साईं बाबा की जय-जयकार - http://spiritualworld.co.in
दामोदर को सांप के काटने और साईं बाबा द्वारा बिना किसी मंत्र-तंत्र अथवा दवा-दारू के उसके शरीर से जहर का बूंद-बूंद करके टपक जाना, सारे गांव में इसी की ही सब जगह पर चर्चा हो रही थी|
गांव के कुछ नवयुवकों ने द्वारिकामाई मस्जिद में आकर साईं बाबा के अपने कंधों पर बैठा लिया और उनकी जय-जयकार करने लगे| सभी छोटे-बड़े, स्त्री-पुरुष साईं बाबा की जय-जयकार के नारे पूरे जोर-शोर से लगा रहे थे|
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2. दामोदर को सांप के काटने और साई बाबा द्वारा िबना
िकसी मंत-तंत अथवा दवा-दार के उसके शरीर से जहर
का बूंद-बूंद करके टपक जाना, सारे गांव मे इसी की ही
सब जगह पर चर्चर्ार हो रही थी|
गांव के कुछ नवयुवको ने द्वािरकामाई मिस्जद मे आकर
साई बाबा के अपने कंधो पर बैठा िलिया और उनकी
जय-जयकार करने लिगे| सभी छोटे-बड़े, स्त्री-पुरुष साई
बाबा की जय-जयकार के नारे पूरे जोर-शोर से लिगा रहे
थे|
"हम तो साई बाबा को इसी तरह से सारे गांव मे
घुमायेगे|" नयी मिस्जद के मौलिवी ने कहा - "मैंने तो
पहलिे ही कह िदया था िक यह कोई साधारण पुरुष नही
हैं| यह इंसान नही फरिरश्ते हैं| यह तो िशरडी का
अहोभाग्य है िक जो यह यहां पर आ गए हैं|"
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3. "हां, हां, हम साई बाबा का जुलिूस िनकालिेगे|" अभी
उपिस्थत विक एक स्वर मे बोलिे|
िफरर उसके बाद सब जुलिूस िनकालिने की तैयारी करने मे
लिग गये|
यह सब देख-सुनकर पंिडतजी को बहत जयादा दुःख
हआ| पूरे गांव मे केवलि वे ही एक ऐसे विक थे जो नये
मंिदर के पुजारी के साथ-साथ पुरोिहताई और वैद का
भी कायर िकया करते थे| यह बात उनकी समझ मे जरा-
सी भी नही आयी िक साई बाबा के हाथ फरे रने से ही
जहर कैसे उतर सकता है?
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4. इस बात को वह ढोग मान रहे थे| इसमे उनको साई
बाबा की कुछ चर्ालि नजर आ रही थी| वह गांव के लिोगो
का इलिाज भी िकया करते थे| साई बाबा के प्रतित उनके
मन मे ईष्यार पैदा हो गयी थी|
साई बाबा एक चर्मत्कारी पुरुष हैं, पंिडतजी इस बात
को मानने के िलिए िबल्कुलि भी तैयार न थे| वह ईष्यार मे
भरकर साई बाबा के िवरुद उल्टी-सीधी बाते बोलिने
लिगे|
सब जगह केवलि साई बाबा की ही चर्चर्ार थी| पर,
पंिडतजी की ईष्यार का कोई िठकाना न था|
"जरर कोई महात्मा हैं|“
"िसदपुरुष हैं|"
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5. "देखो न ! कैसे-कैसे चमतकार करता है !“
अब आस-पास के लोग िजनहोने साई बाबा के
चमतकार के बारे मे सुना, उनके दशरन करने के
िलए आ रहे थे| उधर पंिडतजी न नाग के जहर को
शरीर से बूंद-बूंद कर टपक जाने की बात सुनी तो
आगबबूला हो गये-और गांव के चौपाल पर बैठे
लोगो से बोले-
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6. "यह गांव ही मूखो से भरा पडा है|" पंिडत ने कोध
से कांपते हए कहा - "वह कल का मामूली छोकरा
भला िसदपुरष कैसे हो सकता है ? कई-कई जनम
बीत जाते है साधना करते हए, तब कही जाकर
िसिद पाप होती है| नाग का जहर तो संपेरे भी
उतार देते है| मुझे तो पहले ही िदन पता चल गया
था िक वह कोई संपेरा है| एक संपेरो की ही ऐसी
कौम होती है, िजनका कोई दीन-धमर नही होता|
वह भला िसदपुरष कैसे हो सकता है?"
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7. "आप िबलकुल ठीक कहते है पंिडतजी!"-एक विक ने
कहा - "पनदह-सोलह वषर का छोकरा है और गांव वालो
ने उसका नाम रख िदया है 'साई बाबा'| यह साई बाबा
का कया अथर होता है, पंिडतजी ! जरा हमे भी
समझाइये?“
"इसका अथर तो तुम उनही लोगो से जाकर पूछो,
िजनहोने उसका यह नाम रखा है|" पंिडतजी ने ईषयार मे
भरकर कहा| िफर रहसयपूणर सवर मे बोले-"जाओ,
पुरानी मिसजद मे देखकर आओ, वहां पर कया हो रहा
है?"
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8. तभी अचानक झांझ, मदृंग, ढोल और अनय वाद्यो की
आवाज तथा लोगो का कोलाहल सुनकर पंिडतजी चौंक
गये| बाजो की आवाज के साथ-साथ जय-जयकार के
नारे भी सुनायी दे रहे थे|
उनहोने देखा, सामने से एक जुलूस आ रहा था|
"पंिडतजी! बाहर आइए|साई बाबा की शोभायात्रा आ
रही है|" एक विक ने बडे जोर से िचललाकर कहा|
पंिडतजी उस नजारे को देखकर बडे हैरान थे| पालकी के
आगे-आगे कुछ गांववासी झांझ, मंजीरे और ढोल बजाते
हए चल रहे थे| उनके पीछे एक पालकी मे साई बाबा
बैठे थे| दामोदर और उसके सािथयो ने पालकी अपने
कंधो पर उठा रखी थी| उनके साथ गांव के पटेल भी थे
और नई मिसजद के इमाम भी|
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9. साथ ही प्रतितिष्ठिष्ठितिष्ठ लोगो की भीड भी चल रही थी| इन
सबके साथ गांव की बहुतिष्ठ सारी महिहलाएं भी थी| ऐसा
लगतिष्ठा था िक जैसे सारा गांव ही उमहड पडा हो| सभी
साई बाबा की जय-जयकार कर रहे थे|
साई बाबा का ऐसा स्वागतिष्ठ-सत्कार देखकर पंिडितिष्ठजी के
होश उड गये, महारे क्रोध के बुरा हाल हो गया| वह गला
फाडकर िचल्लाकर बोले-"सत्यानाश! ये ब्राह्मण के
लडके इस संपेरे के बहकावे महे आ गए है| यह बहुतिष्ठ बडा
जादूगर है| नौजवानो को इसने अपने वश महे कर रखा है|
यह बहुतिष्ठ बडा जादूगर है| नौजवानो को इसने अपने वश
महे कर रखा है| देख लेना, एक िदन यह सब भी इसी की
तिष्ठरह शैतिष्ठान बन जायेगे| हे भगवान! क्या महेरे भाग्य महे
यह िदन भी देखना बाकी था?"
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10. जैसे-जैसे शोभायात्रा आगे बढ़तिष्ठी जा रही थी और उसमहे
शािमहल होने वाले लोगो की भीड भी बढ़तिष्ठी जा रही
रही, साई बाबा िक पालकी के आगे-आगे नवयुवक
नाचतिष्ठे, गातिष्ठे और जय-जयकार से वातिष्ठावरण को गूंजा
रहे थे|
अपने-अपने घरो के दरवाजो पर खडी िस्त्रियां फू ल
बरसाकर शोभायात्रा का स्वागतिष्ठ कर रही थी|
पंिडितिष्ठजी से साई बाबा का यह स्वागतिष्ठ देखा न गया| वह
गुस्से महे पैर पटकतिष्ठे हुए घर के अंदर चले गए और
दरवाजा बंद करके, कमहरे महै जाकर पलंग पर लेट गए
और महन-ही-महन साई बाबा को कोसने लगे| कैसा
जमहाना आ गया है, इस कल के छोकरे ने तिष्ठो सारे गांव
को िबगाडकर रख िदया है| पंिडितिष्ठजी को साई बाबा
अपना सबसे बडा दुश्महन िदखाई दे रहे थे| जुलूस
गांवभर महे घूमहतिष्ठा रहा और हर जबान पर साई बाबा की
चचार होतिष्ठी रही| 9 of 15 Contd…
11. शोभायात्रा घूमहकर वापस लौट आयी|साई बाबा के पास
कुछ ही व्यक्तिक रह गए| वह चुपचाप आँखे बंद िकये बैठे
थे|
"बाबा, जब आप पहले-पहल गांव महे आए थे और लोगो
ने आपसे पूछा था िक आप कौन है, तिष्ठो आपने कहा था,
महै साई बाबा हूं| साई बाबा का क्या अथर होतिष्ठा है?"
दामहोलकर ने पूछा| उसके इस प्रतश पर साई बाबा
महुस्करा िदए|
"देखो, दो अक्षर का शब्द है-सा और ई| सा का अथर है
देवी और ई का अथर होतिष्ठा है महां| बाबा का अथर होतिष्ठा है
िपतिष्ठा| इस प्रतकार साई बाबा का अथर हुआ-देवी,महातिष्ठा
और िपतिष्ठा|"
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12. "जनमह देने वाले महातिष्ठा-िपतिष्ठा के प्रतेमह महे स्वाथर की भावना
िनिहतिष्ठ होतिष्ठी है| जबिक देवी महातिष्ठा-िपतिष्ठा के सेह महे
जरा-सा भी स्वाथर नही होतिष्ठा है| वह तिष्ठुमहारा महागरदशरन
करतिष्ठे है और तिष्ठुमहे प्रतेरणा देतिष्ठे है| आत्महदशरन, आत्महजान
की सीधी और सची राह िदखातिष्ठे है|" साई बाबा ने
समहझातिष्ठे हुए कहा - "वैसे साई बाबा को प्रतयोग
परमहिपतिष्ठा परमहात्महा, ईशर, अल्लातिष्ठाला और महािलक
के िलए भी िकया जातिष्ठा है|"
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13. "आप वासतव मे ही साई बाबा है|" सभी उपिसथत
लोगो ने एक सवर मे कहा - "आपने हम सभी को सही
रासता िदखाया है| सबको आपने ईशर की भिक के मागर
पर लगाया है|“
"यह मनुषय शरीर न जाने िकतने िपछले जनमो के पुणय
कमो को करने के पशात् पाप होता है| इस संसार मे
िजतने भी शरीरधारी है, उन सबमे केवल मनुषय ही
सबसे अिधक बुिदमान पाणी है| वह इस जनम मे और
भी अिधक पुणय कमर कर सकता है|
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14. उसके पास बुिद है, ज्ञान है और इसके बावजूद भी वह
मानव शरीर पाकर मोह-माया और वासना के दलदल मे
फं स जाता है| इससे छुटकारा पाना असंभव हो जाता है|
उसका मन रात-िदन वासना और सवाथर मे िलप रहता
है| धन-सम्पित पाने के िलए वह कैसे-कैसे कायर नही
करता है| मनुषय को इस दलदल से यिद कोई मुिक िदला
सकता है, तो वह है गुर... केवल सदगुर|
लेिकन आज के समय मे सच्चा गुर कहा िमलता है| सच्चे
इंसान ही बड़ी मुिश्कल से िमलते है| िफर सच्चे गुर का
िमलना तो और भी अिधक किठिन है|“
"सच्चे गुर िक पहचान कया है साई बाबा?" एक विक ने
पूछा|
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15. "सच्चा गुर वही है, जो िशषय को अचछाई-बुराई का भेद
बता सके| उिचत-अनुिचत का अंतर बता सके|
आतमपकाश, आतमज्ञान दे सके| िजसके मन मे रतीभर
भी सवाथर की भावना न हो, जो िशषय को अपना ही
अंश मानता हो| वही सच्चा सदगुर है|" साई बाबा ने
बताया और िफर अचानक उनहे जैसे कुछ याद आया, तो
वह बोले - " आज तातया नही आया कया?“
"बाबा, मै आपको बताना ही भूल गया| तातया को आज
बहत तेज बुखार आया है|"
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"तो आओ चलो, तातया को देख आये|" साई बाबा ने
अपने आसन से उठिते हए कहा| साथ ही अपनी धूनी मे
से चुटकी भभूित अपने िसर के दुपटे मे बांधकर चल
पड़े|