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गुद� क� गीता
गुद� का आिथर्क और सामािजक महत
गुदार् या वृक्क शरीर का बह�तमँहगा और दुलर्भ अंग है। आदमी का , �तबा, शान-शौकत,
बाज़ुओं क� ताकत सब कु छ गुद� के दम से ही होती है। आपके गुद� में द-खम है तो दुिनया
डरती है, सलाम करती है। गुद� के दम पर कई िबना पढ़े या कम पढ़े लोग भी नेता, मुख्य मंत्
या बड़े-बड़े ओहदों पर पह�ँच जाते हैं। िफर गुद� क� द-भाल और सुर�ा में हम कोई कोताही
क्यों बरतें। देख लीिजयेगा समय आने पर गुद� के मामले में-संबन्धी तथा इ-िमत्र िकनार
कर लेंगे और त-मन न्यौछावर करने वाली आपक� अंकशाियनी या चाँ-िसतारे तोड़ कर 
लाने वाला आपका बलमा भी धोखा दे जायेगा। गुदार् खरीदना भी आसान काम नहीं है। बाज़ा
में गुद� िसिमत ह, क�मतें आसमान को छू रही हैं और खरीदने वालों क� कतार बड़ी लम्बी 
भारत गुद� के  रोगों में भी िव� क� राजधानी है
िव� गुदार िदवस
इंटरनेशनल सोसायटी ऑफ  िकडनी
िडसीजेस और इंटरनेशनल सोसायटी 
ऑफ नेफ्रोलॉजी द्वारा लगातार बढ़ गुद�
संबंधी बीमारी को बढ़ता देख यह िदवस
मनाने का िनणर्य िलया गया िव�  गुदार
िदवस सन् 2006 से प्रत्येक वषर् माचर्
के दूसरे गु�वार को मनाया जाता है। इस
िदवस का मुख्य उद्देश्य लोगो गुदार
संबंधी रोगों के प्रित जाग�क करना और समस्या का िनदान करना
गुद� के गूढ़ रहस्य
1- गुद� में एक िमनट मे1200 एम.एल. और पूरे िदन में1700 लीटर र� प्रवािहत होता है
2- आधा गुदार् दोनों गुद� का कायर् आसानी से कर सकता ह
3- एक गुद� में10 से 20 लाख नेफ्रोन होते है
4- पूरे िव� में15 लाख रोगी डायिलिसस या प्रत्यारोिपत गुद� पर जीिवत ह
5- यिद एक गुद� क� सारी चलनी इकाइयों को जोड़ िदया जाये तो8 िकलो मीटर लम्बी निलका
बन जायेगी।  
6- अमे�रका में दो करोड़ लोग जीणर् वृक्क र( Chronic Kidney Diseases) से पीिड़त हैं
और दो करोड़ को वृक्क रोग होने क� सम्भावना है
7- 40 वषर् के बाद हर साल1% नेफ्रोन कायर् करना बंद कर देते, बचे ह�ए नेफ्रोन िवविधर्त 
कर िनिष्क्रय नेफ्रोन का कायर् संभाल लेते
8- गुद� का भार शरीर के  भार का मात्0.5% होता है परन्तु वे �दय द्वारा पंप िकये गये र� 
20-25% िहस्सा उपयोग करते हैं
9- यिद िकसी को ई�र ने एक ही गुदार् िदया हो तो वह िवविधर्त हो कर दोनों गुद� का का
संपािदत कर देता है।  
10- िव� में50 करोड़ लोग (कु ल जनसंख्या का10%) िकसी न िकसी वृक्क रोग से पीिड़त है
और लाखों लोग प्रित वषर् जीणर् वृक्क रोग से संबिन्धत �दय रोगों से समय पूवर् 
11- प्रत्यारोपण के िलए लगभग एक ितहाई गुद� िनकट संबिन्धयों द्वारा िदये जाते हैं 
ितहाई के डेवर से िनकाले जाते हैं।
12- डॉ. जोसफ ई मूरे ने िदसंबर, 1954 में बोस्टन के पीटर बेन्टिब्रंघम अस्पताल में 
पहला और सफल गुदार् प्रत्यारोपण जुड़वां भाइयों में िक  
संरचना
दोनोंगुद� बाहरवीं व� कशे�का से तीसरी किट कशे�का क स्तर प मे�दण्ड के दोन  तरफ 
उदरगुहा के पीछे सुरि�त रहते हैं। दायां गुदार् मध्यपट के ठीक नीचे और यक के पीछे िस्थत
होता है  तथा बायां मध्यपट के नीचे और प्लीहा के पीछे होता है प्रत्येक गुद� के शीषर् पर
अिधवृक्क ग्रंिथ होती है। दायां गुदार् बाएं क� तुलना में थोड़ा नीचे है और बायां गुदार् दाएं
क� तुलना में बड़ा और थोड़ा अिधक मध्यम में िस्थत होता  पूरा गुदार् तथा अिधवृक्क ग्र
वसा (पेरीरीनल व पैरारीनल वसा) तथा वृक् पट्ट(renal fascia) द्वारिस्थ रहते हैं।
प्रत्येक वयस्क गुद� का  115 से 170 ग्राम के बीच तथा मा 11-14 सेमी लंबा, 6 सेमी 
चौड़ा और 3 सेमी होता है। 
प्रत्येक गुद� में अवतल और सतहें पाई जाती हैं। अवतल स , िजसे वृक्क�य नािभका
(renal hilum) कहा जाता है, वह स्थान है जहां से वृक्क धमनी इसमें प्रवेश करती है
वृक्क िशरा तथ मूत्रवािहनी बाहर िनकलती है। गुदार् सख्त रेशेदार ऊतकों  रीनल कैप्सूल
(renal capsule) से िलपटा होता है।
गुद� का पदाथर् या जीिवतक(parenchyma) दो मुख्य संरचनाओं में िवभ� हो है।  ऊपरी 
भाग में वृक्क�य छा( renal cortex) और इसके  भीतर वृक्क�य मज्ज( renal medulla)
होती है। कु ल िमलाकर ये संरचनाएं ितकोने आकार के  आठ से अठारह वृक्क� खण्डों क
आकृ ित बनाती 
है, िजनमें से
प्रत्येक में म
के  एक भाग को
ढंकने वाली वृक्क
छाल होती है ,
िजसे वृक्क�य
िपरािमड कहा
जाता है। वृक्क�य
िपरािमडों के बीच
छाल के  उभार 
होते है , िजन्हे
वृक्क�य स्तं
कहा जाता है। 
नेफ्रॉ
(Nephrons) गुद�
क� मूत्र उत्प
करने वाली 
कायार्त्
संरचनाएं, छाल 
से लेकर मज्जा तक फैली होती हैं। नेफ्रॉन का प्रारंिभक श भाग छाल में िस्थ
वृक्क�य किणका( renal corpuscle) होता है  िजसके  बाद छाल से होकर मज्जात्म
िपरािमडों में गहराई तक जानी वाली एक वृक्क�य निल( renal tubule) पाई जाती है। एक
मज्जात्मक िक, वृक्क�य छाल का एक भा, वृक्क�य निलकाओं का एक समू होता है, जो
एक एकल संग्रहण निलका में जाकर �र� होती
प्रत्येक िपरािमड का िस या पेिपला ( papilla) मूत्र को लघु पुट( minor calyx) में
पह�ंचाता है, लघु पुटक मुख्य पुटको( major calyces) में जाकर �र� होता ह और मुख्य
पुटक वृक्क�य पेडू(renal pelvis) में �र� होता ह जो िक मूत्रनिलका जाती है।
कायर
अम्-�ार संतुलन , इलेक्ट्रोलाइट सान , कोिशके तर द्रव मा (extracellular fluid
volume) को िनयंित्रत करके और र�चाप पर िनयंत्रण रखते गुद� पूरे शरीर का संतुलन
बनाये रखते हैं।  गुद� इ काय� को स्वतंत्र �प से व अन्य अ िविश�तः अंतःस्रा तंत्र क
अंगों के साथ िमलकर या दोनों ही प्रकार से पूणर् करते हैं।  इन अंत काय� क� पूितर् के
िलये िविभन्न अंतःस्रावी हाम�न के बीच तालमेल क� आवश् होती है, िजनमें रेिन,
एंिजयोटेिन्ससII, एल्डोस्टेर, एन्टीडाययूरेिटक हॉम� और आिटर्यल नैिट्रयूरेिटक पेप्ट
आिद शािमल हैं
गुद� के काय� में से अनेक कायर् नेफ्रॉन में होने वाले प� , पुनः अवशोषण और स्रवण क
अपे�ाकृत सरल कायर्प्रणािलयों के द्वारा पूणर् िकये जा प�रशोधन जो िक वृक्क�य
किणका में होता ह, एक प्रिक्रया है िजसके द्वारा को तथा बड़े प्रोटीन र� से छाने जाते ह
और एक अल्ट्रािफल्ट्रेट का िनमार है, जो अंततः मूत्र बनता है। गुद� एक िदन म 180
लीटर अल्ट्रािफल्ट्रेट करते है, िजसका एक बह�त बड़ा प्रितशत पुनः अवशोिषत क
िलया जाता है और मूत्र क� लग 2 लीटर मात्रा क� उत्पन्न होती है। इस अल्ट्रािफल
र� में अणुओं क प�रवहन पुनः अवशोिषत कहलाता है। स्राव इसक� िवपरीत प्रिक् ,
िजसमें अणु िवपरी िदशा मे र� से मूत्र क� ओर भेजे जाते ह
अपिश� पदाथ� का उत्सजर
गुद� चयापचय के  द्वारा उत्पन्न होने वाले अनेक प्रकार के अपिश� उत्सिजर्त करते है
इनमें प्रोटीन चयापचय से उत्पन्न ना-यु� अपिश� यू�रया और न्यूिक्लक अम्ल 
चयापचय से उत्पन्न यू�रक अम्ल शािमल
अम्-�ार संतुलन
अंगों के दो तंत गुद� तथा यकृत अम्-�ार संतुलन का अनुर�ण करते है, जो िक पीएच (pH)
को एक अपे�ाकृत िस्थर मान के आ-पास बनाये रखने क� प्रिक्रया है। बाइकाब�(HCO3)
क� सान्द्रता िनयंित्रत करके गुद� अ-�ार संतुलन में योगदान करते है
परासा�रता िनयंत्
र� क� परासा�रता ( plasma osmolality) में यिद कोई उल्लेखनीय वृिद्ध होती है
मिस्तष्क में हाइपोथेलेमस को इसक� अनुभूित हो जाती है और वह सीधे िपट्युटरी ग्रंि
िपछले खण्ड स संवाद करता है। परासा�रता में वृिद्ध होने पर यह ग्रंिथ एन्टीडाययूरेिटक
(antidiuretic hormone) एडीएच (ADH) का स्राव करती  , िजसके प�रणामस्व�प गुद
द्वारा जल का पुनः अवशोषण बढ़ जाता है और मूत्र भी सान्द्र हो  जाता है। एडीएच
निलका में िस्थत मुख्य कोिशका( Principal Cells) से जुड़ कर एक्वापो�रन
(aquaporins) को िझल्ली में स्थानांत�रत करता , तािक जल सामान्यत अभेद्य िझल्
को पार कर सके  और वासा रेक्टा( vasa recta) द्वारा शरीर में इ पुनः अवशोषण िकया
जा सके , िजससे शरीर में प्लाज़्मा क� मात्रा में वृिद्ध
ऐसी दो प्रणािलयां  जो मेडूला में सोिडयम(नमक) क� परासा�रता बढ़ाती हैं। िजसके प्रभ
से पानी का पुनः अवशोषण बढ़ता है और शरीर में र� क� मात्रा बढ़ती हैं। दूसरी है यू
पुनचर्क्रण तथा एकल प्(single effect)। 
यू�रया सामान्यतः गुद� से एक अपिश� पदाथर् के �प में उत्सिजर्त िकया है।  लेिकन जब 
र� क� मात्रा कम होती है तथा परासा�रता बढ़ती है और एडीए( ADH) का स्राव होता है
इससे खुलने वाले एक्वापो�रन्( aquaporins) यू�रया के प्रित भी पारगम्य होते ह इससे
यू�रया का संग्रहण निलका से र� मेडूला में स्रवण होता है और मेडूला क� परासा�रता बढ़त
िजससे पानी का पुनः अवशोषण बढ़ता है।  इसके  बाद यू�रया नेफ्रॉन में पुनः प्रवेश कर 
है और इस आधार पर इसे पुनः उत्सिजर्त या पुनचर्िक्रत िकया जा सकता है।  िक ए
(ADH) अभी भी उपिस्थत है य नही.
‘एकल प्रभ’ इस तथ्य का वणर्न करता है िक हेनली क� मोटी आरोही बाँह पा के िलए  
पारगम्य नहीं , लेिकन सोिडयम के िलए है।  इसका अथर् यह है िक ए प्र-प्रवाही प्रण
countercurrent system िनिमर्त होती ह, िजसके  द्वारा मेडूला अिधक सान्द्र बन है 
और यिद एडीएच द्वारा संग्रहण निलका के एक्वापो�रन्स को खोल िदया ग तो पानी का
संग्रहण निलका में अवशोषण होता ह
र�चाप का िनयंत्
लंबी-अविध में र�चाप का िनयंत्रण मुख्यतः गुद� पर िनभर्र होता है। म ऐसा कोिशके तर 
द्रव उपखंड के अनुर�ण के माध्यम से होता, िजसका आकार र� में सोिडयम सान्द्रता 
िनभर्र करता है। हालांि, गुद� सीधे ही र�चाप का अनुमान नहीं लगा सकत, लेिकन नेफ्रॉन क
दूरस्थ निलका में िस्थत मेक्यूला डेन्सा कोिशकाएँ सोिडयम और क्लोराइड का अवशो
होने पर जक्स्टा ग्लोमेयुर्लर सेल्स को रेिनन स्राव करने का आग्रह
रेिनन उन रासायिनक संदेशवाहकों क� श्रृंखला का पहला सदस् , जो िमलकर रेिनन-
एंिजयोटेिन्सन तंत्र का िनमार्ण करते हैं।  रेिनन के स्राव से अंततः इस तंत्र मुख्य �प
से एंिजयोटेिन्सनII और एल्डोस्टेरॉन स्रािवत होते हैं।  प्रत्येक हाम�न अनेक कायर्प्
माध्यम से काय करता है, लेिकन दोनों ही गुद� द्वारा िकये जाने वाले सोिडयम क्लोराइड
अवशोषण को बढ़ाते है, िजससे कोिशके तर द्रव उपखंड का िवस्तार होता है और र�च
बढ़ता है।  इसके िवपरीत जब रेिनन के  स्तर कम  होता ह , तो एंिजयोटेिन्सन II और
एल्डोस्टेरॉन के स्तर घट जाते , िजससे कोिशके तर द्रव उपखंड का संकुचन होता है
र�चाप में कमी आती है।
हाम�न स्र
गुद� अनेक प्रकार के हाम�न का स्राव करत, िजनमें ए�रथ्रोपोइ, कै िल्सिट्रऑल और रेि
शािमल हैं।  ए�रथ्रोपीिटन को वृक्क�य प्रवाह में हाइ (ऊतक स्तर पर ऑक्सीजन क
िनम्न स्) क� प्रितिक्रया के �प में छोड़ा जाता है अिस्-मज्जा में ए�रथ्रोपोए
(लाल र� किणकाओं के  उत्पाद) को उत्प्रे�रत क है।  कै िल्सिट्र िवटािमन डी का
उत्प्रे�रत, कै िल्शयम के आन्त्र में  अवशोष फॉस्फेट के वृक्क�य पुनः अवशोषण क
प्रोत्सािहत करता है।
नेफ्रोन या वृक्क
नेफ्रोन या वृक्काणु गुद� क� संरचनात्मक और कायार्त्मक इकाई है। नेफ्रोन शब्द ग्र
νεφρός - नेफ्र = गुदार् शब्द से बना है। इसे यूरीनीफेरस ट्यूब्यूल भी कहते हैं। नेफ्र
मुख्य कायर् पहले र
का िनस्यंदन या
िफल्ट्र, िफर 
आवश्यक तत्वों 
पुनः अवशोषण और 
शेष दूिषत तत्वों क
मूत्र के �प म
उत्सजर्न कर शरीर म
पानी और िवद्यु
अपघट्य या
इलेक्ट्रोलाइट्स 
सांद्रता का िनयंत
करना है। नेफ्रोन शरीर से दूिषत पदाथ� का उत्सजर्न करत, र� के  आयतन, र�चाप तथा
पीएच का िनयंत्रण  करते हैं और इलेक्ट्रोलाइट्स तथा अन्य पदाथ� का िनयमन करते
कायर् शरीर के िलए बह�त महत्वपूणर् हैं और अंतःस्रावी हाम�न्स जैसे एन्टीडाइयूरेिट
ADH, एल्डोस्टीरोन और पेराथायराइड हाम�न द्वारा प्रभािवत होते हैं। सामान्यतः एक 8-
15 लाख नेफ्रोन होते , जो 10-20 ितकोनी िपरेिमड नामक संरचना में फैले होते हैं। नेफ्
का कु छ भाग कोट�क्स और शेष मेडूला में होता है।
नेफ्रोन के दो मुख्य भाग पहला आरंिभक िफल्ट्रेशन इकाई रीनल कोपुर्सल और दूसरा ट्
जहाँ िविभन्न पदाथ� का जिटल पुनः अवशोषण और स्रवण होता है। नेफ्रोन्स दो तरह के
हैं।1- कोिटर्कल नेफ्र- 85% नेफ्रोन कोिटर्कल नेफ्रोन होतऔर ये कोट�क्स में िस्थत हो
हैं।2- जक्स्टामेड्यूलरी नेफ् – ये मेड्यूला के पास िस्थत होते हैं। इनका लूप ऑफ हेनल
ज्यादा लम्बा होता है और मेड्यूला में ज्यादा गहराई तक जाता 
रीनल कोपुर्स
रीनल कोपुर्सल के दो घटक ग्लोमेयुर्
और बोमेन्स केप्स्यूल होते हैं। ग्लोमेय
एक र� के िशकाओं  Capillaries के
जाल से बना एक गेंद के आकार का गुच्छ
है जो अन्तरगामी धमिनका Afferent
arteriole से र� प्रा� करता है औ
बिहगार्मी धमिनकाEfferent arteriole
द्वारा  का िनकास करता है।   ध्यान रहे
र� का िनकास धमिनका Arteriole  से
होता है न िक िशरा से, इस िविचत्र बनावट के कारण ह
ग्लोमेयुर्लस में र� का दबाव पयार्� रहता है। बिहगा
धमिनका िवभािजत होकर वासा रेक्टा नामक एक महीन र�
के िशकाओं का जाल बनती है जो U के  आकार के  लूप ऑफ 
हेनली के साथ चलता है और अंत में वृक्क िशरा में ि
जाता है। वासा रेक्टा में पानी और कई तत्वों का प
अवशोषण होता है। 
बोमेन्स केप्स्यूल एक कप क� शक्ल क� दोहरी परत वाली एक संरचना होती है जो अपने अ
ग्लोमेयुर्लस को समाये रखती है। इसक� बाहर
परत साधारण स्क्वेमस इपीथीिलयम औ
अन्दर क� परत िवशेष तरह क� पोडोसाइट
कोिशकाओं से बनी होती है। बोमेन्स केप्स्य
से प्रोिक्समल कनवोिलयूट ट्युब्यू
िनकलती है। 
बोमेन्स केपस्यूल में िनस्यUltrafiltration
का मुख्य बल र�चाप का दबाव है। र� के
छनने क� िक्रया ग-चयनात्मक तथा पेिस्
(Non-selective & Passive) होती है। यह  अल्ट्रािफल्ट्रेशन जलीय दबाव के कारण ह,
इसमें काई सिक्रय या शि� (ए.टी.पी.) काम नहीं करती है। इस िनस्यन्दन क� प्रिक्
रसोई में प्रयोग में ली जाने वाली साधारण सी छेद वाली चलनी से क्या जा सकता है। जो 
छन कर िनकलता है उसे िफल्ट्रेट कहते हैं। ग्लोमेयुर्लस में र� का दबाव के कारण
लगभग 20 प्रितश पानी और सोल्यूट छन कर बोमेन्स केप्स्यूल में पह�ँचता है और शे
बिहगार्मी धमिनकाद्वा बाहर िनकल कर वासा रेक्टा में जाता है। ग्लोमेयुर्लर केिशकाओं
िभि�यों तथा बोमेन्स केपस्यूल क� अन्द�नी परत में पोडोसाइट कोिशकाओं के बीच ि
िछद्र होते हैं और जो कुछ इन िछद्रों में समा सकता है(पानी, प्लाज्मा में घुले ह
इलेक्ट्रोलाइ, ग्लूको, अमाइनो एिसड, पोषक तत्, यू�रया, काबर्िनक व अन्य दूिषत पदाथ
आिद सब कु छ) छन जाता है। िसफर ् �ेत व लाल र� क, प्लेटलेट्स और प्रोट(क्योंि
इनके  अणु बड़े होते है) नहीं छन पाते हैं
एक िमनट में र� क� िजतनी मात्रा छनती है उGlomerular Filtration Rate GFR या
वािहका गुच्छीय िनस्यन्दन करते हैं। पु�षों में.एफ.आर. 125 िमिल प्रित िमनट औ
ि�यों मे115 िमिल प्रित िमनट होत
है।  वैसे तो जी.एफ.आर. र�चाप पर 
िनभर्र करता है और र�चाप �दय के
संकु चन और िवस्तारण(Systole &
Diastole) के प्रभाव से िनरन्
उपर-नीचे होता है। परन्तु यहाँ िविचत
बात यह है िक जब तक औसत 
र�चाप (जो िसस्टोिलक और
डायस्टोिलक र�चाप का औसत ह)
80 mm से 180 mm क� सीमा में
रहता है जी.एफ.आर. िबलकु ल िस्थर रहता है। हाँ यिद औसत र�चाप80mm से कम होता है 
तो जी.एफ.आर. भी कम होने लगता है और यिद औसत र�चाप 180 mm से बढ़ता है 
जी.एफ.आर. भी बढ़ने लगता है।  जी.एफ.आर. का यह कड़ा और अनूठा िनयंत्रण तीन शि�या
करती हैं। ये है 1- ऑटोनोिमक नवर्स िसस्ट2- स्विनयंत्रण या ऑटो रेग्युलेशन3-
ट्युब्युल-ग्लोमेयुर्लर फ�डबे स्विनयंत में अन्तरगामी धमिनका र�चाप उ-नीचे होने
पर अपनी पेिशयों का िवस्तारण या संकुचन करके .एफ.आर. को िस्थर रखती हैंट्युब्युल-
ग्लोमेयुर्लर फ�डब- िडस्टल कनवोल्यूटेड ट्युब्युल में िफल्ट्रेट के दबाव घटने या ब
उसके  मेक्यूला डेन्सा सेल्स जक्स्टाग्लोमेयुर्लर यंत्र के द्वारा अन्तरगामी धमिनका
या संकु चन के िलए रासायिनक सन्देशवाहक पेराक्राइन्स भेज देते हैं .एफ.आर. िस्थर
बना रहता है। इस तरह हमने देखा िक र�चाप के  एक िनि�त सीमा तक घटने बढ़ने का
जी.एफ.आर. पर कोई फकर ् नहीं पड़ता है
प्रोिक्स
कनवोल्यूटेड
ट्युब्यू PCT
रीनल  ट्युब्यू के
बोमेन् के प्स्यूल स
लूप ऑफ हेनली तक
के  भाग को
प्रोिक्
कनवोल्यूटेड
ट्युब्यूल कहते हैं
इसक� खास िवशेषता
इसके  ब्रश बॉडर
कोिशकाएँ हैं। इसके
अन्दर क�
इपीथीिलयल कोिशकाओं पर घनी ब्रश के आकार क
माइक्रोिविल होती , इसिलए इन्हें ब्रश बॉ
कोिशकाएँ कहते हैं। इन माइक्रोिविल के का
अवशोषण सतह  कई गुना बढ़ जाती हैं। इनमें प्र
मात्रा में माइटोकोिन्ड्रया ह, जो सोिडयम के
सिक्रय अवशोषण के िलए उजार् प्रदान करते
प्रोिक्समल ट्युब्यूल को दो िहस्सोंमें बाँटा जा सकता है। पहला घुमावदार भाग जो गुद� के
िहस्से कोट�क्स में होता है और इपासर् कनवोल्यू और दूसरे सीधे भाग को पासर् रेक्टकहते
हैं  इन दोनों िहस्सों क� संरचना और कायर्-अलग होते हैं। कुछ अनुसन्धानकतार्ओं 
कायर्प्रणाली क� िभन्नता क� वजह पासर् कनवोल्यू को भी दो उपभागों S1 और S2 में
बाँटा है। इस तरह पासर् रेक्टको S3 कहते हैं यह बाहरी मेडूला में िस्थत रहता हैं और मेडू
में एक िनि�त स्तर पर लूप ऑफ हेनली से जुड़ता है। 
कायर्
प्रोिक्समल कनवोल्यूटेड ट्युब्यूल का मुख्य काय और िवद्युत अपघट्य पदाथ� क
Na+
/K+
ATPase पंप द्वारा सिक्रय पुनः अवशोषण होता है। िफल्ट्65 % पानी और
सोिडयम तथा 50 % पोटेिशयम और क्लोराइड का अवशोषण यहीं होता है। प्रोिक
ट्युब्यूल में िफल्ट्रेट क� परासा�रता में कोई बदलाव नहीं होता है क्योंिक पानी और स
दोनों का ही लगभग बराबर अवशोषण होता है। यानी बोमेन्स केप्सूल में िफल्ट्रेट क� परा
300 mOsM होती है और प्रोिक्समल ट्युब्यूल से िनकलने के बाद भी िफल्ट्रेट क� परा
300 mOsM होती है। 
प्रोिक्समल ट्युब्यूल
लगभग 100 % ग्लूको,
अमाइनो एिसड,
बाइकाब�नेट, अकाबर्िनक
फोसफोरस व अन्य पदाथ�
का पुनः अवशोषण सोिडयम 
के  ग्रेिडयेन्ट पर आधा�
को-ट्राँसपोटर् चेनल द्वार
जाता है। लगभग 50% यू�रया
का पुनः अवशोषण भी यहीं
हो जाता है। 
पेराथायरॉयड हाम�न
प्रोिक्समल ट्युब्यूल
फोसफोरस का अवशोषण
कम करता है, लेिकन साथ 
ही आँतों तथा हड्िडयों स
फोसफोरस लेकर र� में
पह�ँचाता है और इस तरह र� में फोसफोरस के स्तर में कोई बदलाव नहीं होता 
हेनली का मोड़ या लूप ऑफ हेनली
लूप ऑफ हेनली मेडूला में िस्थत नेफ्रोन का लूप के आकार का वह भाग है जो प्रो
कनवोल्यूटेड ट्युब्यूल को िडस्टल कनवोल्यूटेड ट्युब्यूल से जोड़ता है। यह नेफ्रोन का ब
महत्वपूणर् और िविचत्र भाग है।  इसक� खो.जी.जे.हेनली ने क� थी और अपना नाम भी 
िदया था। इसका मुख्य कायर् मेडूला में सोिडयम क� परासा�रता बढ़ाना है। जैसे जैसे लूप 
हेनली नीचे क� ओर बढ़ता है सोिडयम क� परासा�रता 300 mOsM से बढ़ते-बढ़ते 1200
mOsM तक पह�ँच जाती है। यानी सरल शब्दों में कहें तो जैसे जैसे हम मेडूला में केन्द्
बढ़ेंगे तो मेडूला ज्यादा और ज्यादा नमक�न होता जाये
इसे पाँच भागों में बाँटा जा सकता है
1- मोटा िडसेिन्डंग लूप ऑफ हेनल
2- पतला िडसेिन्डंग लूप ऑफ हेनल
3- पतला असेिन्डंग लूप ऑफ हेनली
4- मेडूला में िस्थत मोटा असेिन्डंग लूप ऑफ हेन
5- कोट�क्स में िस्थत मोटा असेिन्डंग लूप ऑफ हे
िडसेिन्डंग लूप
ऑफ हेनली में
आयन्स और
यू�रया के िलए 
पारगम्यता लगभग
न के  बराबर होती है 
परन्तु पानी के िलए
यह पूणर्तया
पारगम्य होती है।
चूँिक जैसे जैसे
मेडूला में िडसेिन्डं
लूप नीचे क� ओर जाता है बाहर सोिडयम यानी नमक क� परासा�रता बढ़ती जाती है तथा
उसके  रसाकषर्ण से पानी का पुनः अवशोषण होता है। इसके फलस्व�प लूप में सोल्यूट स
होता जाता है तथा उसक� परासा�रता भी बढ़ती जाती है और नीचे आते-आते 1200 mOsM
तक पह�ँच जाती है। िडसेिन्डंग लूप चूँिक आयन्स के िलए पारगम्य नहीं होता है इसिलएय
सोिडयम आिद आयन्स का कोई अवशोषण या स्रवण नहीं होता 
असेिन्डंग लूप ऑफ हेनली क� उपकला( Epithelium) क� आँत�रक िझल्ली म Na-K-2Cl
के �रयर (जो सोिडयम साँद्रता क� क्रिमकता के द्वारा इनका अवशोषण क) तथा बाहरी 
आधारी िझल्ली में कई सोिड-पोटेिशयम पंप और पोटेिशयम /क्लोराइ कोट्राँसपोटर्र प
होते हैं। िडसेिन्डंग िलम्ब सोिडयम और अन्य आयन्स के िलए पारगम्य होता है परन्तु प
िलए पारगम्य नहीं होता है। असेिन्डंग लूप ऑफ हे मेंसिक् प�रवहन द्वारा सोिड,
पोटेिशयम और क्लोराइड आयन्स का पुनः अवशोषण होता है। असेिन्डंग लूप पानी के िल
पारगम्य नहीं होने के कारण पानी का कोई अवशोषण नहीं होता है यानी कोई रसाकषर्ण 
होता है। असेिन्डंग लूप में पोटेिशयम चेनल से पोटेिशयम का पेिस्सव स्रवण भी होता है
पोटेिशयम के स्रवण के कारण सोिड, के लिशयम और मेगनीिशयम का भी पेिस्सव पुनः
अवशोषण होता है। इस सबके प�रणाम स्व�प असेिन्डंग लूप में सोल्यूट क� साँद्रता कम
जाती है और सोल्यूट क� परासा�रता1200 mOsM से घटते-घटते िडस्टल कनवोल्यूटे
ट्युब्यूल तक100mOsM रह जाती है, यानी िफल्ट्रेट हाइपोटोिनक हो जाता है।
लूप ऑफ हेनली को र� क� आपूितर् बिहगार्मी धमिनक Efferent arteriole से िनकलने
वाली के िशकाओं के  जाल से होती है जो लूप के साथ िलपटती ह�ई चलती है। इसे वासा रेक्टा
कहते हैं और इसका आकार लूप क� तरह होने के कारण मेडूला में सोिडय(नमक) साँद्रत
क� अनूठी क्रिमक (Gradient) बनी रहती है।  िडसेिन्डंग लूप से रसाकषर्ण के द्वारा
पानी का अवशोषण अन्तरालीय स्थाinterstitium में होता है वहवासा रेक्टा में अवशोिष
हो जाता है। वासा रेक्टा में र� का प्रवाह कम होने के कारण परासरणीय संतुलन बनने
समय लगता है और मेडूला में वाँछनीय नमक क� साँद्रता बनी रहती
इस तरह लूप ऑफ हेनली में पानी का25 %, सोिडयम  तथा क्लोराइड का25 % और 
पोटेिशयम का 40% पुनः अवशोषण होता है। 
  
दूरस्थ कु ँडिलत निलका या िडस्टल कनवोल्यूटेड ट्युब्DCT
िडस्टल कनवोल्यूटेड ट्युब्यूल लूप ऑफ हेनली और कलेिक्टंग डक्ट के बीच का घुमा
खण्ड है। इनके अन्दर सामान्य क्युबॉयडल इिपथीिलयम कोिशकाएँ होती  इसक�
इिपथीिलयम कोिशकाएँ PCT से छोटी हाती हैं। इसका ल्यूमन अपे�ाकृत बड़ा होता है। इसम
भी माइटोकोिन्ड्रया बह�त होते हैं।जहा.सी.टी. ग्लोमेयुर्लस क� अन्तगार्मी धमिनका को छ
है, वहाँ उसमेंक्युबॉयडल इिपथीिलयम के स्थान पमेक्यूला डेन्सा नाम क� गहरे रंग क� स्
और बड़े न्यूिक्लयस वाली घनी कोिशकाएँ होती हैं। ये सोिड(नमक) के प्रित संवेदनशी
होती हैं। और सोिडयम को चखती रहती हैं। जैसे ही इन्हें लगता हैं ि.सी.टी.  में सोिडयम
कम है (मतलब र�चाप कम हो रहा है) तो ये जक्स्टाग्लोमेयुर्लर कोिशकाओं को रेिनन 
करने का आग्रह करती हैं तािक र�चाप सामान्य हो सक
कायर                  
िसफर ्15-20% िफल्ट्रेट ही यहाँ पह�ँचता है। यहाँ पोटेि, सोिडयम, के लिशयम और पीएच 
का आँिशक िविनयम होता है। होम�न आधा�रत के लिशयम का िनयंत्रण यही होता है। इसक
अन्दर क� सतह पर पेिस्सव थायज़ाइ(एक मूत-वधर्क दव) संवेदनशील सोिडयम पोटेिशयम 
कोट्राँसपोटर्र होते हैं जो केलिशयम के िलए भी पारगम्य होते हैं। उपकला क� -पाि�र्क
सतह (र�) पर ए.टी.पी. िनभर्र सोिडय /पोटेिशयम एन्टीपोटर् प, आंिशक सिक्र
सोिडयम/के लिशयम ट्राँसपोटर्र एन्टीपोटर्.टी.पी. िनभर्र केलिशय ट्राँसपोटर्र होते ह
आधारीय-पाि�र्क सतह पर .टी.पी. िनभर्र सोिडय/पोटेिशयम पंप सोिडयम साँद्रता बढ़ाता ह
िजससे सोिडयम/क्लोराइड िसन्पोटर् द्वारा सोिडयम का और  स /के लिशयम ट्राँसपोटर
एन्टीपोटर् से केलिशयम का अवशोषण होता है
• डी.सी.टी. पीएच का िनयंत्रण बाइकाब�नेट के अवशोषण और प्रो(हाइड्रो) के
स्रवण या प्रोटोन के अवशोषण और बाइकाब�ने ट के स्रवण द्वारा क
• सोिडयम और पोटेिशयम का िनयंत्रण पोटेिशयम के स्रवण और सोिके  अवशोषण
से करता है। दूरस्थ निलका में सोिडयम का अवशोषण ऐल्डोस्टीरोन होम�न द
प्रभािवत होता है। ऐल्डोस्टीरोन सोिडयम का अवशोषण बढ़ाता है। सोिडयम
क्लोराइड का पुनः अवशोषण WNK काइनेज (ये चार तरह के  होते है) द्वारा भ
प्रभािवत होता है
• के लिशयम का िनयंत्रण पेराथायरॉयड हाम�न के प्रभाव से केलिशयम के पुनः अवश
द्वारा करता है। पेराथायरॉयड हाम�न केलिशयम को िनयंत्रण करने वाले प्रोटीन 
फोस्फेट ऑयन जोड़ करदूरस्थ निलका में सभी ट्राँसपोटर्रों का िनमार्ण कर
कलेिक्टंग डक्ट त
संग्रहण निलका तंत्र या कलेिक्टंग डक्ट तंत्र एक निलक िडस्टल ट्युब्यूल ये शु� होत
है और  िजसमें कई दूरस्थ कुँडिलत निलका या िडस्टल ट्युब् जुड़ती जाती हैं और यह
कोट�क्स से और मेडूला को पार करती ह�ई अंत में रीनल केिलक्स में खुलती है। यह प
अवशोषण और स्रवण के द्वारा पानी और -अपघट्य के सन्तुलन में मदद करता है। यहा
इस िक्रया में ऐल्डोस्टीरोन और ऐन्टीडाययूरेिटक हाम�न क� भूिमका भी महत्वपूणर् ह
कलेिक्टंग डक्ट तंत्र के भी क-खण्ड कलेिक्टंग ट्युब्, कोिटर्कल कलेिक्टंग डक्ट 
मेड्यूलरी कलेिक्टंग डक्ट होते है
कायर                  
यह पानी और िवद्-अपघट्य के सन्तुलन करने वाले तंत्र का आिखरी भाग है। यहाँ लग
5% सोिडयम और पानी का पुनः अवशेषण होता है। परन्तु तीव्र िडहाइड्रेशन होने प
24% से भी ज्यादा पानी का पुनः अवशोषण कर सकता है। संग्रहण निलका तंत्र पानी के
पुनः अवशोषण में इतना फकर् इस तंत्र के हाम�न्स पर िनभर्रता के कारण आत संग्रह
निलका तंत्र का आिखरी भाग ऐन्टीडाययूरेिटक होम(ADH) के िबना पानी के िलए पारगम्य
नहीं है।
• ऐन्टीडाययूरेिटक होम�न क� अनुपिस्थित में िफल्ट्रेट से पानी का अवशोषण न
पाता है और मूत्र ज्यादा आता ह
• एक्वापो�र-2 िप्रिन्सपल सेल क� आंत�रक उपकला और पूरी कोिशका में फ
पुिटका या वेजाइकल में पाये जाते हैं। ये वाज़ोप्रेिसन ऐन्टीडाययूरेिटक होम�न क�
उपिस्थित में पानी का अवशोषण करते हैं और मूत्र को साँद्र बना
• संग्रहण निलका तंत्र क्ल, पोटेिशयम, हाइड्रोजन और बाइकाब�नेट का भ
सन्तुलन रखते हैं।
• संग्रहण निलका तंत्र  में थोड़ा सा यू�रया भी अवशोिषत होता
• इस खण्ड मे
यिद र� का
पीएच कम हो
तो प्रोटोन पं
प्रोटोन्स 
स्रवण क
पीएच को
सन्तुिलत
करता है। 
संग्रहण निलका तंत्र
हर भाग में दो प्रकार 
कोिशकाएँ इन्टरकेलेट
सेल्स और िविश� प्रकार का कोिशका(जो हर उप-खण्ड में अलग तरह क� होती ) होती हैं।
कलेिक्टंग डक्ट में ये िविश� कोिश िप्रिन्सपल सेल कहलाती है। ये िप्रिन्सपल स
आधारीय-पाि�र्क िझल्ली में िस्थत सोिडयम और पोटेिशयम चेनल्स के द्वारा सोि
पोटेिशयम का सन्तुलन रखते हैं।  ऐल्डोस्टीर.टी.पी. िनभर्र सोिडय /पोटेिशयम पंपों क�
सँख्या बढ़ाते हैं और सोिडयम का पुनः अवशोषण तथा पोटेिशयम का स्रवण बढ़ाते 
इन्टरकेलेट सेल्स अलेफा और बीटा प्रकार के होते हैं तथा र� का पीएच िनयंत्रण में
करते हैं।
इस तरह उत्सिजर्त होने वाले मूत्र क� परासा�1200 mOsm/L (प्लाज्मा से चार गु)
और मात्र1200 ml/day होती है जो GFR का 0.66% है। 
जक्स्टा ग्लोमेयुर्लर
जक्स्टा ग्लोमेयुर्लर 
वृक्क क� एक सू�म
संरचना है जो नेफ्रोन म
र� क� आपूितर, र�चाप
और जी.एफ.आर. का
िनयंत्रण करती है। य
ग्लोमेयुर्लस के पास स
गुजरती दूरस्थ कुँडिलत
निलका और  ग्लोमेयुर्ल
के  बीच िस्थत होता ह,
इसीिलए इसे जक्स्टा ग्लोमेयुर(ग्लेमेयुर्लर के सम) यंत्र कहते हैं। यह तीन तरह 
कोिशकाओं से बनता है।  
1- मेक्यूला डेन्सा कोिशका- ग्लोमेयुर्लस के पास से गुजर दूरस्थ कुँडिलत निलका क�
घनी, लम्ब, बड़े व स्प� नािभक यु� और गहरी उपकला कोिशकाओं के मेक्यूला डेन्स
कोिशकाएँ कहते हैं ये सोिडयम (नमक) के प्रित संवेदनशील होती हैं और उसे चखती रह
हैं। ज.एफ.आर. कम होने पर  समीपस्थ निलका में िफल्ट्रेट का बहाव धीमा हो जाता ह
सोिडयम का अवशोषण बढ़ जाता है। फलस्व�प दूरस्थ निलका में सोिडयम क� मात्रा क
जाती है, िजसे मेक्यूला डेन्  महसूस कर लेता है और नाइिट्रक ऑक्साइड 
प्रोस्टाग्लेिन्डन के स्राव के द्वारा जक्स्टा ग्लोमेयुर्लर सेल्स को रेिनन स्
करते हैं। तथा ये सोिडयम कम होने पर पेराक्राइन का स्राव करते हैं जो अंतगार्मी धमि
संकु चन कर जी.आफ.आर. बढ़ते हैं।
2- जक्स्टा ग्लोमेयुर्लर - ये बिहगार्मी धमिनका में र�चाप को नापते रहते हैं और 
िस्थितयों में रेिनन का स्राव करते - बीटा 1 एड्रीनिजर्क उत्प्- बिहगार्मी धमिनका मे
र�चाप कम होना स- जी.एफ.आर. कम होने से मेक्यूला डेन्सा में नमक का अवशोषण 
होना। 
3- मेसेिन्जयल सेल
याद रिखये आरम्भ म डायबीिटक नेफ्रोपै का इलाज सस्त , शितर्य और िटकाऊ
है।  देर होने पर महंगा, क�दायक और सीिमत होगा।
मधुमेह के  मरीजो में गुद� क� िवफलता के जोिखम घटक
• सामान्यतः5 से 15 साल क� अविध तक आप मधुमेह से पीिड़त हों।
• आनुवंिशक कारणों से।
• उच्-र�चाप िनयंित्रत न हो
• र�-शकर ्रा िनयंित्रत में न 
• यिद आप धूम्रपान भी करते हो
• अिनयंित्रत कॉलेस्ट्र
डायबीिटक नेफ्रोपैथ
मधुमेह के दुष्प्रभावों से -धीरे गुद� का खराब होना बड़ी सामान्य बात हो गई ह, इस रोग को
डायिबटीक नेफ्रोपैथी कहते हैं। ट-2 डायिबटीज के  रोिगयों क� संख्या िवस्फोटक गित 
बढ़ रही है, साथ ही अच्छी िचिकत्सा सुिवधायें भी उपलब्ध है िजसके फलस्व�प डायि
के  रोगी ज्यादा िदन तक जीते है। अतः डायिबटीक नेफ्रोपैथी के रोिगयों क� संख्या भी बढ़
है। मधुमेह के 20 से 30 प्रितशत रोिगयों को नेफ्रोपैथी क� तकलीफ हो जा , यह संख्या
40% जा सकती है। मधुमेह में प्रायः गुद� तुरंत िवफल नहीं होते ह
• अब मधुमेह के  रोिगयों में गुदार् प्रत्यारोपण क� िच(ट्रान्सप्लान) संभव हो
गयी है। 
• हालही में ह�ई कई शोध से मालूम ह�आ है िक डायिबटीज रोिगयों में नेफ्रोपैथ
अवस्था से बचा जा सकता ह , यिद सही समय पर जाँच द्वारा इसका पता कर िलय
जाये।
• यिद मूत्र परी�ण के बाद मालूम हो जाता है िक मूत्र में एलब्यूिमन क� मात्रा िवस
रही है तो समझ लीिजए गुद� में नेफ्रोपैथी क� अवस्था होने जा रही है। यिद आ
पेशाब में24 घंटे में30 िम.ग्. से ज्यादा अल्ब्यूिमन जा रहा है तो इसे माइ
एलब्यूिमनु�रया कहते हैं24 घंटे के  एकित्रत मूत्र300 िम. ग्. से ज्यादा अल्ब्यूि
िनकले तो इसे िक्लिनकल एलब्यूिमनु�रया कहते हैं
• माइक्रो एलब्यूिमनु�रया होने  के ब20-40 प्रितशत रोगी िबना िकसी िविश� िचिकत्
के िक्लिनकल नेफ्रोपैथी क� अवस्था में चले जाते
• िक्लिनकल एलब्यूिमनु�रया यह भी बताता है िक मरीज को �दयाघात होने क
संभावना बढ़ गई है।  इसिलए अत्यंत आवश्यक हो जाता है िक  टा-2 मधुमेह रोगी 
को माइक्रो एलब्यूिमनु�रया के स्टेज में जांच द्वारा पता कर िलया जावे औ
बचाव के  उपाय शु� कर िदये जायें।
डायबीिटक नेफ्रोपैथी के चर
डायबीिटक नेफ्रोपैथी को पांच चरणों  में बांटा गया 
प्रथम चर – (प्रारंिभक डायिबट) डायिबटीज के  आरंिभक दबाव के  चलते
Glomerular Filtration Rate या वािहकागुच्छीय िनस्यन्दन दर मामूली बढ़त ले
है।  
िद्वतीय चर– (िवकासशील डायिबटीज) GFR बढ़ी रहती है या सामान्य हो जाती है परन्त
वृक्क के �ितग्रस्त होने से मूत्र में एल्ब्युिमन क( Microalbuminuria या
अत्यन्नसारम)  शु� हो जाता है। िद्वतीय चरण के रोगी में  एल्ब्युिमन का िव30 िम.ग्.
प्रि24 घंटे से ज्यादा होता है। यिद सतकर्ता न बरती जाये तो रोगी आगे चलकर गुदार् 
िवफलता का िशकार हो जाता है। अतः रोगी का समय-समय पर मूत्र परी�ण होना चािहय
तािक माइक्रोअलब्युिमनु�रया को आरंिभक अवस्था में ही पकड़ िलया जाय
तृतीय चरण – वृक्क क� �ित बढ़ने से रोगी को   िक्लिनकल  माइक्रोअलब्युिमनु�रय
जाता है। मूत्र का िडपिस्टक टेस्ट पोिजिटव आता है। इस चरण में  एल्ब्युिमन का 300
िम.ग्. प्रि24 घंटे से ज्यादा होता है और सामान्यतः र�चाप भी बढ़ जाता है
चौथा चरण – गुद� क� �ित जारी रहती है , मूत्र में एल्ब्युिमन का िवसजर्न और बढ़ जात
इस चरण में  गुद� क� �ित  इतनी बढ़ जाती है  िक र� में यू�रया और िक्रयेिटिनन बढ़ने ल
हैं।  कायर्प्रणाली काफ� प्रभािवत होत
पांचवा चरण – इस चरण मेंGFR बह�त कम होकर 10 ml प्रित िमनट तक पह�ँच जाता  ,
गुद� अपना कायर् करने में लगभग अ�म  हो जाते हैं और  डायलेिसस तथा   गुदार् प्रत्यार
िसवा कोई रास्ता नहीं बचता
डायिबटीक नेफ्रोपैथी के ल�
• आरंिभक अवस्था में कोई ल�ण नही
• हाथो, पैरों और चेहरे पर सूजन।
• वजन बढ़ना। 
• खुजली (आिखरी अवस्था म)। 
• सुस्ती (आिखरी अवस्था म)। 
• मूत्र में र� आना 
• �दय-गित दोष र� में पोटेिशयम क� मात्रा बढ़ने के कार
• पेिशयों का फड़कना। 
• जैसे जैसे गुद� क� �ित बढ़ती जाती है , गुदार् र� से दूिषत पदाथर् िवसिजर्त करने
किठनाई होती है और र� में दूिषत पदाथ� जैसे यू�रया आिद क� मात्रा बढ़ने लगती ह
इस िस्थित को यूरीिमया कहते हैं। यूरीिमया में रोगी -व्यस्त या कनफ्यूज हो जा
है तथा बेहोश होने लगता है।
और अंत मे ............ िजंदगी क� लड़ाई सम्पन्न हो जाती ह
डायिबटीक नेफ्रोपैथी का िनद
डायिबटीज के  रोगी में नैफ्रोपैथी के आरंिभक संकेतों और ल�णों को यिद समय रहते िच
कर िलया जाये और उनका सघन उपचार शु� कर िदया जाये तो हम  गुद� क� आरंिभक �ित 
को सही कर सकते हैं और बढ़ने से रोक सकते हैं या लम्बे समय तक गुद� को इस घात
कु प्रभाव से बचाये रख सकते हैं। इसके िलये हर बार िचिकत्सक को  माइक्रोअलब्युिमन
क� जांच करवानी चािहए। डायिबटीक नेफ्रोपैथहोने का पता आपको चल ही नहीं पायेगा जब
तक आप डॉक्टर के पासपरी�ण नहीं करवाएंगे
परी�ण
• मूत क� जांच पेशाब मे प्रोट का आना। यह अच्छा ल�ण नहीं ह
• र� मे यू�रया और िक्िटिनन का सामान्य से ज्यादा हो ।
• पेशाब मे लाल र� कोिशकाएं और पस सेल् ।
• िहमोग्लोिब क� कमी।
• र� मे कै िल्शय , पोटेिशयम और फोस्फोर क� जांच ।
• अल्ट्रासो जांच ।
• मूल �प से गुद� क� िवफलता  का पता बढ़े ह�ए यू�रया और िक्िटिनन से चलता है ।
डायिबटीक नेफ्रोपै से बचाव
• डायिबटीज और र�चाप का पूरा उपचार ।
• िनयिमत �प से िचिकत्सक�य परी�ण और र� क� जांच।
• खाने में नम, चब� और प्रोटीन क� मात्रा कम
• धूम्रपान न कर
• िनयिमत व्यायाम करें। वज़न को कम रख
• ददर् िनवारक गोिलयां िबना डाक्टरी सलाह के न ल
डायिबटीक नेफ्रोपैथी का उपच
आरिम्भक उपचा
• ब्लड शुगर को िबल्कुल सामान्य - इससे माइक्रो अल्बुमीनु�रया या बढी ह
नेफरोपैथीक� अवस्था को टाला जा सकता है।
• उच्च र�चाप का िनयंत-  अगर मधुमेह के  रोगी तो थोड़ा भी उच्च र�चाप है तो
नेफरोपैथी होने क� संभावना बढ़ जाती है। र�चाप को िनयंित्रत कर हम उनका जीव
दीघर् कर सकते हैं। टाइप वन मधुमेह में मृत्युदर94 प्रितशत से घटाक45
प्रितशत तक िकया जा सकता  , यिद र�चाप िनयंित्रत िकया जाये18 साल से
ज्यादा के रोिगयों में िसस्टोिलक र�130 एवं डायस्टोिलक80 से कम रखने क�
िहदायत दी जाती है। 
• गुद� को डायिबटीक नेफ्रोपैथी बचाने के िलए सबसे महत्वपूणर् Angiotensin-
Converting Enzyme Inhibitors ए.सी.ई. इन्हीबीटसर(इनालेिप्, िलिसनोिप्,
रेिम्प�र, ट्रेंडोलेिप्र)।  इसे िजसको उच्च र�चाप नहीं है उन्हें भी देने
सलाह दी गयी है।   िजन्हें.सी.ई. इन्हीबीटसर् के पा-प्रभाव हो जाते  , उन्हे
Angiotensin Receptor Blocker (ARB’s) ग्रुप क� दवाएं जैसे लोसाट ,
टेिल्मसाटर्न या ऑल्मेसाटर्न आिद देना चािहये। दवाओं का इस्तेमाल 
िचिकत्सक के परामशर् के बाद ही करें
• भोजन में प्रोटीन क� मात्रा क-
पहले के  ह�ए शोधों के अनुसार(जानवरों म) प्रोटीन कम देने से गुद� में इनट्राग्लो
प्रेशर कम पाया गया एवं नेफरोपैथी से बचाव क� संभावना उजागर ह�ई है। नये शोधों 
में बढ़ नेफरोपैथी ह�ई क� अवस्था मे0.8 ग्राम प. िकलो प्रितिदन के िहसाब स
प्रोटीन देने क� बात कही गयी ह
डायिलिसस
जब गुद� क� र� से अपिश� पदाथर्(यू�रया, िक्रयेिटि, िवद्य-अपघट्य या Electrolytes,
जल आिद) उत्सिजर्त करने क� �मता इतनी कम हो जाये िक वािहकागुच्छीय िनस्येदन दर
Glomerular Filtration Rate (GFR) घटते-घटते मात्10 एम.एल. प्र िमनट रह जाये तो
डायलेिसस या गुदार् प्रत्यारोपण ही िवकल्प बचते हैं। डायलेिसस  में एक अधर्पारगम्य
िझल्ली याSemipermeable membrane के  एक तरफ र� प्रवािहत और दूसरी तरफ ए
िवशेष तरह का Diasylate fluid या डायिलिसस द्रव िवपरीत िदशा में प्रवािहत िकया जात
जो र� से िवसरण और रसाकषर्ण या Diffusion & Osmosis क� प्रिक्रया द्वारा 
पदाथर् खींच लेता है
डायिलिसस के िलए संके त
• जी एफ आर 10 एम.एल. प्रिमनट से कम हो जाये। 
• वृक्-वात या Kidney Failure के  ल�ण िदखाई देने लगे। 
• तीव्र �-क� या breathlessness, र� में पोटेिशयम क� मात्रा अत्यािधक हो ,
र�स्र, पेरीकाडार्इिटस या एनकेफेलोपेथी होने पर तुरन्त आपातकालीन डायिलिस
िकया जाता है। 
हीमोडायिलिसस
हमारे देश में हीमोडायिलिसस ही ज्यादा प्रचिलत है। इस प्रिक्रया में हर बार दो मोट
लगानी पड़ती है, 300 ये 500 एम एल प्रित िमनट क� गित से काफ� सारा र� िनकाला जात
है, इसिलए फूली ह�ई नसें होना अितआवश्यक हैं। हीमोडायिलिसस के िलए शरीर से 
िनकालने के िलए िनम्न तीन िवकल्प होते है
आट��रयो-वीनस िफस्ट्यूला या धमनी िशरा भगन्द
लम्बी अविध महीन-सालों तक
हीमोडायिलिसस करने के िलए सबसे ज्यादा
उपयोग क� जाने वाली यह पद्धित सुरि�
होने के कारण उ�म है। सामान्यतः जी एफ
आर 30 एम एल प्रित िमनट से क
(लेफ्रोपोथी क� चौथा च)  होने पर एक
छोटी सी शल्य िक्रया द्वारा बायी कला
िशरा और धमनी को आपस में जोड़ कर
िफस्ट्यूला बना िदया जाता है। धमिनयों म
िशराओं क� अपे�ा र� का दबाव बह�त
अिधक होता है िजसके कारण चार स�ाह में हाथ क� नसों में पयार्� फुलाव आ जाता है।
फूली ह�ई नसों में दो अ-अलग जगहों पर िवशेष प्रकार क� दो मोटी िफस्ट्यूला नीडल ड
जाती है। इन िफस्ट्यूला नीडल क� मदद से हीमोडायिलिसस के िलए र� बाहर िनकाला जाता
है और शुद्ध करने के बाद शरीर में अन्दरपह�ँचाया जाता है। िफस्ट्यूला िकये गये हाथ से
दैिनक कायर् िकये जा सकते हैं
ए.वी. िफस्ट्यूला का लम्बे समय तक संतोषजनक उपयोग करने के िलए क्या सावधा
ज�री होती है?
ए.वी. िफस्ट्यूला क� मदद से लम्बे सम(सालो)
तक पयार्� मात्रा में डायिलिस िलए र� िमल 
सके  इसके िलए िनम्निलिखत बातों का ध्यान रख
आवश्यक है-
• ए.वी. िफस्ट्यूला यिद ठीक से काम करे तो ही
हीमोडायिलिसस के िलए उससे पयार्� र� िलया जा सकता है। सं�ेप म, डायिलिसस
करानेवाले रोिगयों क� जीवन डोर .वी. िफस्ट्यूला क� योग्य कायर्�मता पर आधा�
होती है। 
• िफस्ट्यूला बनाने के बाद नस फूली रहे और पयार्� मात्रा में उससे र� िमल सके
िलए हाथ क� कसरत िनयिमत करना आवश्यक है। िफस्ट्यूला क� मदद स
हीमोडायिलिसस शु� करने के  बाद भी हाथ क� कसरत िनयिमत करना अत्यंत ज�री है।
• र� के दबाव में कमी होने के कारण िफस्ट्यूला क� कायर्�मता पर गंभीर असर 
सकता है, िजसके कारण िफस्ट्यूला बंद होने का डर रहता है। इसिलए र� के दबाव मे
ज्यादा कमी न हो इसका ध्यान रखना चािहए
• िफस्ट्यूला कराने के बाद प्रत्येक मरीज को िनयिमत �प से िदने में तीन(सुबह,
दोपहर और रात) यह जाँच लेना चािहए िक िफस्ट्यूला ठीक से काम कर रही है या नहीं
ऐसी सावधानी रखने से यिद िफस्ट्यूला अचानक काम करना बंद कर दे तो उसका
िनदान तुरंत हो सकता है। शीघ्र िनदान और योग्य उपचार  से िफस्ट्यूला िफर से 
करने लगती है। 
• िफस्ट्यूला कराये ह�ए हाथ क� नस में कभी भी इंजेक्शन या िड्रप नहीं लेना चािह
नस से परी�ण के िलए र� भी नहीं देना चािहए।
• िफस्ट्यूला कराये हाथ पर ब्लडप्रेशर नहीं मापना च
• िफस्ट्यूला कराये हाथ से वजनदार चीजें नहीं उठानी चािहए। साथ, ध्यान रखना
चािहए िक उस हाथ पर ज्यादा दबाव नहीं पड़े। खासकर सोते समय िफस्ट्यूला करा
हाथ पर दबाव न आए उसका ध्यान रखना ज�री है
• िफस्ट्यूला को िकसी प्रकार क� चोट न , यह ध्यान रखना ज�री है। उस हाथ मे
घड़ी, जेवर (कड़ा, धातु क� चूिड़याँ ) इत्यािद जो हाथ पर दबाव डाल सके उन्हें न
पहनना चािहए।
• ए.वी. िफस्ट्यूला क� फूली ह�ई नसों में अिधक दबाव से साथ बड़ी मात्रा में र� प
होता है। यिद िकसी कारण अकस्मात् िफस्ट्यूला में चोट लग जाए और र� बहने लगे 
िबना घबराए, दूसरे हाथ से भारी दबाव डालकर र� को बहने से रोकना चािहए। 
हीमोडायिलिसस के प�ात् इस्तेमाल क� जानेवाली पट्टी को कसकरबाँधने से र� 
बहना असरकारक �प से रोका जा सकता है। उसके  बाद तुरंत डॉक्टर से संपकर् करन
चािहए। बहते र� को रोके िबना डॉक्टर के पास जाना जानलेवा हो सकता है। यिद ऐसी
िस्थित में र� के बहाव पर तुरंत िनयंत्रण नहीं िकया जा सके तो थोड़े समय में मर
मौत भी हो सकती है।
• िफस्ट्यूला वाले हाथ को साफ रखना चािहए और हीमोडायिलिसस कराने से पहले हाथ
को जीवाणुनाशक साबुन से धोना चािहए। 
• हीमोडायिलिसस के  बाद िफस्च्युला से र� को िनकलने से रोकने के िलए हाथ पर खा
पट्ट(Tourniquet) कस कर बाँधी जाती है। यिद यह पट्टी लंबे समय तक बंधी रह ज,
तो िफस्ट्यूला बंद होने का भय रहता है।
आट��रयो वीनस ग्राफ
िजन रोिगयों में नसों क� िस्थित िफस्ट्यूल
िलए योग्य नहीं , तो उनके िलए ग्राफ्ट 
उपयोग िकया जाता है।  इसमें शल्य िक्रया द
एक लूप के  शक्ल क� कृित्रम नली हाथ या पै
क� धमनी और िशरा के  बीच जोड़ दी जाती है। 
यह दो स�ाह में तैयार हो जाता है। इसमें सुइया
कृ ित्रम नली में लगाई जाती हैं। मँहगा होने
कारण यह बह�त कम प्रयोग िकया जाता है
हीमोडायिलिसस के थेटर
आपातकालीन प�रिस्थितयों में पहली बार तत्
हीमोडायिलिसस करने के िलए यह सबसे प्रचिलत पद्धित है।
के थेटर गदर्न या जाँघ क� मोटी िशराओं( Internal Jugular,
Subclavian or Femoral vein) में रखे जाते हैं। यह केथेट
बाहर के  भाग में दो अल-अलग िहस्सों में िवभािजत होता ह
िबना कफ के के थेटर कु छ ही हफ्तों तक प्रयोग िकये जा स
है, उसके  बाद संक्रमण या र� स्राव का भय रहता है। ले
कफ वाले के थेटर छोटी सी शल्य िक्रया द्वारा लगाये जा 
हैं और दो साल तक चल सकते हैं
डायिलिसस के िलए आवश्यकताए
• िफस्ट्यूला द्वारा फूली नसें
ग्राफ्ट या केथे
• डायिलिसस मशीन जो र� को
पंप करती है और पूरी प्रिक्रया
देखरेख करती है।   
• कृ ित्रम गुदार् या डायलाइज़र 
र� का शुद्धीकरण करता है
• डायलाइसेट द्रव जो र� से दूिष
पदाथर् खींचता है
हीमोडायिलिसस मशीन
डायलाइजर
डायलाइज़र आठ इन्च लम्बी और डेढ़ इन्च मोटी पारदशर्क प्लािस्टक क� नली से बनत
इसमें िवशेष तरह के प्लािस्टक क� अधर्पारगम्य िझल्ली से बनी दस हजार बाल जैसी अं
पोली महीन निलयाँ होती हैं। डायलाइज़र के उपर और नीचे के भागों में ये पतली निलयाँ इक
होकर बड़ी नली बन जाती है, िजससे शरीर से र� लाने वाली और ले जाने वाली मोटी निलयाँ 
जुड़ जाती हैं। डायलाइज़र के उपरी तथा नीचे के िहस्सों में बगल में डायिलिसस द्रव क
और िनकास के िलए मोटी निलयाँ जुड़ी ह�ई होती हैं।
डायिलिसस में र� प�रवहन प
हीमोडायिलिसस मशीन
आइये मैं जिटल सी िदखने वाली डायिलिसस
मशीन से आपका प�रचय करवा दूँ। 
हीमोडायिलिसस क� प्रिक्रया चार घन्टे तक 
है। उस बीच शरीर का सारा र� 12 बार शुद्ध होत
है। यह सामान्यतः स�ाह मे3 या 4 बार िकया
जाता है। यह एक बार में शरीर से250-300 िम.ली.
र� प्रित िमनट पंप द्वारा तेज गित से खीं
कृ ित्रम गुद� या डायलाइज़र में पह�ँचाती है।  र� 
शुद्धीकरण यहीं होता है। यहाँ आनेवाला र� 
िसरे से अन्दर जाकर हजारों पतली निलकाओं म
बंट जाता है। डायलाइज़र में दूसरी तरफ से दबाव
के साथ आनेवाला डायिलिसस द्रव र� क
शुद्धीकरण के िलए पतली निलयों के आसप
िवपरीत िदशा में प्रवािहत होता है। । इस तरह 
व्यवस्था में अधर्पारगम्य िझल्ली के एक त
और दूसरी तरफ डायलाइसेट रहता है। इस िक्रया में पतली निलयों से र� में उप
क्र�एिटि, यू�रया जैसे उत्सज� पदाथर् डायिलिसस द्रव में िमल कर बाहर िनकल जाते है
तरह डायलाइज़र में एक िसरे से आनेवाला अशुद्ध र� जब दूसरे िसरे से िनकलता , तब वह 
साफ ह�आ  शुद्ध र� होता है।  साफ र� शरीर में वापस पंप कर िदया जाता है। शरीर से बा
आने पर र� के  जमने क� आशंका रहती है इसिलए इसमें एक िहपे�रन पंप द्वारा िहपे�रन िम
िदया जाता है तािक र� जमें नहीं। मशीन डायिलिसस द्रव में त, �ार (बाइकाब�नेट)
आिद का सन्तुलन बनाए रखती है। पूरे प�रवहन पथ में र� के प्रवाह और दबाव पर
िनगरानी रखी जाती है। गुदार् फेल्योर से शरीर में आई सूजन अित�र� पानी के जमा होने
होती है। डायिलिसस िक्रया में मशीन शरीर से ज्यादा पानी को िनकाल देती 
हीमोडायिलिसस के दौरान रोगी क� सुर�ा के िलए कई प्रकार क� व्यवस्थाएं होती है
डायिलिसस द्रव
हीमोडायिलिसस के िलए िवशेष प्रकार का अत्यािधक �ारयु� (हीमोकॉन्सेन्ट) दस लीटर 
के  प्लािस्टक के जार में िमलता है। हीमोडायिलिसस  मशीन इस हीमोकॉन्सेन्ट्रेट का 
और 34 भाग शुद्ध पानी को िमलाकर डायलाइसेट   बनता है। हीमोडायिलिसस मशी
डायलाइसेट   के �ार तथा बाइकाब�नेट क� मात्रा शरीर के िलए आवश्यक मात्रा के ब
रखती है। डायलाइसेट बनाने के िलए उपयोग में िलए जानेवाले पानी �ाररिह , लवणमु� एवं 
शुद्ध होता  , िजसे िवशेष तरह आर. ओ. प्लान्( Reverse Osmosis Plant – जल 
शुद्धीकरण य) के  उपयोग से बनाया जाता है। 
हीमोडायिलिसस िकस जगह िकया जाता है?
सामान्य तौर पर हीमोडायिलिसस अस्पता
के िवशेष� स्टॉफ द्वारा नेफ्रोलोिजस
सलाह के  अनुसार और उसक� देखरेख में
िकया जाता है। बह�त ही कम तादाद में मरीज
हीमोडायिलिसस मशीन को खरीदकर, प्रिश�
प्रा� करके पा�रवा�रक सदस्यों क� मदद से
में ही हीमोडायिलिसस करते हैं। इसके िल
धनरािश, प्रिश�ण और समय क� ज�र
पड़ती है।
क्या हीमोडायिलिसस पीड़ादायक और जिटल उपचार ह?
नही, हीमोडायिलिसस एक सरल और पीड़ारिहत िक्रया है। रोगी िसफर् हीमोडायिलिसस करा
अस्पताल आते हैं और हीमोडायिलिसस क� प्रिक्रया पूरी होते ही वे अपने घर चले जात
अिधकांश मरीज इस प्रिक्रया के दौरान चार घण्टे का समय, आराम करने, लेपटॉप पर 
काम करने, टी.वी. देखने, संगीत सुनने अथवा अपनी मनपसंद पुस्तक पढ़ने में िबताते हैं। बह
से मरीज इस प्रिक्रया के दौरान हल्का , चाय अथवा ठंडा पेय लेना पसंद करते हैं।
सामान्यतः डायिलिसस के दौरान कौ-कौन सी तकलीफे ं हो सकती ह?
डायिलिसस के दौरान होनेवाली तकलीफों में र� का दबाव कम हो, पैर में ददर् हो,
कमजोरी महसूस होना, उल्टी आन, उबकाई आना, जी िमचलाना
इत्यािद शािमल हैं
हीमोडायिलिसस के मुख्य फायद  
• कम खच� में डायिलिसस का उपचार
• अस्पताल में िवशेष� स्टॉफ एवं डॉक्टरों द्वारा िकए ज
कारण हीमोडायिलिसस सुरि�त है। 
• यह कम समय मे ज्यादा असरकारक उपचार है।
• संक्रमण क� संभावना बह�त ही कम होती है
• रोज कराने क� आवश्यकता नहीं पड़ती है
• अन्य मरीजों के साथ होने वाली मुलाकात और चचार्ओं से मानिसक तनाव कम होता ह
हीमोडायिलिसस के मुख्य नुकसा
• यह सुिवधा हर शहर/गाँव  में उपलब्ध नहीं होने के कारण -बार बाहर जाने क� तकलीफ 
उठानी पड़ती है। 
• उपचार के िलए अस्पताल जाना और समय क� मयार्दा का पालन करना पड़ता है
• हर बार िफस्ट्यूला नीडल को लगाना पीड़ादायक होता है।
• हेपेटाईिटस के संक्रमण क� संभावना रहती है
• खाने में परहेज रखना पड़ता है।
हीमोडायािलस के रोिगयों के िलए ज�री सूचनाए
• िनयिमत हीमोडायिलिसस कराना लम्बे समय तक स्वस्थ जीवन के िलए ज�री है। उस
अिनयिमत रहना या प�रवतर्न करना शरीर के िलए हािनकारक है।
• दो डायिलिसस के  बीच शरीर के  बढ़ते वजन के िनयंत्रण के िलए खाने में परह(पानी और 
नमक कम लेना) ज�री है। 
• हीमोडायिलिसस के  उपचार के साथ-साथ मरीज को िनयिमत �प से दवा लेना और र� के
दबाव तथा डायिबटीज पर िनयंत्रण रखना ज�री होता ह
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  • 1. गुद� क� गीता गुद� का आिथर्क और सामािजक महत गुदार् या वृक्क शरीर का बह�तमँहगा और दुलर्भ अंग है। आदमी का , �तबा, शान-शौकत, बाज़ुओं क� ताकत सब कु छ गुद� के दम से ही होती है। आपके गुद� में द-खम है तो दुिनया डरती है, सलाम करती है। गुद� के दम पर कई िबना पढ़े या कम पढ़े लोग भी नेता, मुख्य मंत् या बड़े-बड़े ओहदों पर पह�ँच जाते हैं। िफर गुद� क� द-भाल और सुर�ा में हम कोई कोताही क्यों बरतें। देख लीिजयेगा समय आने पर गुद� के मामले में-संबन्धी तथा इ-िमत्र िकनार कर लेंगे और त-मन न्यौछावर करने वाली आपक� अंकशाियनी या चाँ-िसतारे तोड़ कर लाने वाला आपका बलमा भी धोखा दे जायेगा। गुदार् खरीदना भी आसान काम नहीं है। बाज़ा में गुद� िसिमत ह, क�मतें आसमान को छू रही हैं और खरीदने वालों क� कतार बड़ी लम्बी भारत गुद� के रोगों में भी िव� क� राजधानी है िव� गुदार िदवस इंटरनेशनल सोसायटी ऑफ िकडनी िडसीजेस और इंटरनेशनल सोसायटी ऑफ नेफ्रोलॉजी द्वारा लगातार बढ़ गुद� संबंधी बीमारी को बढ़ता देख यह िदवस मनाने का िनणर्य िलया गया िव� गुदार िदवस सन् 2006 से प्रत्येक वषर् माचर् के दूसरे गु�वार को मनाया जाता है। इस िदवस का मुख्य उद्देश्य लोगो गुदार संबंधी रोगों के प्रित जाग�क करना और समस्या का िनदान करना गुद� के गूढ़ रहस्य 1- गुद� में एक िमनट मे1200 एम.एल. और पूरे िदन में1700 लीटर र� प्रवािहत होता है 2- आधा गुदार् दोनों गुद� का कायर् आसानी से कर सकता ह 3- एक गुद� में10 से 20 लाख नेफ्रोन होते है 4- पूरे िव� में15 लाख रोगी डायिलिसस या प्रत्यारोिपत गुद� पर जीिवत ह
  • 2. 5- यिद एक गुद� क� सारी चलनी इकाइयों को जोड़ िदया जाये तो8 िकलो मीटर लम्बी निलका बन जायेगी। 6- अमे�रका में दो करोड़ लोग जीणर् वृक्क र( Chronic Kidney Diseases) से पीिड़त हैं और दो करोड़ को वृक्क रोग होने क� सम्भावना है 7- 40 वषर् के बाद हर साल1% नेफ्रोन कायर् करना बंद कर देते, बचे ह�ए नेफ्रोन िवविधर्त कर िनिष्क्रय नेफ्रोन का कायर् संभाल लेते 8- गुद� का भार शरीर के भार का मात्0.5% होता है परन्तु वे �दय द्वारा पंप िकये गये र� 20-25% िहस्सा उपयोग करते हैं 9- यिद िकसी को ई�र ने एक ही गुदार् िदया हो तो वह िवविधर्त हो कर दोनों गुद� का का संपािदत कर देता है। 10- िव� में50 करोड़ लोग (कु ल जनसंख्या का10%) िकसी न िकसी वृक्क रोग से पीिड़त है और लाखों लोग प्रित वषर् जीणर् वृक्क रोग से संबिन्धत �दय रोगों से समय पूवर् 11- प्रत्यारोपण के िलए लगभग एक ितहाई गुद� िनकट संबिन्धयों द्वारा िदये जाते हैं ितहाई के डेवर से िनकाले जाते हैं। 12- डॉ. जोसफ ई मूरे ने िदसंबर, 1954 में बोस्टन के पीटर बेन्टिब्रंघम अस्पताल में पहला और सफल गुदार् प्रत्यारोपण जुड़वां भाइयों में िक संरचना दोनोंगुद� बाहरवीं व� कशे�का से तीसरी किट कशे�का क स्तर प मे�दण्ड के दोन तरफ उदरगुहा के पीछे सुरि�त रहते हैं। दायां गुदार् मध्यपट के ठीक नीचे और यक के पीछे िस्थत होता है तथा बायां मध्यपट के नीचे और प्लीहा के पीछे होता है प्रत्येक गुद� के शीषर् पर अिधवृक्क ग्रंिथ होती है। दायां गुदार् बाएं क� तुलना में थोड़ा नीचे है और बायां गुदार् दाएं क� तुलना में बड़ा और थोड़ा अिधक मध्यम में िस्थत होता पूरा गुदार् तथा अिधवृक्क ग्र वसा (पेरीरीनल व पैरारीनल वसा) तथा वृक् पट्ट(renal fascia) द्वारिस्थ रहते हैं। प्रत्येक वयस्क गुद� का 115 से 170 ग्राम के बीच तथा मा 11-14 सेमी लंबा, 6 सेमी चौड़ा और 3 सेमी होता है। प्रत्येक गुद� में अवतल और सतहें पाई जाती हैं। अवतल स , िजसे वृक्क�य नािभका (renal hilum) कहा जाता है, वह स्थान है जहां से वृक्क धमनी इसमें प्रवेश करती है वृक्क िशरा तथ मूत्रवािहनी बाहर िनकलती है। गुदार् सख्त रेशेदार ऊतकों रीनल कैप्सूल (renal capsule) से िलपटा होता है।
  • 3. गुद� का पदाथर् या जीिवतक(parenchyma) दो मुख्य संरचनाओं में िवभ� हो है। ऊपरी भाग में वृक्क�य छा( renal cortex) और इसके भीतर वृक्क�य मज्ज( renal medulla) होती है। कु ल िमलाकर ये संरचनाएं ितकोने आकार के आठ से अठारह वृक्क� खण्डों क आकृ ित बनाती है, िजनमें से प्रत्येक में म के एक भाग को ढंकने वाली वृक्क छाल होती है , िजसे वृक्क�य िपरािमड कहा जाता है। वृक्क�य िपरािमडों के बीच छाल के उभार होते है , िजन्हे वृक्क�य स्तं कहा जाता है। नेफ्रॉ (Nephrons) गुद� क� मूत्र उत्प करने वाली कायार्त् संरचनाएं, छाल से लेकर मज्जा तक फैली होती हैं। नेफ्रॉन का प्रारंिभक श भाग छाल में िस्थ वृक्क�य किणका( renal corpuscle) होता है िजसके बाद छाल से होकर मज्जात्म िपरािमडों में गहराई तक जानी वाली एक वृक्क�य निल( renal tubule) पाई जाती है। एक मज्जात्मक िक, वृक्क�य छाल का एक भा, वृक्क�य निलकाओं का एक समू होता है, जो एक एकल संग्रहण निलका में जाकर �र� होती प्रत्येक िपरािमड का िस या पेिपला ( papilla) मूत्र को लघु पुट( minor calyx) में पह�ंचाता है, लघु पुटक मुख्य पुटको( major calyces) में जाकर �र� होता ह और मुख्य पुटक वृक्क�य पेडू(renal pelvis) में �र� होता ह जो िक मूत्रनिलका जाती है।
  • 4. कायर अम्-�ार संतुलन , इलेक्ट्रोलाइट सान , कोिशके तर द्रव मा (extracellular fluid volume) को िनयंित्रत करके और र�चाप पर िनयंत्रण रखते गुद� पूरे शरीर का संतुलन बनाये रखते हैं। गुद� इ काय� को स्वतंत्र �प से व अन्य अ िविश�तः अंतःस्रा तंत्र क अंगों के साथ िमलकर या दोनों ही प्रकार से पूणर् करते हैं। इन अंत काय� क� पूितर् के िलये िविभन्न अंतःस्रावी हाम�न के बीच तालमेल क� आवश् होती है, िजनमें रेिन, एंिजयोटेिन्ससII, एल्डोस्टेर, एन्टीडाययूरेिटक हॉम� और आिटर्यल नैिट्रयूरेिटक पेप्ट आिद शािमल हैं गुद� के काय� में से अनेक कायर् नेफ्रॉन में होने वाले प� , पुनः अवशोषण और स्रवण क अपे�ाकृत सरल कायर्प्रणािलयों के द्वारा पूणर् िकये जा प�रशोधन जो िक वृक्क�य किणका में होता ह, एक प्रिक्रया है िजसके द्वारा को तथा बड़े प्रोटीन र� से छाने जाते ह और एक अल्ट्रािफल्ट्रेट का िनमार है, जो अंततः मूत्र बनता है। गुद� एक िदन म 180 लीटर अल्ट्रािफल्ट्रेट करते है, िजसका एक बह�त बड़ा प्रितशत पुनः अवशोिषत क िलया जाता है और मूत्र क� लग 2 लीटर मात्रा क� उत्पन्न होती है। इस अल्ट्रािफल र� में अणुओं क प�रवहन पुनः अवशोिषत कहलाता है। स्राव इसक� िवपरीत प्रिक् , िजसमें अणु िवपरी िदशा मे र� से मूत्र क� ओर भेजे जाते ह अपिश� पदाथ� का उत्सजर गुद� चयापचय के द्वारा उत्पन्न होने वाले अनेक प्रकार के अपिश� उत्सिजर्त करते है इनमें प्रोटीन चयापचय से उत्पन्न ना-यु� अपिश� यू�रया और न्यूिक्लक अम्ल चयापचय से उत्पन्न यू�रक अम्ल शािमल अम्-�ार संतुलन अंगों के दो तंत गुद� तथा यकृत अम्-�ार संतुलन का अनुर�ण करते है, जो िक पीएच (pH) को एक अपे�ाकृत िस्थर मान के आ-पास बनाये रखने क� प्रिक्रया है। बाइकाब�(HCO3) क� सान्द्रता िनयंित्रत करके गुद� अ-�ार संतुलन में योगदान करते है
  • 5. परासा�रता िनयंत् र� क� परासा�रता ( plasma osmolality) में यिद कोई उल्लेखनीय वृिद्ध होती है मिस्तष्क में हाइपोथेलेमस को इसक� अनुभूित हो जाती है और वह सीधे िपट्युटरी ग्रंि िपछले खण्ड स संवाद करता है। परासा�रता में वृिद्ध होने पर यह ग्रंिथ एन्टीडाययूरेिटक (antidiuretic hormone) एडीएच (ADH) का स्राव करती , िजसके प�रणामस्व�प गुद द्वारा जल का पुनः अवशोषण बढ़ जाता है और मूत्र भी सान्द्र हो जाता है। एडीएच निलका में िस्थत मुख्य कोिशका( Principal Cells) से जुड़ कर एक्वापो�रन (aquaporins) को िझल्ली में स्थानांत�रत करता , तािक जल सामान्यत अभेद्य िझल् को पार कर सके और वासा रेक्टा( vasa recta) द्वारा शरीर में इ पुनः अवशोषण िकया जा सके , िजससे शरीर में प्लाज़्मा क� मात्रा में वृिद्ध ऐसी दो प्रणािलयां जो मेडूला में सोिडयम(नमक) क� परासा�रता बढ़ाती हैं। िजसके प्रभ से पानी का पुनः अवशोषण बढ़ता है और शरीर में र� क� मात्रा बढ़ती हैं। दूसरी है यू पुनचर्क्रण तथा एकल प्(single effect)। यू�रया सामान्यतः गुद� से एक अपिश� पदाथर् के �प में उत्सिजर्त िकया है। लेिकन जब र� क� मात्रा कम होती है तथा परासा�रता बढ़ती है और एडीए( ADH) का स्राव होता है इससे खुलने वाले एक्वापो�रन्( aquaporins) यू�रया के प्रित भी पारगम्य होते ह इससे यू�रया का संग्रहण निलका से र� मेडूला में स्रवण होता है और मेडूला क� परासा�रता बढ़त िजससे पानी का पुनः अवशोषण बढ़ता है। इसके बाद यू�रया नेफ्रॉन में पुनः प्रवेश कर है और इस आधार पर इसे पुनः उत्सिजर्त या पुनचर्िक्रत िकया जा सकता है। िक ए (ADH) अभी भी उपिस्थत है य नही. ‘एकल प्रभ’ इस तथ्य का वणर्न करता है िक हेनली क� मोटी आरोही बाँह पा के िलए पारगम्य नहीं , लेिकन सोिडयम के िलए है। इसका अथर् यह है िक ए प्र-प्रवाही प्रण countercurrent system िनिमर्त होती ह, िजसके द्वारा मेडूला अिधक सान्द्र बन है और यिद एडीएच द्वारा संग्रहण निलका के एक्वापो�रन्स को खोल िदया ग तो पानी का संग्रहण निलका में अवशोषण होता ह
  • 6. र�चाप का िनयंत् लंबी-अविध में र�चाप का िनयंत्रण मुख्यतः गुद� पर िनभर्र होता है। म ऐसा कोिशके तर द्रव उपखंड के अनुर�ण के माध्यम से होता, िजसका आकार र� में सोिडयम सान्द्रता िनभर्र करता है। हालांि, गुद� सीधे ही र�चाप का अनुमान नहीं लगा सकत, लेिकन नेफ्रॉन क दूरस्थ निलका में िस्थत मेक्यूला डेन्सा कोिशकाएँ सोिडयम और क्लोराइड का अवशो होने पर जक्स्टा ग्लोमेयुर्लर सेल्स को रेिनन स्राव करने का आग्रह रेिनन उन रासायिनक संदेशवाहकों क� श्रृंखला का पहला सदस् , जो िमलकर रेिनन- एंिजयोटेिन्सन तंत्र का िनमार्ण करते हैं। रेिनन के स्राव से अंततः इस तंत्र मुख्य �प से एंिजयोटेिन्सनII और एल्डोस्टेरॉन स्रािवत होते हैं। प्रत्येक हाम�न अनेक कायर्प् माध्यम से काय करता है, लेिकन दोनों ही गुद� द्वारा िकये जाने वाले सोिडयम क्लोराइड अवशोषण को बढ़ाते है, िजससे कोिशके तर द्रव उपखंड का िवस्तार होता है और र�च बढ़ता है। इसके िवपरीत जब रेिनन के स्तर कम होता ह , तो एंिजयोटेिन्सन II और एल्डोस्टेरॉन के स्तर घट जाते , िजससे कोिशके तर द्रव उपखंड का संकुचन होता है र�चाप में कमी आती है।
  • 7. हाम�न स्र गुद� अनेक प्रकार के हाम�न का स्राव करत, िजनमें ए�रथ्रोपोइ, कै िल्सिट्रऑल और रेि शािमल हैं। ए�रथ्रोपीिटन को वृक्क�य प्रवाह में हाइ (ऊतक स्तर पर ऑक्सीजन क िनम्न स्) क� प्रितिक्रया के �प में छोड़ा जाता है अिस्-मज्जा में ए�रथ्रोपोए (लाल र� किणकाओं के उत्पाद) को उत्प्रे�रत क है। कै िल्सिट्र िवटािमन डी का उत्प्रे�रत, कै िल्शयम के आन्त्र में अवशोष फॉस्फेट के वृक्क�य पुनः अवशोषण क प्रोत्सािहत करता है। नेफ्रोन या वृक्क नेफ्रोन या वृक्काणु गुद� क� संरचनात्मक और कायार्त्मक इकाई है। नेफ्रोन शब्द ग्र νεφρός - नेफ्र = गुदार् शब्द से बना है। इसे यूरीनीफेरस ट्यूब्यूल भी कहते हैं। नेफ्र मुख्य कायर् पहले र का िनस्यंदन या िफल्ट्र, िफर आवश्यक तत्वों पुनः अवशोषण और शेष दूिषत तत्वों क मूत्र के �प म उत्सजर्न कर शरीर म पानी और िवद्यु अपघट्य या इलेक्ट्रोलाइट्स सांद्रता का िनयंत करना है। नेफ्रोन शरीर से दूिषत पदाथ� का उत्सजर्न करत, र� के आयतन, र�चाप तथा पीएच का िनयंत्रण करते हैं और इलेक्ट्रोलाइट्स तथा अन्य पदाथ� का िनयमन करते कायर् शरीर के िलए बह�त महत्वपूणर् हैं और अंतःस्रावी हाम�न्स जैसे एन्टीडाइयूरेिट ADH, एल्डोस्टीरोन और पेराथायराइड हाम�न द्वारा प्रभािवत होते हैं। सामान्यतः एक 8- 15 लाख नेफ्रोन होते , जो 10-20 ितकोनी िपरेिमड नामक संरचना में फैले होते हैं। नेफ् का कु छ भाग कोट�क्स और शेष मेडूला में होता है। नेफ्रोन के दो मुख्य भाग पहला आरंिभक िफल्ट्रेशन इकाई रीनल कोपुर्सल और दूसरा ट् जहाँ िविभन्न पदाथ� का जिटल पुनः अवशोषण और स्रवण होता है। नेफ्रोन्स दो तरह के
  • 8. हैं।1- कोिटर्कल नेफ्र- 85% नेफ्रोन कोिटर्कल नेफ्रोन होतऔर ये कोट�क्स में िस्थत हो हैं।2- जक्स्टामेड्यूलरी नेफ् – ये मेड्यूला के पास िस्थत होते हैं। इनका लूप ऑफ हेनल ज्यादा लम्बा होता है और मेड्यूला में ज्यादा गहराई तक जाता रीनल कोपुर्स रीनल कोपुर्सल के दो घटक ग्लोमेयुर् और बोमेन्स केप्स्यूल होते हैं। ग्लोमेय एक र� के िशकाओं Capillaries के जाल से बना एक गेंद के आकार का गुच्छ है जो अन्तरगामी धमिनका Afferent arteriole से र� प्रा� करता है औ बिहगार्मी धमिनकाEfferent arteriole द्वारा का िनकास करता है। ध्यान रहे र� का िनकास धमिनका Arteriole से होता है न िक िशरा से, इस िविचत्र बनावट के कारण ह ग्लोमेयुर्लस में र� का दबाव पयार्� रहता है। बिहगा धमिनका िवभािजत होकर वासा रेक्टा नामक एक महीन र� के िशकाओं का जाल बनती है जो U के आकार के लूप ऑफ हेनली के साथ चलता है और अंत में वृक्क िशरा में ि जाता है। वासा रेक्टा में पानी और कई तत्वों का प अवशोषण होता है। बोमेन्स केप्स्यूल एक कप क� शक्ल क� दोहरी परत वाली एक संरचना होती है जो अपने अ ग्लोमेयुर्लस को समाये रखती है। इसक� बाहर परत साधारण स्क्वेमस इपीथीिलयम औ अन्दर क� परत िवशेष तरह क� पोडोसाइट कोिशकाओं से बनी होती है। बोमेन्स केप्स्य से प्रोिक्समल कनवोिलयूट ट्युब्यू िनकलती है। बोमेन्स केपस्यूल में िनस्यUltrafiltration का मुख्य बल र�चाप का दबाव है। र� के छनने क� िक्रया ग-चयनात्मक तथा पेिस्
  • 9. (Non-selective & Passive) होती है। यह अल्ट्रािफल्ट्रेशन जलीय दबाव के कारण ह, इसमें काई सिक्रय या शि� (ए.टी.पी.) काम नहीं करती है। इस िनस्यन्दन क� प्रिक् रसोई में प्रयोग में ली जाने वाली साधारण सी छेद वाली चलनी से क्या जा सकता है। जो छन कर िनकलता है उसे िफल्ट्रेट कहते हैं। ग्लोमेयुर्लस में र� का दबाव के कारण लगभग 20 प्रितश पानी और सोल्यूट छन कर बोमेन्स केप्स्यूल में पह�ँचता है और शे बिहगार्मी धमिनकाद्वा बाहर िनकल कर वासा रेक्टा में जाता है। ग्लोमेयुर्लर केिशकाओं िभि�यों तथा बोमेन्स केपस्यूल क� अन्द�नी परत में पोडोसाइट कोिशकाओं के बीच ि िछद्र होते हैं और जो कुछ इन िछद्रों में समा सकता है(पानी, प्लाज्मा में घुले ह इलेक्ट्रोलाइ, ग्लूको, अमाइनो एिसड, पोषक तत्, यू�रया, काबर्िनक व अन्य दूिषत पदाथ आिद सब कु छ) छन जाता है। िसफर ् �ेत व लाल र� क, प्लेटलेट्स और प्रोट(क्योंि इनके अणु बड़े होते है) नहीं छन पाते हैं एक िमनट में र� क� िजतनी मात्रा छनती है उGlomerular Filtration Rate GFR या वािहका गुच्छीय िनस्यन्दन करते हैं। पु�षों में.एफ.आर. 125 िमिल प्रित िमनट औ ि�यों मे115 िमिल प्रित िमनट होत है। वैसे तो जी.एफ.आर. र�चाप पर िनभर्र करता है और र�चाप �दय के संकु चन और िवस्तारण(Systole & Diastole) के प्रभाव से िनरन् उपर-नीचे होता है। परन्तु यहाँ िविचत बात यह है िक जब तक औसत र�चाप (जो िसस्टोिलक और डायस्टोिलक र�चाप का औसत ह) 80 mm से 180 mm क� सीमा में रहता है जी.एफ.आर. िबलकु ल िस्थर रहता है। हाँ यिद औसत र�चाप80mm से कम होता है तो जी.एफ.आर. भी कम होने लगता है और यिद औसत र�चाप 180 mm से बढ़ता है जी.एफ.आर. भी बढ़ने लगता है। जी.एफ.आर. का यह कड़ा और अनूठा िनयंत्रण तीन शि�या करती हैं। ये है 1- ऑटोनोिमक नवर्स िसस्ट2- स्विनयंत्रण या ऑटो रेग्युलेशन3- ट्युब्युल-ग्लोमेयुर्लर फ�डबे स्विनयंत में अन्तरगामी धमिनका र�चाप उ-नीचे होने पर अपनी पेिशयों का िवस्तारण या संकुचन करके .एफ.आर. को िस्थर रखती हैंट्युब्युल- ग्लोमेयुर्लर फ�डब- िडस्टल कनवोल्यूटेड ट्युब्युल में िफल्ट्रेट के दबाव घटने या ब उसके मेक्यूला डेन्सा सेल्स जक्स्टाग्लोमेयुर्लर यंत्र के द्वारा अन्तरगामी धमिनका
  • 10. या संकु चन के िलए रासायिनक सन्देशवाहक पेराक्राइन्स भेज देते हैं .एफ.आर. िस्थर बना रहता है। इस तरह हमने देखा िक र�चाप के एक िनि�त सीमा तक घटने बढ़ने का जी.एफ.आर. पर कोई फकर ् नहीं पड़ता है प्रोिक्स कनवोल्यूटेड ट्युब्यू PCT रीनल ट्युब्यू के बोमेन् के प्स्यूल स लूप ऑफ हेनली तक के भाग को प्रोिक् कनवोल्यूटेड ट्युब्यूल कहते हैं इसक� खास िवशेषता इसके ब्रश बॉडर कोिशकाएँ हैं। इसके अन्दर क� इपीथीिलयल कोिशकाओं पर घनी ब्रश के आकार क माइक्रोिविल होती , इसिलए इन्हें ब्रश बॉ कोिशकाएँ कहते हैं। इन माइक्रोिविल के का अवशोषण सतह कई गुना बढ़ जाती हैं। इनमें प्र मात्रा में माइटोकोिन्ड्रया ह, जो सोिडयम के सिक्रय अवशोषण के िलए उजार् प्रदान करते प्रोिक्समल ट्युब्यूल को दो िहस्सोंमें बाँटा जा सकता है। पहला घुमावदार भाग जो गुद� के िहस्से कोट�क्स में होता है और इपासर् कनवोल्यू और दूसरे सीधे भाग को पासर् रेक्टकहते हैं इन दोनों िहस्सों क� संरचना और कायर्-अलग होते हैं। कुछ अनुसन्धानकतार्ओं कायर्प्रणाली क� िभन्नता क� वजह पासर् कनवोल्यू को भी दो उपभागों S1 और S2 में बाँटा है। इस तरह पासर् रेक्टको S3 कहते हैं यह बाहरी मेडूला में िस्थत रहता हैं और मेडू में एक िनि�त स्तर पर लूप ऑफ हेनली से जुड़ता है। कायर् प्रोिक्समल कनवोल्यूटेड ट्युब्यूल का मुख्य काय और िवद्युत अपघट्य पदाथ� क Na+ /K+ ATPase पंप द्वारा सिक्रय पुनः अवशोषण होता है। िफल्ट्65 % पानी और
  • 11. सोिडयम तथा 50 % पोटेिशयम और क्लोराइड का अवशोषण यहीं होता है। प्रोिक ट्युब्यूल में िफल्ट्रेट क� परासा�रता में कोई बदलाव नहीं होता है क्योंिक पानी और स दोनों का ही लगभग बराबर अवशोषण होता है। यानी बोमेन्स केप्सूल में िफल्ट्रेट क� परा 300 mOsM होती है और प्रोिक्समल ट्युब्यूल से िनकलने के बाद भी िफल्ट्रेट क� परा 300 mOsM होती है। प्रोिक्समल ट्युब्यूल लगभग 100 % ग्लूको, अमाइनो एिसड, बाइकाब�नेट, अकाबर्िनक फोसफोरस व अन्य पदाथ� का पुनः अवशोषण सोिडयम के ग्रेिडयेन्ट पर आधा� को-ट्राँसपोटर् चेनल द्वार जाता है। लगभग 50% यू�रया का पुनः अवशोषण भी यहीं हो जाता है। पेराथायरॉयड हाम�न प्रोिक्समल ट्युब्यूल फोसफोरस का अवशोषण कम करता है, लेिकन साथ ही आँतों तथा हड्िडयों स फोसफोरस लेकर र� में पह�ँचाता है और इस तरह र� में फोसफोरस के स्तर में कोई बदलाव नहीं होता हेनली का मोड़ या लूप ऑफ हेनली लूप ऑफ हेनली मेडूला में िस्थत नेफ्रोन का लूप के आकार का वह भाग है जो प्रो कनवोल्यूटेड ट्युब्यूल को िडस्टल कनवोल्यूटेड ट्युब्यूल से जोड़ता है। यह नेफ्रोन का ब महत्वपूणर् और िविचत्र भाग है। इसक� खो.जी.जे.हेनली ने क� थी और अपना नाम भी िदया था। इसका मुख्य कायर् मेडूला में सोिडयम क� परासा�रता बढ़ाना है। जैसे जैसे लूप हेनली नीचे क� ओर बढ़ता है सोिडयम क� परासा�रता 300 mOsM से बढ़ते-बढ़ते 1200 mOsM तक पह�ँच जाती है। यानी सरल शब्दों में कहें तो जैसे जैसे हम मेडूला में केन्द् बढ़ेंगे तो मेडूला ज्यादा और ज्यादा नमक�न होता जाये
  • 12. इसे पाँच भागों में बाँटा जा सकता है 1- मोटा िडसेिन्डंग लूप ऑफ हेनल 2- पतला िडसेिन्डंग लूप ऑफ हेनल 3- पतला असेिन्डंग लूप ऑफ हेनली 4- मेडूला में िस्थत मोटा असेिन्डंग लूप ऑफ हेन 5- कोट�क्स में िस्थत मोटा असेिन्डंग लूप ऑफ हे िडसेिन्डंग लूप ऑफ हेनली में आयन्स और यू�रया के िलए पारगम्यता लगभग न के बराबर होती है परन्तु पानी के िलए यह पूणर्तया पारगम्य होती है। चूँिक जैसे जैसे मेडूला में िडसेिन्डं
  • 13. लूप नीचे क� ओर जाता है बाहर सोिडयम यानी नमक क� परासा�रता बढ़ती जाती है तथा उसके रसाकषर्ण से पानी का पुनः अवशोषण होता है। इसके फलस्व�प लूप में सोल्यूट स होता जाता है तथा उसक� परासा�रता भी बढ़ती जाती है और नीचे आते-आते 1200 mOsM तक पह�ँच जाती है। िडसेिन्डंग लूप चूँिक आयन्स के िलए पारगम्य नहीं होता है इसिलएय सोिडयम आिद आयन्स का कोई अवशोषण या स्रवण नहीं होता असेिन्डंग लूप ऑफ हेनली क� उपकला( Epithelium) क� आँत�रक िझल्ली म Na-K-2Cl के �रयर (जो सोिडयम साँद्रता क� क्रिमकता के द्वारा इनका अवशोषण क) तथा बाहरी आधारी िझल्ली में कई सोिड-पोटेिशयम पंप और पोटेिशयम /क्लोराइ कोट्राँसपोटर्र प होते हैं। िडसेिन्डंग िलम्ब सोिडयम और अन्य आयन्स के िलए पारगम्य होता है परन्तु प िलए पारगम्य नहीं होता है। असेिन्डंग लूप ऑफ हे मेंसिक् प�रवहन द्वारा सोिड, पोटेिशयम और क्लोराइड आयन्स का पुनः अवशोषण होता है। असेिन्डंग लूप पानी के िल पारगम्य नहीं होने के कारण पानी का कोई अवशोषण नहीं होता है यानी कोई रसाकषर्ण होता है। असेिन्डंग लूप में पोटेिशयम चेनल से पोटेिशयम का पेिस्सव स्रवण भी होता है पोटेिशयम के स्रवण के कारण सोिड, के लिशयम और मेगनीिशयम का भी पेिस्सव पुनः अवशोषण होता है। इस सबके प�रणाम स्व�प असेिन्डंग लूप में सोल्यूट क� साँद्रता कम जाती है और सोल्यूट क� परासा�रता1200 mOsM से घटते-घटते िडस्टल कनवोल्यूटे ट्युब्यूल तक100mOsM रह जाती है, यानी िफल्ट्रेट हाइपोटोिनक हो जाता है। लूप ऑफ हेनली को र� क� आपूितर् बिहगार्मी धमिनक Efferent arteriole से िनकलने वाली के िशकाओं के जाल से होती है जो लूप के साथ िलपटती ह�ई चलती है। इसे वासा रेक्टा कहते हैं और इसका आकार लूप क� तरह होने के कारण मेडूला में सोिडय(नमक) साँद्रत क� अनूठी क्रिमक (Gradient) बनी रहती है। िडसेिन्डंग लूप से रसाकषर्ण के द्वारा पानी का अवशोषण अन्तरालीय स्थाinterstitium में होता है वहवासा रेक्टा में अवशोिष हो जाता है। वासा रेक्टा में र� का प्रवाह कम होने के कारण परासरणीय संतुलन बनने समय लगता है और मेडूला में वाँछनीय नमक क� साँद्रता बनी रहती इस तरह लूप ऑफ हेनली में पानी का25 %, सोिडयम तथा क्लोराइड का25 % और पोटेिशयम का 40% पुनः अवशोषण होता है। दूरस्थ कु ँडिलत निलका या िडस्टल कनवोल्यूटेड ट्युब्DCT िडस्टल कनवोल्यूटेड ट्युब्यूल लूप ऑफ हेनली और कलेिक्टंग डक्ट के बीच का घुमा खण्ड है। इनके अन्दर सामान्य क्युबॉयडल इिपथीिलयम कोिशकाएँ होती इसक� इिपथीिलयम कोिशकाएँ PCT से छोटी हाती हैं। इसका ल्यूमन अपे�ाकृत बड़ा होता है। इसम
  • 14. भी माइटोकोिन्ड्रया बह�त होते हैं।जहा.सी.टी. ग्लोमेयुर्लस क� अन्तगार्मी धमिनका को छ है, वहाँ उसमेंक्युबॉयडल इिपथीिलयम के स्थान पमेक्यूला डेन्सा नाम क� गहरे रंग क� स् और बड़े न्यूिक्लयस वाली घनी कोिशकाएँ होती हैं। ये सोिड(नमक) के प्रित संवेदनशी होती हैं। और सोिडयम को चखती रहती हैं। जैसे ही इन्हें लगता हैं ि.सी.टी. में सोिडयम कम है (मतलब र�चाप कम हो रहा है) तो ये जक्स्टाग्लोमेयुर्लर कोिशकाओं को रेिनन करने का आग्रह करती हैं तािक र�चाप सामान्य हो सक कायर िसफर ्15-20% िफल्ट्रेट ही यहाँ पह�ँचता है। यहाँ पोटेि, सोिडयम, के लिशयम और पीएच का आँिशक िविनयम होता है। होम�न आधा�रत के लिशयम का िनयंत्रण यही होता है। इसक अन्दर क� सतह पर पेिस्सव थायज़ाइ(एक मूत-वधर्क दव) संवेदनशील सोिडयम पोटेिशयम कोट्राँसपोटर्र होते हैं जो केलिशयम के िलए भी पारगम्य होते हैं। उपकला क� -पाि�र्क सतह (र�) पर ए.टी.पी. िनभर्र सोिडय /पोटेिशयम एन्टीपोटर् प, आंिशक सिक्र सोिडयम/के लिशयम ट्राँसपोटर्र एन्टीपोटर्.टी.पी. िनभर्र केलिशय ट्राँसपोटर्र होते ह आधारीय-पाि�र्क सतह पर .टी.पी. िनभर्र सोिडय/पोटेिशयम पंप सोिडयम साँद्रता बढ़ाता ह िजससे सोिडयम/क्लोराइड िसन्पोटर् द्वारा सोिडयम का और स /के लिशयम ट्राँसपोटर एन्टीपोटर् से केलिशयम का अवशोषण होता है • डी.सी.टी. पीएच का िनयंत्रण बाइकाब�नेट के अवशोषण और प्रो(हाइड्रो) के स्रवण या प्रोटोन के अवशोषण और बाइकाब�ने ट के स्रवण द्वारा क • सोिडयम और पोटेिशयम का िनयंत्रण पोटेिशयम के स्रवण और सोिके अवशोषण से करता है। दूरस्थ निलका में सोिडयम का अवशोषण ऐल्डोस्टीरोन होम�न द प्रभािवत होता है। ऐल्डोस्टीरोन सोिडयम का अवशोषण बढ़ाता है। सोिडयम क्लोराइड का पुनः अवशोषण WNK काइनेज (ये चार तरह के होते है) द्वारा भ प्रभािवत होता है • के लिशयम का िनयंत्रण पेराथायरॉयड हाम�न के प्रभाव से केलिशयम के पुनः अवश द्वारा करता है। पेराथायरॉयड हाम�न केलिशयम को िनयंत्रण करने वाले प्रोटीन फोस्फेट ऑयन जोड़ करदूरस्थ निलका में सभी ट्राँसपोटर्रों का िनमार्ण कर कलेिक्टंग डक्ट त संग्रहण निलका तंत्र या कलेिक्टंग डक्ट तंत्र एक निलक िडस्टल ट्युब्यूल ये शु� होत है और िजसमें कई दूरस्थ कुँडिलत निलका या िडस्टल ट्युब् जुड़ती जाती हैं और यह कोट�क्स से और मेडूला को पार करती ह�ई अंत में रीनल केिलक्स में खुलती है। यह प अवशोषण और स्रवण के द्वारा पानी और -अपघट्य के सन्तुलन में मदद करता है। यहा
  • 15. इस िक्रया में ऐल्डोस्टीरोन और ऐन्टीडाययूरेिटक हाम�न क� भूिमका भी महत्वपूणर् ह कलेिक्टंग डक्ट तंत्र के भी क-खण्ड कलेिक्टंग ट्युब्, कोिटर्कल कलेिक्टंग डक्ट मेड्यूलरी कलेिक्टंग डक्ट होते है कायर यह पानी और िवद्-अपघट्य के सन्तुलन करने वाले तंत्र का आिखरी भाग है। यहाँ लग 5% सोिडयम और पानी का पुनः अवशेषण होता है। परन्तु तीव्र िडहाइड्रेशन होने प 24% से भी ज्यादा पानी का पुनः अवशोषण कर सकता है। संग्रहण निलका तंत्र पानी के पुनः अवशोषण में इतना फकर् इस तंत्र के हाम�न्स पर िनभर्रता के कारण आत संग्रह निलका तंत्र का आिखरी भाग ऐन्टीडाययूरेिटक होम(ADH) के िबना पानी के िलए पारगम्य नहीं है। • ऐन्टीडाययूरेिटक होम�न क� अनुपिस्थित में िफल्ट्रेट से पानी का अवशोषण न पाता है और मूत्र ज्यादा आता ह • एक्वापो�र-2 िप्रिन्सपल सेल क� आंत�रक उपकला और पूरी कोिशका में फ पुिटका या वेजाइकल में पाये जाते हैं। ये वाज़ोप्रेिसन ऐन्टीडाययूरेिटक होम�न क� उपिस्थित में पानी का अवशोषण करते हैं और मूत्र को साँद्र बना • संग्रहण निलका तंत्र क्ल, पोटेिशयम, हाइड्रोजन और बाइकाब�नेट का भ सन्तुलन रखते हैं। • संग्रहण निलका तंत्र में थोड़ा सा यू�रया भी अवशोिषत होता • इस खण्ड मे यिद र� का पीएच कम हो तो प्रोटोन पं प्रोटोन्स स्रवण क पीएच को सन्तुिलत करता है। संग्रहण निलका तंत्र हर भाग में दो प्रकार कोिशकाएँ इन्टरकेलेट
  • 16. सेल्स और िविश� प्रकार का कोिशका(जो हर उप-खण्ड में अलग तरह क� होती ) होती हैं। कलेिक्टंग डक्ट में ये िविश� कोिश िप्रिन्सपल सेल कहलाती है। ये िप्रिन्सपल स आधारीय-पाि�र्क िझल्ली में िस्थत सोिडयम और पोटेिशयम चेनल्स के द्वारा सोि पोटेिशयम का सन्तुलन रखते हैं। ऐल्डोस्टीर.टी.पी. िनभर्र सोिडय /पोटेिशयम पंपों क� सँख्या बढ़ाते हैं और सोिडयम का पुनः अवशोषण तथा पोटेिशयम का स्रवण बढ़ाते इन्टरकेलेट सेल्स अलेफा और बीटा प्रकार के होते हैं तथा र� का पीएच िनयंत्रण में करते हैं। इस तरह उत्सिजर्त होने वाले मूत्र क� परासा�1200 mOsm/L (प्लाज्मा से चार गु) और मात्र1200 ml/day होती है जो GFR का 0.66% है। जक्स्टा ग्लोमेयुर्लर जक्स्टा ग्लोमेयुर्लर वृक्क क� एक सू�म संरचना है जो नेफ्रोन म र� क� आपूितर, र�चाप और जी.एफ.आर. का िनयंत्रण करती है। य ग्लोमेयुर्लस के पास स गुजरती दूरस्थ कुँडिलत निलका और ग्लोमेयुर्ल के बीच िस्थत होता ह, इसीिलए इसे जक्स्टा ग्लोमेयुर(ग्लेमेयुर्लर के सम) यंत्र कहते हैं। यह तीन तरह कोिशकाओं से बनता है। 1- मेक्यूला डेन्सा कोिशका- ग्लोमेयुर्लस के पास से गुजर दूरस्थ कुँडिलत निलका क� घनी, लम्ब, बड़े व स्प� नािभक यु� और गहरी उपकला कोिशकाओं के मेक्यूला डेन्स कोिशकाएँ कहते हैं ये सोिडयम (नमक) के प्रित संवेदनशील होती हैं और उसे चखती रह हैं। ज.एफ.आर. कम होने पर समीपस्थ निलका में िफल्ट्रेट का बहाव धीमा हो जाता ह सोिडयम का अवशोषण बढ़ जाता है। फलस्व�प दूरस्थ निलका में सोिडयम क� मात्रा क जाती है, िजसे मेक्यूला डेन् महसूस कर लेता है और नाइिट्रक ऑक्साइड प्रोस्टाग्लेिन्डन के स्राव के द्वारा जक्स्टा ग्लोमेयुर्लर सेल्स को रेिनन स् करते हैं। तथा ये सोिडयम कम होने पर पेराक्राइन का स्राव करते हैं जो अंतगार्मी धमि संकु चन कर जी.आफ.आर. बढ़ते हैं।
  • 17. 2- जक्स्टा ग्लोमेयुर्लर - ये बिहगार्मी धमिनका में र�चाप को नापते रहते हैं और िस्थितयों में रेिनन का स्राव करते - बीटा 1 एड्रीनिजर्क उत्प्- बिहगार्मी धमिनका मे र�चाप कम होना स- जी.एफ.आर. कम होने से मेक्यूला डेन्सा में नमक का अवशोषण होना। 3- मेसेिन्जयल सेल याद रिखये आरम्भ म डायबीिटक नेफ्रोपै का इलाज सस्त , शितर्य और िटकाऊ है। देर होने पर महंगा, क�दायक और सीिमत होगा। मधुमेह के मरीजो में गुद� क� िवफलता के जोिखम घटक • सामान्यतः5 से 15 साल क� अविध तक आप मधुमेह से पीिड़त हों। • आनुवंिशक कारणों से। • उच्-र�चाप िनयंित्रत न हो • र�-शकर ्रा िनयंित्रत में न • यिद आप धूम्रपान भी करते हो • अिनयंित्रत कॉलेस्ट्र डायबीिटक नेफ्रोपैथ मधुमेह के दुष्प्रभावों से -धीरे गुद� का खराब होना बड़ी सामान्य बात हो गई ह, इस रोग को डायिबटीक नेफ्रोपैथी कहते हैं। ट-2 डायिबटीज के रोिगयों क� संख्या िवस्फोटक गित बढ़ रही है, साथ ही अच्छी िचिकत्सा सुिवधायें भी उपलब्ध है िजसके फलस्व�प डायि के रोगी ज्यादा िदन तक जीते है। अतः डायिबटीक नेफ्रोपैथी के रोिगयों क� संख्या भी बढ़ है। मधुमेह के 20 से 30 प्रितशत रोिगयों को नेफ्रोपैथी क� तकलीफ हो जा , यह संख्या 40% जा सकती है। मधुमेह में प्रायः गुद� तुरंत िवफल नहीं होते ह • अब मधुमेह के रोिगयों में गुदार् प्रत्यारोपण क� िच(ट्रान्सप्लान) संभव हो गयी है। • हालही में ह�ई कई शोध से मालूम ह�आ है िक डायिबटीज रोिगयों में नेफ्रोपैथ अवस्था से बचा जा सकता ह , यिद सही समय पर जाँच द्वारा इसका पता कर िलय जाये।
  • 18. • यिद मूत्र परी�ण के बाद मालूम हो जाता है िक मूत्र में एलब्यूिमन क� मात्रा िवस रही है तो समझ लीिजए गुद� में नेफ्रोपैथी क� अवस्था होने जा रही है। यिद आ पेशाब में24 घंटे में30 िम.ग्. से ज्यादा अल्ब्यूिमन जा रहा है तो इसे माइ एलब्यूिमनु�रया कहते हैं24 घंटे के एकित्रत मूत्र300 िम. ग्. से ज्यादा अल्ब्यूि िनकले तो इसे िक्लिनकल एलब्यूिमनु�रया कहते हैं • माइक्रो एलब्यूिमनु�रया होने के ब20-40 प्रितशत रोगी िबना िकसी िविश� िचिकत् के िक्लिनकल नेफ्रोपैथी क� अवस्था में चले जाते • िक्लिनकल एलब्यूिमनु�रया यह भी बताता है िक मरीज को �दयाघात होने क संभावना बढ़ गई है। इसिलए अत्यंत आवश्यक हो जाता है िक टा-2 मधुमेह रोगी को माइक्रो एलब्यूिमनु�रया के स्टेज में जांच द्वारा पता कर िलया जावे औ बचाव के उपाय शु� कर िदये जायें। डायबीिटक नेफ्रोपैथी के चर डायबीिटक नेफ्रोपैथी को पांच चरणों में बांटा गया प्रथम चर – (प्रारंिभक डायिबट) डायिबटीज के आरंिभक दबाव के चलते Glomerular Filtration Rate या वािहकागुच्छीय िनस्यन्दन दर मामूली बढ़त ले है। िद्वतीय चर– (िवकासशील डायिबटीज) GFR बढ़ी रहती है या सामान्य हो जाती है परन्त वृक्क के �ितग्रस्त होने से मूत्र में एल्ब्युिमन क( Microalbuminuria या अत्यन्नसारम) शु� हो जाता है। िद्वतीय चरण के रोगी में एल्ब्युिमन का िव30 िम.ग्. प्रि24 घंटे से ज्यादा होता है। यिद सतकर्ता न बरती जाये तो रोगी आगे चलकर गुदार् िवफलता का िशकार हो जाता है। अतः रोगी का समय-समय पर मूत्र परी�ण होना चािहय तािक माइक्रोअलब्युिमनु�रया को आरंिभक अवस्था में ही पकड़ िलया जाय तृतीय चरण – वृक्क क� �ित बढ़ने से रोगी को िक्लिनकल माइक्रोअलब्युिमनु�रय जाता है। मूत्र का िडपिस्टक टेस्ट पोिजिटव आता है। इस चरण में एल्ब्युिमन का 300 िम.ग्. प्रि24 घंटे से ज्यादा होता है और सामान्यतः र�चाप भी बढ़ जाता है चौथा चरण – गुद� क� �ित जारी रहती है , मूत्र में एल्ब्युिमन का िवसजर्न और बढ़ जात इस चरण में गुद� क� �ित इतनी बढ़ जाती है िक र� में यू�रया और िक्रयेिटिनन बढ़ने ल हैं। कायर्प्रणाली काफ� प्रभािवत होत
  • 19. पांचवा चरण – इस चरण मेंGFR बह�त कम होकर 10 ml प्रित िमनट तक पह�ँच जाता , गुद� अपना कायर् करने में लगभग अ�म हो जाते हैं और डायलेिसस तथा गुदार् प्रत्यार िसवा कोई रास्ता नहीं बचता डायिबटीक नेफ्रोपैथी के ल� • आरंिभक अवस्था में कोई ल�ण नही • हाथो, पैरों और चेहरे पर सूजन। • वजन बढ़ना। • खुजली (आिखरी अवस्था म)। • सुस्ती (आिखरी अवस्था म)। • मूत्र में र� आना • �दय-गित दोष र� में पोटेिशयम क� मात्रा बढ़ने के कार • पेिशयों का फड़कना। • जैसे जैसे गुद� क� �ित बढ़ती जाती है , गुदार् र� से दूिषत पदाथर् िवसिजर्त करने किठनाई होती है और र� में दूिषत पदाथ� जैसे यू�रया आिद क� मात्रा बढ़ने लगती ह इस िस्थित को यूरीिमया कहते हैं। यूरीिमया में रोगी -व्यस्त या कनफ्यूज हो जा है तथा बेहोश होने लगता है। और अंत मे ............ िजंदगी क� लड़ाई सम्पन्न हो जाती ह डायिबटीक नेफ्रोपैथी का िनद डायिबटीज के रोगी में नैफ्रोपैथी के आरंिभक संकेतों और ल�णों को यिद समय रहते िच कर िलया जाये और उनका सघन उपचार शु� कर िदया जाये तो हम गुद� क� आरंिभक �ित को सही कर सकते हैं और बढ़ने से रोक सकते हैं या लम्बे समय तक गुद� को इस घात कु प्रभाव से बचाये रख सकते हैं। इसके िलये हर बार िचिकत्सक को माइक्रोअलब्युिमन क� जांच करवानी चािहए। डायिबटीक नेफ्रोपैथहोने का पता आपको चल ही नहीं पायेगा जब तक आप डॉक्टर के पासपरी�ण नहीं करवाएंगे
  • 20. परी�ण • मूत क� जांच पेशाब मे प्रोट का आना। यह अच्छा ल�ण नहीं ह • र� मे यू�रया और िक्िटिनन का सामान्य से ज्यादा हो । • पेशाब मे लाल र� कोिशकाएं और पस सेल् । • िहमोग्लोिब क� कमी। • र� मे कै िल्शय , पोटेिशयम और फोस्फोर क� जांच । • अल्ट्रासो जांच । • मूल �प से गुद� क� िवफलता का पता बढ़े ह�ए यू�रया और िक्िटिनन से चलता है । डायिबटीक नेफ्रोपै से बचाव • डायिबटीज और र�चाप का पूरा उपचार । • िनयिमत �प से िचिकत्सक�य परी�ण और र� क� जांच। • खाने में नम, चब� और प्रोटीन क� मात्रा कम • धूम्रपान न कर • िनयिमत व्यायाम करें। वज़न को कम रख • ददर् िनवारक गोिलयां िबना डाक्टरी सलाह के न ल डायिबटीक नेफ्रोपैथी का उपच आरिम्भक उपचा • ब्लड शुगर को िबल्कुल सामान्य - इससे माइक्रो अल्बुमीनु�रया या बढी ह नेफरोपैथीक� अवस्था को टाला जा सकता है।
  • 21. • उच्च र�चाप का िनयंत- अगर मधुमेह के रोगी तो थोड़ा भी उच्च र�चाप है तो नेफरोपैथी होने क� संभावना बढ़ जाती है। र�चाप को िनयंित्रत कर हम उनका जीव दीघर् कर सकते हैं। टाइप वन मधुमेह में मृत्युदर94 प्रितशत से घटाक45 प्रितशत तक िकया जा सकता , यिद र�चाप िनयंित्रत िकया जाये18 साल से ज्यादा के रोिगयों में िसस्टोिलक र�130 एवं डायस्टोिलक80 से कम रखने क� िहदायत दी जाती है। • गुद� को डायिबटीक नेफ्रोपैथी बचाने के िलए सबसे महत्वपूणर् Angiotensin- Converting Enzyme Inhibitors ए.सी.ई. इन्हीबीटसर(इनालेिप्, िलिसनोिप्, रेिम्प�र, ट्रेंडोलेिप्र)। इसे िजसको उच्च र�चाप नहीं है उन्हें भी देने सलाह दी गयी है। िजन्हें.सी.ई. इन्हीबीटसर् के पा-प्रभाव हो जाते , उन्हे Angiotensin Receptor Blocker (ARB’s) ग्रुप क� दवाएं जैसे लोसाट , टेिल्मसाटर्न या ऑल्मेसाटर्न आिद देना चािहये। दवाओं का इस्तेमाल िचिकत्सक के परामशर् के बाद ही करें • भोजन में प्रोटीन क� मात्रा क- पहले के ह�ए शोधों के अनुसार(जानवरों म) प्रोटीन कम देने से गुद� में इनट्राग्लो प्रेशर कम पाया गया एवं नेफरोपैथी से बचाव क� संभावना उजागर ह�ई है। नये शोधों में बढ़ नेफरोपैथी ह�ई क� अवस्था मे0.8 ग्राम प. िकलो प्रितिदन के िहसाब स प्रोटीन देने क� बात कही गयी ह
  • 22. डायिलिसस जब गुद� क� र� से अपिश� पदाथर्(यू�रया, िक्रयेिटि, िवद्य-अपघट्य या Electrolytes, जल आिद) उत्सिजर्त करने क� �मता इतनी कम हो जाये िक वािहकागुच्छीय िनस्येदन दर Glomerular Filtration Rate (GFR) घटते-घटते मात्10 एम.एल. प्र िमनट रह जाये तो डायलेिसस या गुदार् प्रत्यारोपण ही िवकल्प बचते हैं। डायलेिसस में एक अधर्पारगम्य िझल्ली याSemipermeable membrane के एक तरफ र� प्रवािहत और दूसरी तरफ ए िवशेष तरह का Diasylate fluid या डायिलिसस द्रव िवपरीत िदशा में प्रवािहत िकया जात जो र� से िवसरण और रसाकषर्ण या Diffusion & Osmosis क� प्रिक्रया द्वारा पदाथर् खींच लेता है डायिलिसस के िलए संके त • जी एफ आर 10 एम.एल. प्रिमनट से कम हो जाये। • वृक्-वात या Kidney Failure के ल�ण िदखाई देने लगे। • तीव्र �-क� या breathlessness, र� में पोटेिशयम क� मात्रा अत्यािधक हो , र�स्र, पेरीकाडार्इिटस या एनकेफेलोपेथी होने पर तुरन्त आपातकालीन डायिलिस िकया जाता है। हीमोडायिलिसस हमारे देश में हीमोडायिलिसस ही ज्यादा प्रचिलत है। इस प्रिक्रया में हर बार दो मोट लगानी पड़ती है, 300 ये 500 एम एल प्रित िमनट क� गित से काफ� सारा र� िनकाला जात है, इसिलए फूली ह�ई नसें होना अितआवश्यक हैं। हीमोडायिलिसस के िलए शरीर से िनकालने के िलए िनम्न तीन िवकल्प होते है आट��रयो-वीनस िफस्ट्यूला या धमनी िशरा भगन्द लम्बी अविध महीन-सालों तक हीमोडायिलिसस करने के िलए सबसे ज्यादा उपयोग क� जाने वाली यह पद्धित सुरि� होने के कारण उ�म है। सामान्यतः जी एफ आर 30 एम एल प्रित िमनट से क (लेफ्रोपोथी क� चौथा च) होने पर एक छोटी सी शल्य िक्रया द्वारा बायी कला िशरा और धमनी को आपस में जोड़ कर िफस्ट्यूला बना िदया जाता है। धमिनयों म िशराओं क� अपे�ा र� का दबाव बह�त
  • 23. अिधक होता है िजसके कारण चार स�ाह में हाथ क� नसों में पयार्� फुलाव आ जाता है। फूली ह�ई नसों में दो अ-अलग जगहों पर िवशेष प्रकार क� दो मोटी िफस्ट्यूला नीडल ड जाती है। इन िफस्ट्यूला नीडल क� मदद से हीमोडायिलिसस के िलए र� बाहर िनकाला जाता है और शुद्ध करने के बाद शरीर में अन्दरपह�ँचाया जाता है। िफस्ट्यूला िकये गये हाथ से दैिनक कायर् िकये जा सकते हैं ए.वी. िफस्ट्यूला का लम्बे समय तक संतोषजनक उपयोग करने के िलए क्या सावधा ज�री होती है? ए.वी. िफस्ट्यूला क� मदद से लम्बे सम(सालो) तक पयार्� मात्रा में डायिलिस िलए र� िमल सके इसके िलए िनम्निलिखत बातों का ध्यान रख आवश्यक है- • ए.वी. िफस्ट्यूला यिद ठीक से काम करे तो ही हीमोडायिलिसस के िलए उससे पयार्� र� िलया जा सकता है। सं�ेप म, डायिलिसस करानेवाले रोिगयों क� जीवन डोर .वी. िफस्ट्यूला क� योग्य कायर्�मता पर आधा� होती है। • िफस्ट्यूला बनाने के बाद नस फूली रहे और पयार्� मात्रा में उससे र� िमल सके िलए हाथ क� कसरत िनयिमत करना आवश्यक है। िफस्ट्यूला क� मदद स हीमोडायिलिसस शु� करने के बाद भी हाथ क� कसरत िनयिमत करना अत्यंत ज�री है। • र� के दबाव में कमी होने के कारण िफस्ट्यूला क� कायर्�मता पर गंभीर असर सकता है, िजसके कारण िफस्ट्यूला बंद होने का डर रहता है। इसिलए र� के दबाव मे ज्यादा कमी न हो इसका ध्यान रखना चािहए • िफस्ट्यूला कराने के बाद प्रत्येक मरीज को िनयिमत �प से िदने में तीन(सुबह, दोपहर और रात) यह जाँच लेना चािहए िक िफस्ट्यूला ठीक से काम कर रही है या नहीं ऐसी सावधानी रखने से यिद िफस्ट्यूला अचानक काम करना बंद कर दे तो उसका िनदान तुरंत हो सकता है। शीघ्र िनदान और योग्य उपचार से िफस्ट्यूला िफर से करने लगती है। • िफस्ट्यूला कराये ह�ए हाथ क� नस में कभी भी इंजेक्शन या िड्रप नहीं लेना चािह नस से परी�ण के िलए र� भी नहीं देना चािहए। • िफस्ट्यूला कराये हाथ पर ब्लडप्रेशर नहीं मापना च
  • 24. • िफस्ट्यूला कराये हाथ से वजनदार चीजें नहीं उठानी चािहए। साथ, ध्यान रखना चािहए िक उस हाथ पर ज्यादा दबाव नहीं पड़े। खासकर सोते समय िफस्ट्यूला करा हाथ पर दबाव न आए उसका ध्यान रखना ज�री है • िफस्ट्यूला को िकसी प्रकार क� चोट न , यह ध्यान रखना ज�री है। उस हाथ मे घड़ी, जेवर (कड़ा, धातु क� चूिड़याँ ) इत्यािद जो हाथ पर दबाव डाल सके उन्हें न पहनना चािहए। • ए.वी. िफस्ट्यूला क� फूली ह�ई नसों में अिधक दबाव से साथ बड़ी मात्रा में र� प होता है। यिद िकसी कारण अकस्मात् िफस्ट्यूला में चोट लग जाए और र� बहने लगे िबना घबराए, दूसरे हाथ से भारी दबाव डालकर र� को बहने से रोकना चािहए। हीमोडायिलिसस के प�ात् इस्तेमाल क� जानेवाली पट्टी को कसकरबाँधने से र� बहना असरकारक �प से रोका जा सकता है। उसके बाद तुरंत डॉक्टर से संपकर् करन चािहए। बहते र� को रोके िबना डॉक्टर के पास जाना जानलेवा हो सकता है। यिद ऐसी िस्थित में र� के बहाव पर तुरंत िनयंत्रण नहीं िकया जा सके तो थोड़े समय में मर मौत भी हो सकती है। • िफस्ट्यूला वाले हाथ को साफ रखना चािहए और हीमोडायिलिसस कराने से पहले हाथ को जीवाणुनाशक साबुन से धोना चािहए। • हीमोडायिलिसस के बाद िफस्च्युला से र� को िनकलने से रोकने के िलए हाथ पर खा पट्ट(Tourniquet) कस कर बाँधी जाती है। यिद यह पट्टी लंबे समय तक बंधी रह ज, तो िफस्ट्यूला बंद होने का भय रहता है। आट��रयो वीनस ग्राफ िजन रोिगयों में नसों क� िस्थित िफस्ट्यूल िलए योग्य नहीं , तो उनके िलए ग्राफ्ट उपयोग िकया जाता है। इसमें शल्य िक्रया द एक लूप के शक्ल क� कृित्रम नली हाथ या पै क� धमनी और िशरा के बीच जोड़ दी जाती है। यह दो स�ाह में तैयार हो जाता है। इसमें सुइया कृ ित्रम नली में लगाई जाती हैं। मँहगा होने कारण यह बह�त कम प्रयोग िकया जाता है
  • 25. हीमोडायिलिसस के थेटर आपातकालीन प�रिस्थितयों में पहली बार तत् हीमोडायिलिसस करने के िलए यह सबसे प्रचिलत पद्धित है। के थेटर गदर्न या जाँघ क� मोटी िशराओं( Internal Jugular, Subclavian or Femoral vein) में रखे जाते हैं। यह केथेट बाहर के भाग में दो अल-अलग िहस्सों में िवभािजत होता ह िबना कफ के के थेटर कु छ ही हफ्तों तक प्रयोग िकये जा स है, उसके बाद संक्रमण या र� स्राव का भय रहता है। ले कफ वाले के थेटर छोटी सी शल्य िक्रया द्वारा लगाये जा हैं और दो साल तक चल सकते हैं डायिलिसस के िलए आवश्यकताए • िफस्ट्यूला द्वारा फूली नसें ग्राफ्ट या केथे • डायिलिसस मशीन जो र� को पंप करती है और पूरी प्रिक्रया देखरेख करती है। • कृ ित्रम गुदार् या डायलाइज़र र� का शुद्धीकरण करता है • डायलाइसेट द्रव जो र� से दूिष पदाथर् खींचता है हीमोडायिलिसस मशीन डायलाइजर डायलाइज़र आठ इन्च लम्बी और डेढ़ इन्च मोटी पारदशर्क प्लािस्टक क� नली से बनत इसमें िवशेष तरह के प्लािस्टक क� अधर्पारगम्य िझल्ली से बनी दस हजार बाल जैसी अं पोली महीन निलयाँ होती हैं। डायलाइज़र के उपर और नीचे के भागों में ये पतली निलयाँ इक होकर बड़ी नली बन जाती है, िजससे शरीर से र� लाने वाली और ले जाने वाली मोटी निलयाँ जुड़ जाती हैं। डायलाइज़र के उपरी तथा नीचे के िहस्सों में बगल में डायिलिसस द्रव क और िनकास के िलए मोटी निलयाँ जुड़ी ह�ई होती हैं।
  • 26. डायिलिसस में र� प�रवहन प हीमोडायिलिसस मशीन आइये मैं जिटल सी िदखने वाली डायिलिसस मशीन से आपका प�रचय करवा दूँ। हीमोडायिलिसस क� प्रिक्रया चार घन्टे तक है। उस बीच शरीर का सारा र� 12 बार शुद्ध होत है। यह सामान्यतः स�ाह मे3 या 4 बार िकया जाता है। यह एक बार में शरीर से250-300 िम.ली. र� प्रित िमनट पंप द्वारा तेज गित से खीं कृ ित्रम गुद� या डायलाइज़र में पह�ँचाती है। र� शुद्धीकरण यहीं होता है। यहाँ आनेवाला र� िसरे से अन्दर जाकर हजारों पतली निलकाओं म बंट जाता है। डायलाइज़र में दूसरी तरफ से दबाव के साथ आनेवाला डायिलिसस द्रव र� क शुद्धीकरण के िलए पतली निलयों के आसप िवपरीत िदशा में प्रवािहत होता है। । इस तरह व्यवस्था में अधर्पारगम्य िझल्ली के एक त और दूसरी तरफ डायलाइसेट रहता है। इस िक्रया में पतली निलयों से र� में उप क्र�एिटि, यू�रया जैसे उत्सज� पदाथर् डायिलिसस द्रव में िमल कर बाहर िनकल जाते है तरह डायलाइज़र में एक िसरे से आनेवाला अशुद्ध र� जब दूसरे िसरे से िनकलता , तब वह साफ ह�आ शुद्ध र� होता है। साफ र� शरीर में वापस पंप कर िदया जाता है। शरीर से बा
  • 27. आने पर र� के जमने क� आशंका रहती है इसिलए इसमें एक िहपे�रन पंप द्वारा िहपे�रन िम िदया जाता है तािक र� जमें नहीं। मशीन डायिलिसस द्रव में त, �ार (बाइकाब�नेट) आिद का सन्तुलन बनाए रखती है। पूरे प�रवहन पथ में र� के प्रवाह और दबाव पर िनगरानी रखी जाती है। गुदार् फेल्योर से शरीर में आई सूजन अित�र� पानी के जमा होने होती है। डायिलिसस िक्रया में मशीन शरीर से ज्यादा पानी को िनकाल देती हीमोडायिलिसस के दौरान रोगी क� सुर�ा के िलए कई प्रकार क� व्यवस्थाएं होती है डायिलिसस द्रव हीमोडायिलिसस के िलए िवशेष प्रकार का अत्यािधक �ारयु� (हीमोकॉन्सेन्ट) दस लीटर के प्लािस्टक के जार में िमलता है। हीमोडायिलिसस मशीन इस हीमोकॉन्सेन्ट्रेट का और 34 भाग शुद्ध पानी को िमलाकर डायलाइसेट बनता है। हीमोडायिलिसस मशी डायलाइसेट के �ार तथा बाइकाब�नेट क� मात्रा शरीर के िलए आवश्यक मात्रा के ब रखती है। डायलाइसेट बनाने के िलए उपयोग में िलए जानेवाले पानी �ाररिह , लवणमु� एवं शुद्ध होता , िजसे िवशेष तरह आर. ओ. प्लान्( Reverse Osmosis Plant – जल शुद्धीकरण य) के उपयोग से बनाया जाता है। हीमोडायिलिसस िकस जगह िकया जाता है? सामान्य तौर पर हीमोडायिलिसस अस्पता के िवशेष� स्टॉफ द्वारा नेफ्रोलोिजस सलाह के अनुसार और उसक� देखरेख में िकया जाता है। बह�त ही कम तादाद में मरीज हीमोडायिलिसस मशीन को खरीदकर, प्रिश� प्रा� करके पा�रवा�रक सदस्यों क� मदद से में ही हीमोडायिलिसस करते हैं। इसके िल धनरािश, प्रिश�ण और समय क� ज�र पड़ती है। क्या हीमोडायिलिसस पीड़ादायक और जिटल उपचार ह? नही, हीमोडायिलिसस एक सरल और पीड़ारिहत िक्रया है। रोगी िसफर् हीमोडायिलिसस करा अस्पताल आते हैं और हीमोडायिलिसस क� प्रिक्रया पूरी होते ही वे अपने घर चले जात अिधकांश मरीज इस प्रिक्रया के दौरान चार घण्टे का समय, आराम करने, लेपटॉप पर काम करने, टी.वी. देखने, संगीत सुनने अथवा अपनी मनपसंद पुस्तक पढ़ने में िबताते हैं। बह से मरीज इस प्रिक्रया के दौरान हल्का , चाय अथवा ठंडा पेय लेना पसंद करते हैं।
  • 28. सामान्यतः डायिलिसस के दौरान कौ-कौन सी तकलीफे ं हो सकती ह? डायिलिसस के दौरान होनेवाली तकलीफों में र� का दबाव कम हो, पैर में ददर् हो, कमजोरी महसूस होना, उल्टी आन, उबकाई आना, जी िमचलाना इत्यािद शािमल हैं हीमोडायिलिसस के मुख्य फायद • कम खच� में डायिलिसस का उपचार • अस्पताल में िवशेष� स्टॉफ एवं डॉक्टरों द्वारा िकए ज कारण हीमोडायिलिसस सुरि�त है। • यह कम समय मे ज्यादा असरकारक उपचार है। • संक्रमण क� संभावना बह�त ही कम होती है • रोज कराने क� आवश्यकता नहीं पड़ती है • अन्य मरीजों के साथ होने वाली मुलाकात और चचार्ओं से मानिसक तनाव कम होता ह हीमोडायिलिसस के मुख्य नुकसा • यह सुिवधा हर शहर/गाँव में उपलब्ध नहीं होने के कारण -बार बाहर जाने क� तकलीफ उठानी पड़ती है। • उपचार के िलए अस्पताल जाना और समय क� मयार्दा का पालन करना पड़ता है • हर बार िफस्ट्यूला नीडल को लगाना पीड़ादायक होता है। • हेपेटाईिटस के संक्रमण क� संभावना रहती है • खाने में परहेज रखना पड़ता है। हीमोडायािलस के रोिगयों के िलए ज�री सूचनाए • िनयिमत हीमोडायिलिसस कराना लम्बे समय तक स्वस्थ जीवन के िलए ज�री है। उस अिनयिमत रहना या प�रवतर्न करना शरीर के िलए हािनकारक है। • दो डायिलिसस के बीच शरीर के बढ़ते वजन के िनयंत्रण के िलए खाने में परह(पानी और नमक कम लेना) ज�री है। • हीमोडायिलिसस के उपचार के साथ-साथ मरीज को िनयिमत �प से दवा लेना और र� के दबाव तथा डायिबटीज पर िनयंत्रण रखना ज�री होता ह