श म� क�सर तक घुसाया जाता है। इस सुई क�
नोक तक रेिडयो����सी �वािहत क� जाती है। इससे सुई क� नोक गमर् होकर क �सर को जला देती है और क �सर को र�
क� आपू�त करने वाली नस� को अव�� कर देती है। यह अमूमन ददर्रिहत उपचार है और ए.डी.ए. �ारा फे फड़े के
क�सर समेत कई क�सर के िलए �मािणत है। यह उपचार शल्य��या िजतना ही �भावशाली है और जोिखम ब�त कम
है।
�योगात्मक उपचार(clinical trials) –
फे फड़े के क�सर के िलए ऐलोपेथी म� अभी तक कोई भी सफल उपचार नह� है। इसिलए रोगी नये �योगात्मक उपचार
(clinical trials) भी ले सकता है। क्य��क ये उपचार अभी �योगात्मक दौर म� है और िच�कत्सक� के पास पया
जानका�रयाँ नह� है �क ये उपचार �कतने िनरापद और असरदार ह�। इसिलए रोगी जोिखम उठाते �ए यह उपचार
चाहे तो ले सकता है।
टारगेटेड थेरेपी–
नॉन स्मॉल सेल क �सर के िजन रोिगय� म� क�मो काम नह� कर पाती ह, उन्ह� आजकल टारगेटेड थेरेपी दी जाती है।
ऐलोपेथी के बड़े बड़े क�सर िवशेषज्ञ उत्सािहत होकर इस टारगेटेड थेरेपी क�सर उपचार म� खुशी क� नई लहर बता
कर उत्सव मना रहे ह�। वे कह रहे ह� �क हर क�सर म� एक ही दवा देने क� मानिसकता अब खत्म �ई समझो। टारगेटेड
थेरेपी लेने से पहले क�सर के नमूने लेकर जांच क� जाती है और पता लगाया जाता है �क अमुक क�सर म� कौन सा
म्यूटेशन�आ है। इसी के आधार पर टारगेटेड दवा का चयन �कया जाता है। अमे�रका क� 14 संस्थाएं यह जांच मुफ्
म� कर रही है। हालां�क अभी तक कई म्यूटेशन िचिन्हत �कये जा चुके , ले�कन सभी के िलए अभी टारगेटेड दवा
िवकिसत नह� हो पाई ह�। आजकल �ायः तीन म्यूटेशनEGFR, ALK और KRAS क� जांच क� जाती है।
नॉन स्मॉल सेल क �सर क� उप�जाित ऐडीनोका�सनोमा के
20% से 30% रोिगय� म� EGFR म्यूटेशन होता है।
इसम� इरलो�टिनब (Tarceva) और जे�फ�टिनब (Iressa) टारगेट दवाएं दी जाती ह�। ये टाइरोसीन काइनेज
इिन्हबीटर �ेणी म� आती ह�। टारगेटेड थेरेपी िवशेष तौर पर क �सर कोिशका� पर अिभलिक्षत होती, िजससे
सामान्य कोिशका� क� क्षित अपेक्षाकृत कम होती है। अरलो� और जे�फ�टिनब इिपडमर्ल �ोथ फ ेक्टर �रसेप
(EGFR) �ोटीन पर अिभलिक्षत होती ह�। यह �ोटीन कोिशका� के िवभाजन का बढ़ाने म� सहायता करता है। य
�ोटीन कई क�सर कोिशका� जैसे नॉन स्मॉल सेल क �सर कोिशका� के सतह पर बड़ी मा�ा म� िव�मान रहता है।
ह
गािलय� के �प म� दी जाती ह�। ये EGFR म्यूटेशन वाले क �सर रोिगय� का जीवनकाल बढ़ाती ह, ले�कन कु छ समय
बाद रोगी को इस दवा से �ितरोध ( resistance) हो जाता है। �फर भी इरलो�टिनब क� एक गोली रोगी क� जेब पर
4800 �पये का फटका है।
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नॉन स्मॉल सेल क �सर के लगभग 2% से 7% रोिगय� म� ALK (anaplastic lymphoma kinase) म्यूटेशन होता
है। ये रोगी �ायः युवा होते ह� और धू�पान (1-2% का छोड़ कर) नह� करते ह�। इसके िलए एक नई टारगेटेड दवा
��जो�टिनब (crizotinib) अनुमो�दत क� गई है। यह ALK को िनिष्�य करती है और क �सर क� संवृि� को रोकती है।
यह गांठ को छोटा करती है और लगभग 6 महीने तक तो िस्थर रखती है। फाइज़र कम्पनी �ारा िन�मत यह दव
ज़लकोरी नाम से उपलब्ध है। एक महीने क� दवा का खचार् िसफ पांच लाख �पये है। आिखर फे फड़े का कै सर एक
शाही बीमारी है।
टारगेटेड थेरेपी म� �टीएंिजयोजेनेिसस दवाएं भी शािमल क� गई ह�, जो क�सर म� नई र�-वािहका� के िवकास को
रोकती है। िबना र�-वािहका� के क�सर मर जायेगा। िबवेिसजुमेब
(Avastin) नामक �टीएंिजयोजेनेिसस दवा को
य�द क�मो के साथ �गितशील क�सर म� �दया जाता है तो यह रोगी का जीवनकाल बढ़ाती है। इसे िशरा म� हर दो से
तीन स�ाह म� �दया जाता है। इस दवा से
र��ाव का जोिखम रहता है, इसिलए उन
रोिगय� को नह� देना चािहये िजनको खांसी
के साथ खून आ रहा हो, जो
ऐन्टकोएगुल�शन दवा ले रहा हो या उसका
क�सर मिस्तष्क म� भी फैल गया हो। इस
स्�ेमस सेल का�सनोमा म� भी नह� देना
चािहये क्य��क इस म� र��ाव का खतरा
रहता है।
सेटु िक्समेब एक एंटीबॉडी है जो इिपडमर्
�ोथ फे क्टर �रसेप्टर से जुड़ जाती है। नॉ
स्मॉल सेल क �सर क� सतह पर य�द यह
EGFR �ा� है तो सेटु िक्समेब से लाभ हो
सकता है।
वैकिल्पक उपचार
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बुडिवग �ोटोकोल
आयुव�द और पंचकमर
होम्योपेथ
क्यूपंक्
शािन्, ध्यान यो
मािलश
िशवाम्बु िच�कत्
फलानुमान
फे फड़े के क�सर म� फलानुमान का मतलब रोगी का उपचार ( cure) या उसके जीवनकाल बढ़ने क� संभावना से है। यह
क�सर के आमाप, �जाित, स्थलांतर और रोगी के स्वास्थ्य पर िनभर्र करता
स्मॉल सेल �जाित का क �सर सबसे आ�ामक और तेजी से फैलने वाला क �सर है और य�द उपचार नह� �कया जाये तो
रोगी दो चार महीने ही जी पाता है। अथार्त दो से चार महीने म� आधे रोगी मर जाते ह�। स्मॉल सेल क�सर म� रेिडयेश
और क�मोथेरेपी अपेक्षाकृत अिधक असरदार मानी जाती है। क्य��क यह क�सर बड़ी तेजी से फैलता है और िनदान
समय ही शरीर म� कई जगह स्थलांतर हो चुका होता ह, इसिलए शल्य या स्थािनक रेिडयेशन उपचार का कोई खा
महत्व नह� है। य�द क�मोथेरेपी अकेले या अन्य उपचार के साथ दी जाती है तो रोगी का जीवन का4-5 गुना बढ़ने
क� संभावना रहती है। ले�कन सारे �पंच के उपरांत भी 5%-10% रोगी ही पांच वषर् जी पाते ह�।
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नॉन स्मॉल सेल क �सर का फलानुमान िनदान के समय उसके चरण stage पर िनभर्र करता है। य�द पहले चरण के
रोगी क� गांठ शल्य �ारा िनकाल दी जाती है तो
75% रोगी क� पांच वषर् जी लेते ह�। कुछ रोिगय� को रेिडयेशन
उपचार से थोड़ी राहत िमलती है। इस क�सर म� क�मो से रोगी के जीवन काल पर िवशेष फकर् नह� पड़ता है।
अन्य क �सर क� अपेक्षा फेफड़े के क�सर का फलानुमान ब�त खराब है। एलोपेथी के सारे उपचार और तामझाम
बावजूद िसफर्16% रोगी पांच वषर् ही जी पाते ह�।
धू�पान - कांट� भरी डगर
जीवन म� अच्छे प�रवतर्न लाय!
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धू�पान छोड़ द�। अमे�रका
जैसे िबगड़ेल देश म� भी
4.48 करोड़ लोग� ने
धू�पान छोड़ �दया है तो
आप क्य� नह� छोड़ सकते।
िसगरेट छोड़ने का एक
िनि�त �दन तय करे और
उसे उत्सव क� तरह मनाय�।
अच्छी सोच िवकिसत कर�।
“म� धू�पान नह� छोड़
सकता �ँ ” या “मुझे िसगरेट
तो चािहये ही ” जैसे िवचार
�दमाग म� न लाकर सोिचये,
“मुझे स्वस्थ रहना ” और “म� अपना जीवन सुधार कर र�ँगा ”
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अपनी आदत� म� कु छ बदलाव लाइये। खाने के बाद थोड़ा घूमने िनकल�। च्यूइंग ग, फल और सिब्जयाँ
खाइये। मािलश करवाइये, खेल-कूद और तैराक� क�रये।
उन िस्थितय, जगह� और िम�� से दूर रहने क� कौिशश क�िजये, जहाँ या िजनके साथ आप अक्सर धू�पान
करते थे।
अपने प�रवार के अन्य सदस्य� को कह दीिजये �क आप धू�पान छोड़ रहे ह�। वे भी आपको धू�पान छोड़ने म
सहयोग कर�गे और आपका मनोबल बढ़ाय�गे।
धू�पान को अपना इितहास बना दीिजये। घर से िसगरेट, लाइटर, ऐश�े आ�द उठा कर बाहर फ�क दीिजये।
कपड़े, घर और दाँत साफ करवा लीिजये। आपक� कार और घर को धू�पान रिहत बना दीिजये। इन्सान चाहे
तो क्या नह� कर सकता है।
धू�पान छोड़ने हेतु सहायक उपचार
दवाएं
िसगरेट छोड़ने के िलए कु छ दवाएं ब�त �भावशाली सािबत �ई ह�। इनम� िनको�टन नह� होता है। ले�कन ये मिस्तष्
म� जाकर उन �रसेप्टसर् से िचपकती , जहाँ िनको�टन िचपक कर नशे और ताज़गी का झूँठा अहसास देती है। इससे
�दमाग को �म होता है �क शरीर को िनको�टन िमल रहा है और िसगरेट क� तलब नह� होती है। य�द �ि� िसगरेट
सुलगा भी लेता है तो उसे मजा नह� आता है क्य��क िनको�टन के �रसेप्टसर् तो पहले से ही तृ� होते (दवा के �भाव
के कारण) और िनको�टन �दमाग म� इधर उधर घूम कर समय िबताता है। ये दवाएं िसगरेट छोड़ने के एक या दो हफ्ते
पहले कम मा�ा म� ली जाती है और एक स�ाह बाद मा�ा बढ़ा दी जाती है। अमुक िनि�त �दन िसगरेट छोड़ दी
जाती है। इस उपचार को लगभग 3 महीने बाद बंद कर �दया जाता है। �ायः तब तक आपक� िसगरेट पीने क� आदत
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छूट चुक� होती है। इस हेतु बू�ोिपयोन (बू�ोन एस. आर. 150) और वरेिनक्लीन(चेिम्पक) महत्पूणर् है। वरिनक्ल
बू�ोिपयोन से जादा �भावशाली है। इन दवा� के म�ने जादुई असर देखे ह�। इनक� मा�ा इस �कार है।
बू�ोिपयोन (बू�ोन एस. आर.) पहले स�ाह 150 िम.�ाम. क� रोज क� एक गोली, दूसरे स�ाह से मा�ा बढ़ा कर
रोजाना दो गोली एक सुबह और एक शाम को 7-12 स�ाह तक देकर बंद कर द�।
वरेिनक्लीन(चेिम्पक) पहले स�ाह 0.5 िम.�ाम. क� रोज एक गोली सुबह एक गोली शाम को, दूसरे स�ाह से मा�ा
बढ़ा कर 1 िम.�ाम. क� रोज एक गोली सुबह एक गोली शाम को 12 स�ाह तक देकर बंद कर द�।
िनकोटीन च्यूइंग गम या पे
िसगरेट छोड़ने के साथ ही िनको�टन का पेच 16-24 घन्टे िचपका कर रख�। पेच क� जगह िनको�टन का च्यूइंग ग
(यह गुटखा के नाम से िमलता है) या इनहेलर भी �योग कर सकते ह�। इससे आपके िसगरेट क� तलब नह� होगी
क्य��क शरीर को िनको�टन तो िमल ही रहा है। �ायः3-6 महीने बाद जब आपको लगे �क िसगरेट क� आदत पूरी
तरह छूट गई है तो इसे बन्द कर द�।
काउं स�लग मनोिच�कत्सक से समूह म� या अकेले म� ले सकते ह�।
http://www.drugs.com/quit-smoking.html
http://www.drugsupdate.com/brand/showavailablebrands/674
http://www.unitedpharmacies-uk.com/product.php?productid=1373&cat=13&page=7
िसगरेट छोड़ने से कै से सुधरता है आपका भावी जीवन
िसगरेट छोड़ने
क� अविध
20 िमनट
12 घंटे
2 स�ाह – 3 महीने
1 – 9 महीने
आ�यर्जनक प�रणा
र�-चाप और �दय गित कम हो जाती है और हाथ-पैर� म� र� का �वाह बढ़ जाता है।
आपके र� म� काबर्न मोनोऑक्साइड का स्तर सामान्य हो जाता
आपका र� संचार सुधरता है और फे फड़े भली भांित कायर् करने लगते ह�।
खांसी और �ास क� काफ� कम हो जाता है, �ास निलय� क� आंत�रक सतह पर िस्थत रोम
(cilia) अपना कायर् सुचा� �प से करने लगते ह, फे फड़� म� जमा �ेष्म( mucus) साफ हो जाता है
और सं�मण का खतरा कम हो जाता है।
1 वषर
कोरोनरी �दय रोग का जोिखम पहले से आधा रह जाता है।
5 वषर
मुँह, गला, भोजन नली और मू�ाशय के क�सर का पहले से जोिखम आधा रह जाता है, गभार्शय
�ीवा (Cervix) के क�सर का जोिखम घट कर धू�पान न करने वालो के बराबर हो जाता है और
स्�ोक का जोिखम2-3 साल म� घट कर धू�पान न करने वालो के बराबर हो जाता है।
10 वषर
फे फड़े के क�सर के कारण होने वाली मृत्यु दर उन लोग� से आधी रह जाती है जो अभी भी िसगरेट
पी रहे ह� और स्वर यं�( larynx) और अग्न्याश( pancreas) के क�सर का जोिखम भी कम हो
जाता है।
15 वषर
कोरोनरी �दय रोग का जोिखम धू�पान नह� करने वाले �ि� के बराबर रह जाता है।
लंग क�सर पर जोक
एक बार सुपर स्टार शाह�ख खान िनमर्ल बाबा से उपाय मांगने गये और बोले बाबा लंग क�सर का खतरा ह
िसगरेट कै से छोड़ूँ। बाबा बोले िजस हाथ से िसगरेट पीते हो उसक� त�जनी और मध्यमा अंगुली मुझे दिक्ष
म� दे दो। कृ पा हो जायेगी और िसगरेट छूट जायेगी और हर िपक्चर का साइ�नग अमाउंट हमारे अकाउंट म�
जमा करवा �दया करो।