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DR.FALGUNI JOSHI MD.SCHOLAR
DR.RAVI SHARMA (HOD),DR.INDUMATI SHARMA
(ASS.PROF.).DR.SITA RAJORIA,DR.RUHI
ZAHIR,DR.PRADEEP MEENA (LECT.)
PG.DEPT. OF KAYA CHIKITSA
M.M.M. GOVT. AYURVED COLLEGE ,UDAIPUR
Chikitsa sutra and
management of mans
vaha and medo vaha
strotas
म ांसवह स्रोतस के मूल -
• म ांसवह न ां च स्रोतस ां स्न युमूूलां त्वकच च |
म ांसवह स्रोतों क मूल स्न यु और त्वकच है|
• म ांसवह स्रोतों दुष्टि हेतु-
अभिटयांदीनि िोज्य नि स्थूल नि च गुरूणि च
|
म ांसवह नि दुटयष्तत िुक्त्व च स्वपत ां ददव
||च.वव. ५१५
अभिष्यांदी, स्थूल, गुरु िोज्य पद थो के ब द तत्क ल
ददन में सोने से म ांसवह स्रोत दुष्ट होते है |
म ांसवह स्रोतस के मूल व दुष्टि के लक्षि -
• म ांसवहे द्वे, तयोमूूलम् स्ि यु्वूचां रक्ततवह श्च
धमतय: |
तश्च ववद्धस्य श्वयथुम ांस शोष: भसर ग्रांथयो मरिां च
||सु.श
.
म ांसवह स्रोत दो है |
मूल स्न यु, त्वच एवां रक्तवह धमननयॉ है |
उनक वेध होने से सूजन, म ांसशोष , भशर ग्रांथथ और
मृत्यु आदद लक्षण होते है |
मेदोवह स्रोतस के मूल -
• मेदोवह ि ां स्रोतस ां वृक्तकौ मूलां वप वहिां च |
(च.वव.५)
मेदोवह स्रोतों क मूल वृक्क और वप वहन है|
मेदोवह स्रोतों दुष्टि के हेतु –
अव्य य मददव स्वप्ि तमेध्य ि ां च नत िक्षि त ् |
मेदोवह नि दुटयष्तत वरुण्य श्च नतसेवि त ् ||
 व्य य म न करने से
 ददव स्वप्न करने से
 अथधक चबी व ले म ांस क सेवन करने से
 अथधक मद्यप न करने से मेदोवह स्रोतस दुष्ट हो ज ते
है |
मेदोवह स्रोतस के मूल एवां दुष्ष्ट के लक्षण-
मेदोवहे द्वे तयोमूूलां कटी वृक्कौ च
तश्च ववद्धश्च स्वेद गमनां ष्स्नगध ांगत त लुशोष:
स्थूलत शोफ: वपप स ां च ||सु.श .९
मेदोवह स्रोत दो हैं
मूल कटी व वृक्क हैं
इनके ववद्ध होने से-
 स्वेद प्रवृवि अथधक होन
 अांगो में ष्स्नगधत होन
 त लू क सूखन
 शरीर स्थूलत आन
 सूजन आन
 वपप स अनुिूनत इत्य दद लक्षण उत्पन्न होते है|
म ांसवह एवां मेदोवह स्रोत दुष्ष्ट से ननम्न रोग
उत्पन्न होते हैं |
- गण्डम ल अपची
-अबुूद गलगांड
- -स्थौल्य म ांसशोष
- क श्यू -प्रमेह
-
अपची
आच यू सुश्रुत के अिुस र –
 मेद तथ कफ के क रण उत्पन्न
 मेद एवां कफ हन्वष्स्थ, कक्ष ,अक्षक ष्स्थ तथ ब हु की ग्रांथथयों
मे एवां मन्य और गले मे सांथचत होकर ग्रष्न्थ रोग को उत्पन्न
करते है|
 यह ग्रष्न्थ गोल,ष्स्थर ,चौड़ी ,थचकनी और अल्प पीड़ युक्त
होती है |
 इस प्रक र आांवले की अष्स्थ के आक र की अनेक ग्रांथथयों के
उत्पन्न होने से एवां मछभलयों के अांडों के ज ल समूह के सदृश
अन्य छोटी-छोटी एवां त्वच के सम न वणू की अनेक ग्रांथथयों के
उपथचत होने से इन्हे अपची कह ज त है |
• “चयप्रकष ूदपची”
यह ग्रष्न्थ खुजली युक्त एवां अल्प
वेदन व ली होती है |
फू टने पर यह स्र व बह ती है |
“सुदुस्तरों वषूगि िुबांधी”
अपची थचककत्स
• जीमूतक एवां कोश वती के फल एवां दांती-
द्रवांती और नीशोथ की जड़ के कल्क से
भसद्ध ककय गय घृत बढ़ी हुई अपची को
नष्ट करत है |
• प्रग ढ़ वमि – निगुांडी ,ज ती ,सुगांधब ल के
उटि क्तव थ मे देवद ली कल्क ,मधु और
सेंध िमक क प्रयोग |
• श खोंटक स्वरस भसद्ध तैल से नस्यववरेचन
|
• अममूज ग्रष्न्थ मे क्ष र ,अष्गन ,शस्र किय क
ववध न |
• अष्निकमू –
“प ष्ष्णूप्रनत द्वे दश च ांगुल नी भमत्वेन्द्रबष्स्त
पररवर्ज़यू धीम न |
ववद यू मत्स्य ण्डननि नन वैद्यो ननष्कृ ष्य
ज ल न्यनलां ववदध्य तच ||”(सू.थच. 18)
• शस्रकिय –
“आ गुल्फकि ूत ् सुभमतस्य जितो
स्तस्य टिि गां खुड़क द्वविज्य |
घोिजुूवेध: सुरर जबस्तेदह्व क्षक्षम त्रम ्वपरे
वदांनत” ||
मणिबतधोपररटि द्व कु य ूद्रेख त्रयां भिषक् |
अँगुल्यततररतां सम्यगपचीि ां निवृत्तये ||
• िोज ने प्रथम कक्ष - वांक्षण दद स्थ नों में
अपची होन भलख है तथ वही म ल के
रूप होती है तब उसे गण्डम ल कह है ।
.......”अपची कण्ठमतय सु कक्ष वक्षिसष्तधषु
त ां तु म ल कृ नत ववद्य त ् कण्ठहद्धिुसष्तधषु
गण्डम ल ां ववज िीय दपचीतुल्यलक्षि म ्’' ।।
गण्डम ल
• चरक ने गले के प श्वू में एक ग्रष्न्थ क
होन गलगण्ड तथ अनेक गण्डों के होने से
गण्डम ल क होन भलख है ।
यथ –
“मेद : कफ च्छोणितसञ्चयो्थो गण्डस्य ( गलस्य )
प वें गलगण्ड एकः । स्य द् गण्डम ल बहुभिश्च
गण्डैदीप्त िले यूनि बल ष्तवते च । स ध्य : स्मृत ः
पीिसप श्वूशूलक सज्वरच्छददूयुत स््वस ध्य :‘’ ।
• एलोपेथी मत से
अपची -Chronic tuberculous lymphadenitis /
Scrofula
 इसक प्रध न क रण क्षय य जीव णु म न गय
है
 इस रोग में शरीर की लसीक ग्रष्न्थय ाँ (
Lymphatic glands ) ववकृ त होकर बढ़ने लगती हैं ,
पकती हैं और फू ट कर पूय बह ती हैं कफर नई
पकती फू टती हैं ऐसे वषों तक यह रोग वपण्ड नहीां
छोड़त है|
अबुूद
 “ग त्रप्रदेशे क्तवचचदेव
दोष : सममूष््छूत
म ांसमभिप्रदूटय |
 वृतां ष्स्थरम
मांदरुजम
मह ततमिल्पमूलां
चचरवृद्धयप कम् |
 कु वूष्तत म ांसोंपचयां
तु शोफां तदबुूदां
श स्त्रववदो वदांनत |”
ि प कम य ष्तत कफ़अचधक
्व मेदोंअचधक्व च्च
ववशेषस्तु |
कफ की अचधकत और मेद
की ववशेष अचधकत से
दोनों दोष के ष्स्थर
होने से
ग्रष्तथ रूप होिे से
स्व ि ववक तौर पर
अबुूद पकते िहीां है |
अबुूद मे प क ि
होिे क क रि
िेद
• व तेन वपिेन कफे न च वप रक्तेन म ांसेन च
मेदस च |
लक्षि –
तज़्ज यते तस्य च लक्षि नि ग्रतथे: समि नि
सद िवष्तत ||
रक्त बुूद
रक्त बुूद -
भमथ्य आह रववह र से
दुष्ट व त दद दोष के
द्व र
रक्तत तथ भसर ओ को
पीड़ड़त तथ सांकु चचत
करके प क को प्र प्त
होती है |
इससे स्त्र वयुक्तत तथ म ँस के अांकु रों
से व्य प्त एवां शीघ्र वृद्चध से युक्तत
म ांसवपांड को उ्सेध युक्तत कर देते हैं |
इिसे निरांतर दूवषत
रक्तत बहत रहत है
रक्त बुूद अस ध्य होत है
|अबुूद रोग से पीडडत व्यष्क्त
रक्तक्षयरूपी उपद्रव से पीडड़त
होने से प ांडु वणू हो ज त है |
म ांस बुूद
म ांस बुूद
 निद ि –
 1.मुष्ष्ट प्रह र आदद से शरीर प्रदेश पर आघ त पहुचने
पर वह ां क म ाँस दूवषत हो ज त है |
2.जो व्यष्क्त अथधक म ाँस ख ने मे तत्पर रहत है ,तथ
ष्जसक म ाँस दूवषत हो ज त है ,उसके देह मे म ाँस बुूद
पैद होत है |
 लक्षि-
 यह म ाँस स्वल्प पीड़क री ,स्पशू मे थचकन ,स्व ि ववक
वणूयुक्त ,नहीां पकने व ल ,पत्थर के सम न कड तथ
ष्स्थर शोफ पैद करत है|
 यह अस ध्य होत है |
अस ध्यत –
 जो बहुत बहत हो
 जो ममू स्थ न पर पैद हुआ हो
 जो न स य रस-रक्त स्रोतस य अन्न
वह मह स्रोतस मे उत्पन्न हुआ हो
 जो ष्स्थर हो |
अध्यबुूद तथ द्ववरबुूद
अध्यबुूद-
यज़्ज यते अतयत ्
खलु पूवूज ते ज्ञेयम |
द्ववरबुूद-
यद् द्वतद्वज तां
युगपत ् क्रम द्व |
ये दोिों अस ध्य होते है |
अबुूद की थचककत्स
• व तज अबुूद की चचकक्स –
 कू ष्म ण्ड ,एरव रुक ,न ररयल ,थचरौंजी और
अरांड बीज के चूणू तथ दूध ,घी और उष्ण जल
के द्व र उपन ह |
 म ाँस एवां वेश्व र से भसद्ध प्रध न उपन ह क
प्रयोग |
 न डी स्वेद,शृांग के द्व र अनेक ब र रक्त
ननक ले |
 व तघ्न द्रव्यों के क्व थ ,दूध तथ क ांजी से भसद्ध
शतप क त्ररवृत स्नेह वपल वे |
• वपत्तज अबुूद की चचकक्स –
 मृदु स्वेद ,उपन ह और ववरेचन देन
दहतकर |
 अबुूद से रक्त ननक लकर अमलत स,गोजी
,सोमलत और नीशोथ के लेप क उपयोग
करे |
 नीशोथ ,थगरीह्र्, अांजनकी ,मुनक्क और
यवनतक्त के रस मे मुलेठी कल्क के द्व र
सम्यगच भसद्ध घृत वपल ए |
• कफ़ज अबुूद की चचकक्स –
 इसमे पहले वमि करव कर शुद्ध हुए
रोगी को आल बू के द्व र रक्त ननक लकर
ऊपर और नीचे दोनों म गों से दोषों को
हरने व ले द्रव्यों क कल्क बन कर उसके
ऊपर लेप करे |
कबूतर और प र वत की बीट ,क ांसे की
क भलख,शुि,कभलह री और क क दन की जड़
गोमूर मे पीस कर लेप करे अथव क्ष रयुक्त
गोमूर क लेप लग ए |
ननष्प व ,वपण्य क ,कु लत्थकल्क मे प्रचुर
म ाँस ,दथध तथ मस्तु भमल कर अबुूद पर
लेप करे ष्जसमे मष्क्खय ाँ आकर वही बैठे
और कृ भम उत्पन्न करे |
कृ भम उस ि ग को ख ते है |
जब अबुूद क अवभशष्ट ि ग बच ज त है
तो उसमे अष्निकमू ,लेखि के ब द ककय
ज त है |
• अल्प मूल व ले अबुूद मे –
र ांग ,त ांब ,सीस य लोहे कक पट्टी से
च रों और से ब ांध कर ,रोगी के प्र णों कक रक्ष
करते हुए ,थचककत्सक-
क्ष र,अष्नि,शस्त्र कमू क अनेक ब र उपयोग
करे |
मेदोंबुूद
चचकक्स
 स्वेदन ककए गए मेदों अबुूद
को थचर कर शुद्ध करे |
 रक्त स्र व बांद होने पर शीघ्र
सी दे |
 कफर उसपे हल्दी, गृहधूम,
लोध्र ,पटन्गङ ,मैनशील और
हरत ल के चूणू मे पय ूप्त
मधू भमल कर व्रण पर लेप
लग ए |
 व्रण के शुद्ध होने पर करांज
तैल क प्रयोग करे |
“सशेषदोष णण दह योअबुूद नन
करोनत तस्य शु पुनिूवष्न्त
तस्म दशेष णण समुद्धरेिु हांयुुः
सशेष णण यथ दह वष्न्ि: |”
गलगांड
• निद ि –
व त और कफ के द्व र
ये दोनों दोष गले और
मज्ज क आश्रय करके
स्वयां के लक्षणों से युक्त
गलगांड रोग को उत्पन्न
करते है |(सु.नन .11)
• िेद –
1.व तज
2.कफज
3.मेदोज
मधुकोष:- गलगांड एवां चतुथूक ज्वर क
व्य थध स्वि व से वपिज िेद नहीां होत |
गलगांड क स म तय लक्षि-
नि.11)–
ननबद्ध:श्वयथुयूस्य मुष्कवल्लम्बते गले |
मह न च व यदद व िस्व गलगांड तम ददशेत च
|
• व नतक गलगांड लक्षि –
a) सूई चुिोने जैसी पीड़ से युक्त
b) क ली भसर ओ से व्य प्त
c) वणू – क ल / अरुण
d) स्पशू – अत्यांत थचकन (कु छ क ल पश्च त बढ़
ज ने और चबी युक्त हो ज ने से ),वेदन रदहत
e) वृद्थध –देर से
f) प क –कद थचत
g) मुख –ववरस
h) त लुगले – शोष
• कफज गलगांड के लक्षि –
a) ष्स्थर
b) अल्प पीड़ ,आक र मे बड
c) वणू – त्वच के सम न ,तेज खुजली युक्त
d) स्पशू – शीत
e) वृद्थध –देर से
f) प क – देर से ,पकने के समय कु छ पीड़
g) मुख – मीठ
h) गलत लु – लेप जैस बन रहत है
• मेदोज गलगांड के लक्षि –
a) बुरी गांध व ल ,पीड़ रदहत ,अथधक खुजली
b) वणू –प ांडु
c) स्पशू –थचकन तथ मुल यम
d) प्रलांबतेअल बूवदल्पमूलों
e) देह नुरूपक्षयवृद्थधयुक्त:
f) मुख – थचपथचप
g) गलत लु –अस्पष्ट शब्द
• व तज गलगांड की चचकक्स –
 प्रथम व तघ्न द्रव्यों के पिों के उष्ण क्व थ ,
क ांजी , अष्टववध मूर ,दूध ,तैल और म ांसरस के
द्व र न डी स्वेद करे |
 स्वेदन युक्त गांड से रक्त ननक लकर व्रण क
शोधन कर, पुलदटस बांधन करन च दहए |
 थगलोय, नीम ,हाँसपदी ,कु टज ,वपप्पली ,बल ,
अनतबल और देवद रु से भसद्ध तैल क ननत्य
प न करे |
• कफ़ज गलगांड की चचकक्स –
 स्वेद और उपन ह से स्वेदन करे ,
 रक्त मोक्षण,
 वपप्पल्य दद गण के क्व थ और कल्क से भसद्ध
तैल मे प ांचों नमक भमल कर वपल न च दहए |
 वमन ,भशरोववरेचन ,वैरेचननक धूम क प्रयोग करे
 ककसी प्रक र क प क होने पर पक्व व्रण कक ि नत
थचककत्स करनी च दहए |
• मेदज गलगांड की चचकक्स –
 ष्स्नगध ककए हुए रोगी मे भसर वेधन(अांससांथध
) करन च दहए |
 स लसर दीगण के वृक्षों क स रच गोमूर मे
घोलकर ,प्र तुः वपल न च दहए |
 अथव ग्रष्न्थ को चीरकर ,मेद ब हर ननक ल देन
च दहए और व्रण को सी देन च दहए |
 व्रण पर तैल लग कर स लसर दीगण और गोबर
कक र ख लग नी च दहए |
 व्रण धोने के भलए त्ररफल क्व थ तथ ग ढ़ बांधि
यव िोजि क ननत्य प्रयोग करन च दहए |
• अस ध्य गलगांड –
 कष्ट से स ांस लेते हुए
 मृदु एवां दुबूल शरीर व ले
 एक वषू से ज्य द पुर ने
 अरोचक से पीडड़त
 क्षीण हुए
 भिन्न स्वर व ले रोगी को थचककत्स मे
वष्जूत करन च दहये |
गलगांड रोग मे पथ्य
स्थोल्य
• निरुष्क्तत –
“स्थूल पररबृांहिे” ( अमरकोश )
“स्थूलस्य ि व स्थोल्यां” (
शब्दकल्पद्रुम )
• पररि ष –
मेदोंम ांसनतवृद्ध्व च्चलभसक गुदरस्ति:
अयथोउपचयों्स हों िरोनतस्थूलउच्यते
||(च.सू.21)
• निद ि-
 गुरु ,ष्स्िनध आह र
क अ्यचधक
सेवि
 अ्यचधक म त्र मे
आह र क सेवि
करि
 अध्यशि
 म दहष दुनध ,घृत
क अचधक सेवि
 वपटिति सेवि
 आिुप म ँस सेवि
 िवीि अति क
अनतसेवि
 अ्यचधक मददर
प ि
 व रुिी मद्य क
अनत सेवि
 अव्य य म
 ददव स्वप्ि
 अव्यव य
 निष्श्चांतत
 अ्यचधक प्रसतित
 सुख क रक आसि
 अनतनिद्र
 सहज एवां कु लज
क रि
 बीज स्वि व
 स्थूल
म तृवपतृजतय त |
आह र जतय ववह र जतय अतय निद ि
ववववध प्रक र के निद िों क सेवि
आम रस कक उ्पवत्त
मेदों ध तु की अनत वृद्चध
स्थोल्य मेदों ध तु से स्त्रोतसअवरोध
के वल मेदों ध तु वृद्थध व यु की अनतवृद्थध
वृद्ध व यु क कोष्ठ मे प्रवेश
जठर ष्गन की अनतवृद्थध
पुनुः पुनुः आह र गृहण करने कक इच्छ
ननरांतर मेद ध तु वृद्थध
पुनुः आम रस क ननम ूण
मेद ध तु वृद्थध स्थोल्य
सांप्र ष्प्त चक्र –
• सांप्र ष्प्त घिक –
 दोष – त्ररदोष
 दूष्य –मेद
 अथधष्ठ न –सवू शरीर ववशेषकर ष्स्िग, ननतांि,उदर
,स्तन
 स्रोतस –मेदोंवह
 स्रोतस दुष्ष्ट –सांग ,ववम गूगमन
 अष्गन ष्स्थनत –प्र रांि मे अष्गनम न्द्य, पश्च त मे
तीव्रअष्गन
 व्य थध स्वि व – द रुण
 स ध्य स ध्यत – कष्टस ध्य य प्य
• लक्षि –
आच यू चरक के अिुस र –
“अनतस्थूलस्य त वद यूषोि सो जव परोध :
कृ च्छव्यव यत दौबूल्य दौगंध्यम स्वेदब ध :
क्षुधनतम रम वपप स नतयोगश्चेनत िवांत्यष्टौ दोष :” |
• आच यू व निट्ि के अिुस र –
1. अत्यथधक क्षुध वृद्थध
2. अत्यथधक तृष्ण
3. अत्यथधक स्वेद प्र दुि ूव
4. अल्पश्रम से श्व सकृ च्छत
5. अथधक नीांद आन
6. पररश्रम क क यू करने मे
कदठन ई
7. ज ड्यत
8. अल्प यु
9. अल्प बल
10. उत्स ह ह नन
11. शरीर मे दुगंध
12. गद्गद्त्व
• स्थोल्य ननम्न ष्स्थनतयों के द्व र पैद ककय
ज सकत है –
1. जीवनीय तत्वों की कमी
2. अांत:स्र वव ग्रांथथयों की ववकृ नत
3. कु पोषण
4. मधुमेह
5. उच्च रक्तच प
अतुः इन ष्स्थनतयों क स पेक्ष ननद न करके ही
थचककत्स प्र रांि करनी च दहए |
• स ध्य स ध्यत –
 यदद रोगी किज प्रकृ नत क है – कृ च्रस ध्य
/अस ध्य
 अांत:स्र वव ग्रांथथयों की ववकृ नत – कृ च्रस ध्य
 बीजस्वि व ,म तृवपतृजन्य त- प्र युः अस ध्य
 बलव न , सांयम युक्त, थचककत्सक के ननदेश म नने
व ल ,आह र-ववह र पर ननयांरण रखने व ल –
स ध्य
• उपद्रव –
योगर्ि कर मे वणणूत – स्थोल्य की उथचत समय पर थचककत्स नहीां करने पर यह अत्यांत
द रुण उपद्रव युक्त होकर अस ध्य हो ज त है |
1. ववसपू
2. िगन्दर
3. ज्वर
4. अनतस र
5. मेह अथव प्रमेह
6. अशू
7. श्लीपद
8. अपची
9. क मल
सुश्रुत ने प्रमेह वपडक ववद्रथध एवां व तववक र को िी स्थोल्य क उपद्रव म न है |
• चचकक्स भसद्ध ांत –
A. ननद न पररवजून
B. कषूण ,गुरु अपतपूण थचककत्स
C. सांशोधन थचककत्स -वमन,ववरेचन ,ननरुह बष्स्त
,कषूण नस्य
D. सांशमन थचककत्स
a) श रीररक एवां म नभसक व्य य म
b) व त-कफ न शक आह र –ववह र
c) मूर-पुरीष ववरेचनीय औषथध
.
• सांशमि चचकक्स –
1) रस /िस्म /वपष्टी- प रदिस्म, त्ररमूनतूरस, वड़व ष्गनरस
2) वटी- आरोगयवथधूनी,िेदनी,कु टकी
3) चूणू –त्ररफल , वच , पुष्करमूल, त्ररकटु
4) क्व थ –मुस्त दद,अष्गनमांथ, मह मांष्जष्ठ , फलत्ररक दद
5) तैल – त्ररफल द्य, मह सुगन्ध दद
6) लौह –ववडांग द्य ,त्र्यूष्ण द्य
7) गुगगुलु – नवक,मेदोहर
8) रस यन –भशल जतु, आमलकी,लौह
9) सिू – चव्य दी , त्र्यूष्ण द्य
10) क्ष र –एरांड,यव,पुननूव
11) स्वेदहर एवां दौगंन्ध्य न शक लेप –भशरीष दद ,व स दद ,हररतक्य दी
12) योग सन एवां प्र कृ नतक थचककत्स –सूयूनमस्क र ,सव ंग सन ,हल सन
मृनतक लेप ,त प सेवन अल्प म र में प्र कृ नतक आह र सेवन
• पथ्य पथ्य -
पथ्य अपथ्य
आह र ववह र आह र ववह र
पुर ि श ली
च वल
मूांग,कु ल्थ,यव,
कोदो ,अरहर
,मक्तक ,मसूर
,सषूप तैल
,च वल ,वप्रयतगु
,किु,नतक्तत,कष
य ,उटिोदक
,आवल |
चचांत ,श्रम
,र त्रत्रज गरि
,स्त्रीसेवि ,लांघि
,अपतपूि
,व्य य म
,धूपसेवि
,उबिि|
िवीि
श लीध तय ,गेंहू
,उड़द ,मल ई
,र बड़ी,अांड ,म
क्तखि ,र ब ,गुड़
,िोजि के
पश्च त अचधक
प िी पीि एवां
तैलअभ्यांग
करि |
शीतल जल से
स्ि ि
,ददव शयि
,सुखपूवूक सवूद
आर मद यक
त्रबस्तर पर
बेठि
,निष्श्चांतत |
क श्यू
• पररि ष –
“शुटकष्स्फगुदरग्रीवो धमिीज लसांततः
्वगष्स्थशेषोsनतकृ श: स्थूलपव ू
िरोमतः” |(च.सू.21/15)
आधुननक थचककत्स ववज्ञ न के अनुस र
गरीबी, कु पोषण एवां असांतुभलत आह र
क सेवन कृ शत के मुख्य क रण है |
• निद ि -
आह र जतय ववह र जतय अतय निद ि
a. रुक्ष अति
प ि
b. लांघि
c. प्रभमत शि
d. व तवधूक
द्रव्यों क
आह र सेवि
e. कष य रस क
अचधक सेवि
f. अ्यल्प म त्र
मे िोजि
a. मल मूत्र दद
वेगों को
रोकि
b. निद्र के वेग
को रोकि
c. र त्रत्र ज गरि
d. नि्य मैथुि
e. निरांतर
व्य य म
f. अनतअध्ययि
g. वृद्ध वस्थ
h. व नतक प्रकृ नत
क होि
i. निरांतर रोगी
होि
j. प्य स एवां
क्षुध क वेग
ध रि करि
a. अ्यचधक
श रीररक एवां
म िभसक
क यू
b. शोक ग्रस्त
c. क्रोध करि
d. िय ग्रस्त
रहि
e. धि इ्य दद
कक चचांत
f. सहज एवां
कु लज निद ि
• सांप्र ष्प्त –
“कष यअल्प शिप्रिनतभिरूपशोवषतो रस ध तु :
शरीरमििक्रम तिल्प्व ति प्रीि नत
तस्म दनतक श्यूिवनत” |(सु.सू.15/39)
• सांप्र ष्प्त घिक –
a. दोष –व त प्रध न
b. दूष्य –रस
c. अथधष्ठ न –सवू शरीर
d. स्रोतस –रसवह
e. स्रोतोंदुष्ष्ट प्रक र –ववम गूगमन
f. अष्गन ष्स्थनत –ववषम ष्गन
g. व्य थध स्वि व – नवीन –मृदु , जीणू – द रूण
h. स ध्य स ध्यत –स ध्य /कष्टस ध्य
• लक्षि –
“शुटकष्स्फगुदरग्रीवो धमिीज लसांततः
्वगष्स्थशेषोsनतकृ श: स्थूलपव ू िरोमतः” |(च.सू.21/15)
इनके अल व ननम्न लक्षण भमलते है –
1. व्य य म ,पररश्रम एवां आह र के प्रनत अननच्छ
2. आलस्य एवां थक न की ननरांतर प्रतीनत
3. उष्णत ,शीतत को सहन करनें मे असमथूत
4. मैथुन क्षमत मे कमी
5. प्र युः व त रोग से ग्रभसत रहन
• क श्यू क स पेक्ष निद ि –
I. कु पोषण जन्य क श्यू
II. शोष
III. ननम्न रक्तच प
IV. जीणू ज्वर
V. व तव्य थध
VI. अांत: स्र ववग्रांथथयों की ववकृ नत
• स ध्य स ध्यत –
 प्र युः स ध्य
 व त प्रकृ नत क रोगी – कृ च्रस ध्य
 स्वि व से दुबूल ,अनेक व्य थध से पीडड़त
अथव अांत :स्र वव ग्रष्न्थ की ववकृ नत से –
य प्य / अस ध्य
बीजदोष से - य प्य / अस ध्य
• उपद्रव –
आच यू चरक ने क श्यू मे ननम्नभलणखत उपद्रव होने क उल्लेख
ककय है –
1. प्लीह वृद्थध
2. क स
3. क्षय
4. श्व स
5. गुल्म
6. अशू
7. उदर रोग
8. ग्रहणी दोष
आच यू सुश्रुत ने िी प्लीह वृद्थध ,उदर वृद्थध ,अष्गनम ांद्य, गुल्म
,रक्तवपि आदद रोग के होने की सांिवन व्यक्त की है |
• चचकक्स भसद्ध ांत –
1. ननद न पररवजून
2. आवश्यक होने पर मृदु सांशोधन
3. बृांहण थचककत्स ,ध तुवधूक ,बलवधूक
,वृष्य एवां व जीकरण औषधीय प्रयोग
4. ववभिन्न तपूण योगो क प्रयोग
5. लघु एवां सांतपूक आह र क प्रयोग
सांशोधि चचकक्स मे –
1. ब ह्य एवां आभ्यांतर स्नेहन प्रयोग
2. अनुव सन बष्स्त ,बृांहण बष्स्त प्रयोग
3. सतत रूप से म र बष्स्त प्रयोग
4. बृांहण नस्य प्रयोग
• शमि चचकक्स –
1. रस /िस्म /वपटिी – क्षुध स गर रस,अजीणूकां टक रस ,ववजय रस ,
र मब णरस, प्रव ल िस्म
2. विी –थचरक दद ,चांद्रप्रि ,आरोगयवरधीनी, अष्गनतुांडी
3. चूिू –अश्वगांध ,आमलकी ,शत वरी ,वपप्पली
4. आसव- अररष्ट –बल ररष्ट,द्र क्ष सव ,अश्वगांध ररष्ट
5. घृत –तैल –अश्वगांध तैल ,त्ररफल , बल घृत
6. अवलेह /प क –च्यवनप्र श,बृह्म रस यन, आमलकअवलेह
7. एकल औषध - अश्वगांध ,शत वरी,बल ,दुगध ,घृत,भमश्री,म ाँस
,कौंच,ववद री ,आमलकी इत्य दद |
8. योग सि एवां प्र कृ नतक चचकक्स –शव सन, सुख सन ,वज्र सन
,प्र ण य म,योग स धन
प्र कृ नतक थचककत्स के रूप मे त जे फलों क रस एवां समुथचत पोषण करने
व ले आह र द्रव्यों क उपयोग करन च दहए |
प्रमेह
• व्यु्पवत्त –
‘प्र’+भमहक्षरणे +करणेधञ च “प्र” उपसगूक भमह
क्षरणे
निरुष्क्तत –
“प्रकषेण मेहनत क्षुरनत वीय ूददरनेन इनत
प्रमेह”
• प्रमेह पररि ष –
“प्रकषेि मेहनत इनत प्रमेह”
पय ूय –
मेह,मूत्र दोष,बहुमूत्रत ,प्रमीढ
‘आस्यसुखां स्वप्नसुखां दधीनन
ग्र म्यौदक नूपरस : पय ांभस नव न्नप नां गुड़
वैकृ तां च प्रमेह हेतु: कफकृ च्च सवूमच
||’(च.थच.६/४)
निद ि -
“गुरु
ष्स्नगद्ध म्ललवण न्यनतम रम
समश्नत म नवमन्नां च प नां च
ननद्र म स्य सुख नन च ||त्यक्त
व्य य मथचन्त न ां सांशोधनमकु वूत म च
|”(च. सू.१७/७८ -७९ )
• निद ि -
सांतपूक हेतु अपतपूक हेतु
आह रज ववह रज आह रज ववह रज
• अनतदचधसे
वि
• ग्र म्यौ
उदक
आिूप म ँस
सेवि
• इक्षु ववक र
सेवि
• मेद-
कफवधूक
आह र
• िवीि
अति ध तय
सेवि
• मद्यप ि
• आस्य सुख
• स्वप्ि सुख
• स्ि ि
्य ग
• व्य य म
्य ग
• ददव स्वप्ि
• आलस्य
• किु नतक्तत
• कष य रस
अनत सेवि
• कषूि
प्रयोग
• अिशि
• ववषम शि
• क म–क्रोध
–शोक –
िय-चचांत
• वमि-
ववरेचि-
आस्थ पि
अनत सेवि
• आतप अनत
सेवि
सांप्र ष्प्त -
स म न्य एवां ववभशष्ट सांप्र ष्प्त
के अांतगूत ब ाँट गय है –
१. स म न्य सांप्र ष्प्त के
अांतगूत –
•सहज
•कफ़ज
•वपत्तज
•व तज
कफ़ज -“मेदश्च म ाँसां च शरीरां च क्लेदां कफो बष्स्तगतुः
प्रदूष्यां
वपत्तज -करोनत मेह न च समूदीणूमुष्ठौस्त नेव वपिां पररदूष्य
च वप
व तज -क्षीणेषु दोषेष्ववकृ ष्य ध तून च सन्दूष्य मेह नच
कु रुतेsननश्च ||”(च.थच.६/५-६)
सहज -प्रमेहोंsिुषांङीि म्
||(च.सू.२५/४०)
• ववभशटि सांप्र ष्प्त –
“सवू एव प्रमेह स्तु क लेि प्रनतकु वूतः
मधुमेह्वम य ष्तत तद sस ध्य िवष्तत दह” ||
पूवू वणणूत ननद नों के सेवन से शरीर मे श्लेष्म ,वपि एवां म ाँस
की वृद्थध अथधक रूप मे हो ज ती है |
तथ रुकी हुई व यु कु वपत होकर ओज के स थ मूर शय मे
प्रववष्ट हो ज ती है |
इस प्रक र कष्टक री मधुमेह रोग की उत्पवि होती है |
"बहवबद्धां मेदों म ँस शरीरजक्तलेद:शुक्रां शोणितां वस |
मज्ज लभसक रसश्चौज सेव्य त इनत दूटय ववशेष: ||”
प्रमेह के दोष-
दूष्य-
-बहुद्रव: श्लेटम दोष
ववशेष: ||(च.नि.4/6)
• दोष – द्रव श्लेष्म प्रध न त्ररदोष, अप न-व्य नव यु
• दूटय – अबद्ध मेदों म ाँस शरीरजक्लेद:शुिां शोणणतां वस ,मज्ज लभसक
रस ओज
• स्त्रोतस – मूरवह स्रोतस , मेदोवह स्रोतस
• स्त्रोतोंदुष्टि –सांग ,अनतप्रवृवि
प्रक र
• सांच र – रस यनी द्व र
• अचधटठ ि – बष्स्त ,सवूशरीर
• उद्िव – अन्तुःकोष्ठ (आमपक्व शयोंत्थ )
• अष्नि – ध त्वष्गनम ांद्य
• आम- आम अन्नरस
• व्य चध स्वि व –थचरक री
• स ध्य स ध्यत –य प्य/अस ध्य
सांप्र ष्प्त घटक
-
• िेद -
1. उदकमेह
2. इक्षु
वभलक
मेह
3. स ांद्र मेह
4. स ांद्रप्रस द
मेह
5. शुक्तल मेह
6. शुक्र मेह
7. शीत मेह
8. भसकत
मेह
9. शिे मेह
10. आल ल
मेह
1. क्ष र मेह
2. क ल मेह
3. िील मेह
4. रक्तत मेह
5. मांष्जटठमे
ह
6. ह ररद्र मेह
वस मेह
मज्ज मेह
हष्स्त मेह
मधु मेह
१० कफ़ज ६ वपत्तज ४ व तज
आच यू चरक के अिुस र
सुश्रुत चरक व निट्ि िेल
 सहज
 अप
थ्य
निभम
त्तज
 स्थूल
प्रमेही
 कृ श
प्रमेही
 ध तु
क्षय
जतय
 दोष
वृत
जतय
 प्रकृ
नतज
 स्वकृ
त
प्रमेह रोग के अतय
िेद-
के शनख नत वृद्थध :
शीतवप्रयत्वांगलत लुपशोषो म धुयूत स्येकरप दद ह
:िववष्यतो मेहगदस्यरूपां मूरेsभिध वष्न्त
वपपीभलक श्च ||(च.थच.६/१३-१४)
पूवू
रूप-
दाँत दीन ां मल ढ्यत्वां प्र गुपां
प णणप दयो: | द ह थचक्कणत
देहे तृटस्व द्व स्यां च ज यते
||(म धव निद ि ३३/५)
-“स म तयां लक्षिां तेष ां प्रिूत ववलमूत्रत : ||”(अ.ह्र.नि.१०/७)
आच यू सुश्रुत ने सहज एवां अपथ्य ननभमिज प्रमेह के
ननम्न लक्षण वणणूत ककए है –
१. सहज प्रमेह (hereditary)-
• कृ शत
• रुक्षत
• अल्प शी
• वपप स युक्त
• पररसरणशील
रूप
२. अपथ्यनिभमत्तज (acquired )-
• स्थूलत
• बि शी
• ष्स्नगध शरीर
• शय्य सन
• स्वप्नशील
वपिज :षड्
य प्य –
ववषमकियत्व त
स ध्य स ध्यत -
 श्लेटमज प्रमेह के उपद्रव –
“मक्षक्षकोपसपूणम लस्यां म ांसोंपचय: प्रनतश्य य:
शैथथल्य रोचक ववप क :
कफप्रसेकच्छददूननद्र क सश्व सश्चेनत” |
 वपत्तजतयप्रमेह के उपद्रव –
“वृषणयोरवदरणां बष्स्तिेदो मेढ़्रतोदो िदद
शूलष्म्लक ज्वर तीस र रोचक वमथु: पररधूम यनां
द हो मूच्छ ू वपप स ननद्र न श: प ांडुरोग:
पीतववण्मूरनेरत्वां” |
 व तज प्रमेह के उपद्रव –
“ह्रद्ग्रहो लौल्यमनिद्र स्तम्ि: कां प: शूलां
बद्धपुरीष्वां” |
प्रमेह
उपद्रव
“स्थूल: प्रमेही बलव निहैक: कृ शस्तथैक:
पररदुबूलश्च
सांबृांहिे तत्र कृ शस्य क यां सांशोधिां
दोषबल चधकस्य” || (च.चच.६/१५)
• सांशमि चचकक्स
( 1 ) ननद न पररवजून
( 2 ) व्य य म
( 3 ) रूक्ष अन्नप न
( 4 ) औषध व्यवस्थ
प्रमेह क चचकक्स सूत्र –
• अथू (स धि रदहत) प्रमेही की ववशेष चचकक्स
 त्रबन जूत व छ त के सूयू के नीचे भिक्ष वृवि पर रहकर टहले
|
 मुनन व सांतों के सम न इांदद्रयो को वशच मे रखकर १०० योजन
य अथधक य र करे |
 स ाँव ,ननव र ख कर आांवल ,कवपत्थ ,नतन्दुक,अश्मांतक के फलों
क सेवन करे |
 गोमूर,गोबर क सेवन करते हुए ग यों के स थ रहे
 ब्र म्हणके अनतररक्त प्रमेह रोगी हल चल ए य कू प खोदें |
 ब्र म्हण रोगी शील एवां उछवृवि पर रहकर बृह्मरथ अथ ूतच वेदों
क पठन-प ठन करें |
 कृ श व्यष्क्त की सद रक्ष करें उससें हल न चलव ए |
 इस तरह उपयुूक्त थचककत्स क प्रयोग करने से प्रमेही एक वषू
मे रोग मुक्त हो सकत है |
• बीस प्रमेह चचकक्स औषध योग-
1 . उदक मेह - हरीतकी , कट्फल , मुस्तक , लोध्र कष य य प ररज त कष य दें ।
2 . इक्षु मेह - प ठ , ववडांग , अजुून , धन्वन्त्वकच कष य य ननम्ब कष य दें ।
3 . स तद्र मेह - हररद्र , द रुहररद्र , तगर , ववडांग कष य य सप्तपणू कष य दें ।
. 4 . स तद्रप्रस द मेह - कदम्ब , श ल , अजुून , दीप्यक ( यव नी ) कष य य सप्तपणू
कष य दें ।
5 . शुक्तल मेह - द रुहररद्र , ववडांग , खददर , धव कष य दें ।
6 . शुक्र मेह - देवद रु , कु ष्ठ , अगरु , चन्दन कष य य दूव ू , शैव ल , प्लव , करांज ,
कसेरु कष य य अजुून - चन्दन कष य दें ।
7 . शीत मेह - द रुहररद्र , अष्गनमन्थ , त्ररफल , प ठ कष य य प ठ - गोक्षुर कष य
दें ।
8 . शिे मेह - प ठ , मूव ू , गोक्षुर क्व थ य त्ररफल - गुडुची कष य दें ।
9 . ल ल मेह - यव नी , उशीर , हरीतकी , गुडुची कष य य त्ररफल - आरगवध कष य
दें ।
10 . भसकत मेह - चव्य , अिय , थचरक , सप्तपणू क्व थ य ननम्ब क्व थ दें ।
11 . क्ष र मेह - त्ररफल क्व थ दें ।
12 . क ल मेह - योग्रोध दद गण कष य दें ।
13 . िील मेह - स लसर दद गण य अश्वत्य कष य दें ।
14 . लोदहत मेह – गुडूची , नतन्दुक , क श्मरी , खजूर क्व थ दें ।
15 . ह ररद्र मेह - र जवृक्ष क्व थ दें ।
16 . मष्ञ्जटठ मेह - मांष्जष्ठ - चन्दन क्व थ दें । 
17 . वस मेह – अष्गनमांथ , भशशप कष य दें
18 . मज्ज मेह - अमृत , थचरक , कु श , कु टज , प ठ , कु टकी
क्य थ दें ।
19 . हष्स्त मेह - प ठ , भशरीष , पूव ू , नतन्दुक क्य थ दें ।
20 . मधुमेह / क्षौद्रमेह - कदर , खददर ,
कु छ प्रमुख योग -
• रस - बसन्तकु सुम कर रस, बृहद् वनेखर रस, त रके श्वर रस,
अपूवूम भलनी बसन्त रस ,हररशांकर रस
• विी - भशव गुदटक , भशल जत्व दद, इन्द्रवटी, त्ररकटु गुदटक ,चन्द्रप्रि
• चूिू -न्यग्रोध द्य चूणू ,त्ररफल
• क्तव थ- फलत्ररक दीक्व थ,ववडांग दद,त्ररफल दद क्व थ
• आसव / अररटि –लोध्रसव, मध्व सव,दन्त्य सव
• घृत / तैल- ध न्वन्तर घृत, द डडम द्य घृत, त्ररकण्टक द्य घृत,
त्ररफल दद घृत, प्रमेहभमदहर तैल
• लेह- श लस र दद लेह, कु श वलेह
• उदक-स रोदक,मधुदक,त्ररफल रस,सीधू,म ध्वीक
• रस यि प्रयोग- आमलकी, भशल जतु,गुगगुलु,लशुन
• सुश्रुत िे प्रमेह के भलए भशल जतु कल्प , तुवरक कल्प
• एकल औषध - यथ वश्यक पल न्डु ,क रवेल्लक, ननम्ब, जम्बु
मेषश्रृङ्गी, त्रबल्ब, ववजयस र, त्रबम्बी, ल मज्जक, हररद्र
प्रमेह पीड़डक -
• उपेक्षय ऽस्य ज यतते वपडक ः सप्त द रुि ः ।
म ांसलेटवक शेषु ममूस्ववप च सांचधषु ॥
शर ववक कच्छवपक ज भलिी सषूपी तथ ।
अलजी ववित ख्य च ववद्रधी चेनत सप्तमी ॥
" ( च . सू . 17 / 82 - 83 ) . . .
ववद्रचधक बुधैः ॥ " ( सु . नि . 6 / 15 -
19 )
प्रमेह मुष्क्तत लक्षि-
“प्रमेदहिो यद मूत्रमवपष्च्छलमि ववलम ् ।
ररशदां नतक्ततकिुकां तद ऽऽरोनयां प्रचक्षते ॥” "
( सु . चच . 12 / 20 )
पथ्य अपथ्य
आह र
मूग , अतसी
, चि , स ँव
,पूए सैंधव
ज ांगल म ांस ,
पिोल , करेल
ग जर ,
शलजम
ववह र
चांक्रमि,लघु
व्य य म, रुक्ष
उद्वत्तूि
,स्ि ि,क्रीड
,कु श्ती
आह र
आिूप म स ,
त म्बुल उड़द ,
अध्यशि ,
ववरुद्ध शि ,
कफ मेदवधूक
, आह र मधुर
- अम्ल -
लवि रस
आदद ।
ववह र
ददव शयि
,अनतमैथुि
,स्वेदि
,धूम्रप ि
,वेगध रि
,रक्ततमोक्षिां
प्रमेह
Chikitsa siddhnt and management of mans evam medo vaha strotas

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Chikitsa siddhnt and management of mans evam medo vaha strotas

  • 1. DR.FALGUNI JOSHI MD.SCHOLAR DR.RAVI SHARMA (HOD),DR.INDUMATI SHARMA (ASS.PROF.).DR.SITA RAJORIA,DR.RUHI ZAHIR,DR.PRADEEP MEENA (LECT.) PG.DEPT. OF KAYA CHIKITSA M.M.M. GOVT. AYURVED COLLEGE ,UDAIPUR Chikitsa sutra and management of mans vaha and medo vaha strotas
  • 2. म ांसवह स्रोतस के मूल - • म ांसवह न ां च स्रोतस ां स्न युमूूलां त्वकच च | म ांसवह स्रोतों क मूल स्न यु और त्वकच है|
  • 3. • म ांसवह स्रोतों दुष्टि हेतु- अभिटयांदीनि िोज्य नि स्थूल नि च गुरूणि च | म ांसवह नि दुटयष्तत िुक्त्व च स्वपत ां ददव ||च.वव. ५१५ अभिष्यांदी, स्थूल, गुरु िोज्य पद थो के ब द तत्क ल ददन में सोने से म ांसवह स्रोत दुष्ट होते है |
  • 4. म ांसवह स्रोतस के मूल व दुष्टि के लक्षि - • म ांसवहे द्वे, तयोमूूलम् स्ि यु्वूचां रक्ततवह श्च धमतय: | तश्च ववद्धस्य श्वयथुम ांस शोष: भसर ग्रांथयो मरिां च ||सु.श . म ांसवह स्रोत दो है | मूल स्न यु, त्वच एवां रक्तवह धमननयॉ है | उनक वेध होने से सूजन, म ांसशोष , भशर ग्रांथथ और मृत्यु आदद लक्षण होते है |
  • 5. मेदोवह स्रोतस के मूल - • मेदोवह ि ां स्रोतस ां वृक्तकौ मूलां वप वहिां च | (च.वव.५) मेदोवह स्रोतों क मूल वृक्क और वप वहन है| मेदोवह स्रोतों दुष्टि के हेतु – अव्य य मददव स्वप्ि तमेध्य ि ां च नत िक्षि त ् | मेदोवह नि दुटयष्तत वरुण्य श्च नतसेवि त ् ||  व्य य म न करने से  ददव स्वप्न करने से  अथधक चबी व ले म ांस क सेवन करने से  अथधक मद्यप न करने से मेदोवह स्रोतस दुष्ट हो ज ते है |
  • 6. मेदोवह स्रोतस के मूल एवां दुष्ष्ट के लक्षण- मेदोवहे द्वे तयोमूूलां कटी वृक्कौ च तश्च ववद्धश्च स्वेद गमनां ष्स्नगध ांगत त लुशोष: स्थूलत शोफ: वपप स ां च ||सु.श .९ मेदोवह स्रोत दो हैं मूल कटी व वृक्क हैं
  • 7. इनके ववद्ध होने से-  स्वेद प्रवृवि अथधक होन  अांगो में ष्स्नगधत होन  त लू क सूखन  शरीर स्थूलत आन  सूजन आन  वपप स अनुिूनत इत्य दद लक्षण उत्पन्न होते है|
  • 8. म ांसवह एवां मेदोवह स्रोत दुष्ष्ट से ननम्न रोग उत्पन्न होते हैं | - गण्डम ल अपची -अबुूद गलगांड - -स्थौल्य म ांसशोष - क श्यू -प्रमेह -
  • 9. अपची आच यू सुश्रुत के अिुस र –  मेद तथ कफ के क रण उत्पन्न  मेद एवां कफ हन्वष्स्थ, कक्ष ,अक्षक ष्स्थ तथ ब हु की ग्रांथथयों मे एवां मन्य और गले मे सांथचत होकर ग्रष्न्थ रोग को उत्पन्न करते है|  यह ग्रष्न्थ गोल,ष्स्थर ,चौड़ी ,थचकनी और अल्प पीड़ युक्त होती है |  इस प्रक र आांवले की अष्स्थ के आक र की अनेक ग्रांथथयों के उत्पन्न होने से एवां मछभलयों के अांडों के ज ल समूह के सदृश अन्य छोटी-छोटी एवां त्वच के सम न वणू की अनेक ग्रांथथयों के उपथचत होने से इन्हे अपची कह ज त है |
  • 10. • “चयप्रकष ूदपची” यह ग्रष्न्थ खुजली युक्त एवां अल्प वेदन व ली होती है | फू टने पर यह स्र व बह ती है | “सुदुस्तरों वषूगि िुबांधी”
  • 11. अपची थचककत्स • जीमूतक एवां कोश वती के फल एवां दांती- द्रवांती और नीशोथ की जड़ के कल्क से भसद्ध ककय गय घृत बढ़ी हुई अपची को नष्ट करत है | • प्रग ढ़ वमि – निगुांडी ,ज ती ,सुगांधब ल के उटि क्तव थ मे देवद ली कल्क ,मधु और सेंध िमक क प्रयोग | • श खोंटक स्वरस भसद्ध तैल से नस्यववरेचन |
  • 12. • अममूज ग्रष्न्थ मे क्ष र ,अष्गन ,शस्र किय क ववध न | • अष्निकमू – “प ष्ष्णूप्रनत द्वे दश च ांगुल नी भमत्वेन्द्रबष्स्त पररवर्ज़यू धीम न | ववद यू मत्स्य ण्डननि नन वैद्यो ननष्कृ ष्य ज ल न्यनलां ववदध्य तच ||”(सू.थच. 18)
  • 13. • शस्रकिय – “आ गुल्फकि ूत ् सुभमतस्य जितो स्तस्य टिि गां खुड़क द्वविज्य | घोिजुूवेध: सुरर जबस्तेदह्व क्षक्षम त्रम ्वपरे वदांनत” || मणिबतधोपररटि द्व कु य ूद्रेख त्रयां भिषक् | अँगुल्यततररतां सम्यगपचीि ां निवृत्तये ||
  • 14. • िोज ने प्रथम कक्ष - वांक्षण दद स्थ नों में अपची होन भलख है तथ वही म ल के रूप होती है तब उसे गण्डम ल कह है । .......”अपची कण्ठमतय सु कक्ष वक्षिसष्तधषु त ां तु म ल कृ नत ववद्य त ् कण्ठहद्धिुसष्तधषु गण्डम ल ां ववज िीय दपचीतुल्यलक्षि म ्’' ।। गण्डम ल
  • 15. • चरक ने गले के प श्वू में एक ग्रष्न्थ क होन गलगण्ड तथ अनेक गण्डों के होने से गण्डम ल क होन भलख है । यथ – “मेद : कफ च्छोणितसञ्चयो्थो गण्डस्य ( गलस्य ) प वें गलगण्ड एकः । स्य द् गण्डम ल बहुभिश्च गण्डैदीप्त िले यूनि बल ष्तवते च । स ध्य : स्मृत ः पीिसप श्वूशूलक सज्वरच्छददूयुत स््वस ध्य :‘’ ।
  • 16. • एलोपेथी मत से अपची -Chronic tuberculous lymphadenitis / Scrofula  इसक प्रध न क रण क्षय य जीव णु म न गय है  इस रोग में शरीर की लसीक ग्रष्न्थय ाँ ( Lymphatic glands ) ववकृ त होकर बढ़ने लगती हैं , पकती हैं और फू ट कर पूय बह ती हैं कफर नई पकती फू टती हैं ऐसे वषों तक यह रोग वपण्ड नहीां छोड़त है|
  • 17. अबुूद  “ग त्रप्रदेशे क्तवचचदेव दोष : सममूष््छूत म ांसमभिप्रदूटय |  वृतां ष्स्थरम मांदरुजम मह ततमिल्पमूलां चचरवृद्धयप कम् |  कु वूष्तत म ांसोंपचयां तु शोफां तदबुूदां श स्त्रववदो वदांनत |”
  • 18. ि प कम य ष्तत कफ़अचधक ्व मेदोंअचधक्व च्च ववशेषस्तु | कफ की अचधकत और मेद की ववशेष अचधकत से दोनों दोष के ष्स्थर होने से ग्रष्तथ रूप होिे से स्व ि ववक तौर पर अबुूद पकते िहीां है | अबुूद मे प क ि होिे क क रि
  • 19. िेद • व तेन वपिेन कफे न च वप रक्तेन म ांसेन च मेदस च | लक्षि – तज़्ज यते तस्य च लक्षि नि ग्रतथे: समि नि सद िवष्तत ||
  • 21. रक्त बुूद - भमथ्य आह रववह र से दुष्ट व त दद दोष के द्व र रक्तत तथ भसर ओ को पीड़ड़त तथ सांकु चचत करके प क को प्र प्त होती है | इससे स्त्र वयुक्तत तथ म ँस के अांकु रों से व्य प्त एवां शीघ्र वृद्चध से युक्तत म ांसवपांड को उ्सेध युक्तत कर देते हैं | इिसे निरांतर दूवषत रक्तत बहत रहत है
  • 22. रक्त बुूद अस ध्य होत है |अबुूद रोग से पीडडत व्यष्क्त रक्तक्षयरूपी उपद्रव से पीडड़त होने से प ांडु वणू हो ज त है |
  • 24. म ांस बुूद  निद ि –  1.मुष्ष्ट प्रह र आदद से शरीर प्रदेश पर आघ त पहुचने पर वह ां क म ाँस दूवषत हो ज त है | 2.जो व्यष्क्त अथधक म ाँस ख ने मे तत्पर रहत है ,तथ ष्जसक म ाँस दूवषत हो ज त है ,उसके देह मे म ाँस बुूद पैद होत है |  लक्षि-  यह म ाँस स्वल्प पीड़क री ,स्पशू मे थचकन ,स्व ि ववक वणूयुक्त ,नहीां पकने व ल ,पत्थर के सम न कड तथ ष्स्थर शोफ पैद करत है|  यह अस ध्य होत है |
  • 25. अस ध्यत –  जो बहुत बहत हो  जो ममू स्थ न पर पैद हुआ हो  जो न स य रस-रक्त स्रोतस य अन्न वह मह स्रोतस मे उत्पन्न हुआ हो  जो ष्स्थर हो |
  • 26. अध्यबुूद तथ द्ववरबुूद अध्यबुूद- यज़्ज यते अतयत ् खलु पूवूज ते ज्ञेयम | द्ववरबुूद- यद् द्वतद्वज तां युगपत ् क्रम द्व | ये दोिों अस ध्य होते है |
  • 27. अबुूद की थचककत्स • व तज अबुूद की चचकक्स –  कू ष्म ण्ड ,एरव रुक ,न ररयल ,थचरौंजी और अरांड बीज के चूणू तथ दूध ,घी और उष्ण जल के द्व र उपन ह |  म ाँस एवां वेश्व र से भसद्ध प्रध न उपन ह क प्रयोग |  न डी स्वेद,शृांग के द्व र अनेक ब र रक्त ननक ले |  व तघ्न द्रव्यों के क्व थ ,दूध तथ क ांजी से भसद्ध शतप क त्ररवृत स्नेह वपल वे |
  • 28. • वपत्तज अबुूद की चचकक्स –  मृदु स्वेद ,उपन ह और ववरेचन देन दहतकर |  अबुूद से रक्त ननक लकर अमलत स,गोजी ,सोमलत और नीशोथ के लेप क उपयोग करे |  नीशोथ ,थगरीह्र्, अांजनकी ,मुनक्क और यवनतक्त के रस मे मुलेठी कल्क के द्व र सम्यगच भसद्ध घृत वपल ए |
  • 29. • कफ़ज अबुूद की चचकक्स –  इसमे पहले वमि करव कर शुद्ध हुए रोगी को आल बू के द्व र रक्त ननक लकर ऊपर और नीचे दोनों म गों से दोषों को हरने व ले द्रव्यों क कल्क बन कर उसके ऊपर लेप करे | कबूतर और प र वत की बीट ,क ांसे की क भलख,शुि,कभलह री और क क दन की जड़ गोमूर मे पीस कर लेप करे अथव क्ष रयुक्त गोमूर क लेप लग ए |
  • 30. ननष्प व ,वपण्य क ,कु लत्थकल्क मे प्रचुर म ाँस ,दथध तथ मस्तु भमल कर अबुूद पर लेप करे ष्जसमे मष्क्खय ाँ आकर वही बैठे और कृ भम उत्पन्न करे | कृ भम उस ि ग को ख ते है | जब अबुूद क अवभशष्ट ि ग बच ज त है तो उसमे अष्निकमू ,लेखि के ब द ककय ज त है |
  • 31. • अल्प मूल व ले अबुूद मे – र ांग ,त ांब ,सीस य लोहे कक पट्टी से च रों और से ब ांध कर ,रोगी के प्र णों कक रक्ष करते हुए ,थचककत्सक- क्ष र,अष्नि,शस्त्र कमू क अनेक ब र उपयोग करे |
  • 32. मेदोंबुूद चचकक्स  स्वेदन ककए गए मेदों अबुूद को थचर कर शुद्ध करे |  रक्त स्र व बांद होने पर शीघ्र सी दे |  कफर उसपे हल्दी, गृहधूम, लोध्र ,पटन्गङ ,मैनशील और हरत ल के चूणू मे पय ूप्त मधू भमल कर व्रण पर लेप लग ए |  व्रण के शुद्ध होने पर करांज तैल क प्रयोग करे |
  • 33. “सशेषदोष णण दह योअबुूद नन करोनत तस्य शु पुनिूवष्न्त तस्म दशेष णण समुद्धरेिु हांयुुः सशेष णण यथ दह वष्न्ि: |”
  • 34. गलगांड • निद ि – व त और कफ के द्व र ये दोनों दोष गले और मज्ज क आश्रय करके स्वयां के लक्षणों से युक्त गलगांड रोग को उत्पन्न करते है |(सु.नन .11)
  • 35. • िेद – 1.व तज 2.कफज 3.मेदोज मधुकोष:- गलगांड एवां चतुथूक ज्वर क व्य थध स्वि व से वपिज िेद नहीां होत |
  • 36. गलगांड क स म तय लक्षि- नि.11)– ननबद्ध:श्वयथुयूस्य मुष्कवल्लम्बते गले | मह न च व यदद व िस्व गलगांड तम ददशेत च |
  • 37. • व नतक गलगांड लक्षि – a) सूई चुिोने जैसी पीड़ से युक्त b) क ली भसर ओ से व्य प्त c) वणू – क ल / अरुण d) स्पशू – अत्यांत थचकन (कु छ क ल पश्च त बढ़ ज ने और चबी युक्त हो ज ने से ),वेदन रदहत e) वृद्थध –देर से f) प क –कद थचत g) मुख –ववरस h) त लुगले – शोष
  • 38. • कफज गलगांड के लक्षि – a) ष्स्थर b) अल्प पीड़ ,आक र मे बड c) वणू – त्वच के सम न ,तेज खुजली युक्त d) स्पशू – शीत e) वृद्थध –देर से f) प क – देर से ,पकने के समय कु छ पीड़ g) मुख – मीठ h) गलत लु – लेप जैस बन रहत है
  • 39. • मेदोज गलगांड के लक्षि – a) बुरी गांध व ल ,पीड़ रदहत ,अथधक खुजली b) वणू –प ांडु c) स्पशू –थचकन तथ मुल यम d) प्रलांबतेअल बूवदल्पमूलों e) देह नुरूपक्षयवृद्थधयुक्त: f) मुख – थचपथचप g) गलत लु –अस्पष्ट शब्द
  • 40. • व तज गलगांड की चचकक्स –  प्रथम व तघ्न द्रव्यों के पिों के उष्ण क्व थ , क ांजी , अष्टववध मूर ,दूध ,तैल और म ांसरस के द्व र न डी स्वेद करे |  स्वेदन युक्त गांड से रक्त ननक लकर व्रण क शोधन कर, पुलदटस बांधन करन च दहए |  थगलोय, नीम ,हाँसपदी ,कु टज ,वपप्पली ,बल , अनतबल और देवद रु से भसद्ध तैल क ननत्य प न करे |
  • 41. • कफ़ज गलगांड की चचकक्स –  स्वेद और उपन ह से स्वेदन करे ,  रक्त मोक्षण,  वपप्पल्य दद गण के क्व थ और कल्क से भसद्ध तैल मे प ांचों नमक भमल कर वपल न च दहए |  वमन ,भशरोववरेचन ,वैरेचननक धूम क प्रयोग करे  ककसी प्रक र क प क होने पर पक्व व्रण कक ि नत थचककत्स करनी च दहए |
  • 42. • मेदज गलगांड की चचकक्स –  ष्स्नगध ककए हुए रोगी मे भसर वेधन(अांससांथध ) करन च दहए |  स लसर दीगण के वृक्षों क स रच गोमूर मे घोलकर ,प्र तुः वपल न च दहए |  अथव ग्रष्न्थ को चीरकर ,मेद ब हर ननक ल देन च दहए और व्रण को सी देन च दहए |  व्रण पर तैल लग कर स लसर दीगण और गोबर कक र ख लग नी च दहए |  व्रण धोने के भलए त्ररफल क्व थ तथ ग ढ़ बांधि यव िोजि क ननत्य प्रयोग करन च दहए |
  • 43. • अस ध्य गलगांड –  कष्ट से स ांस लेते हुए  मृदु एवां दुबूल शरीर व ले  एक वषू से ज्य द पुर ने  अरोचक से पीडड़त  क्षीण हुए  भिन्न स्वर व ले रोगी को थचककत्स मे वष्जूत करन च दहये |
  • 45. स्थोल्य • निरुष्क्तत – “स्थूल पररबृांहिे” ( अमरकोश ) “स्थूलस्य ि व स्थोल्यां” ( शब्दकल्पद्रुम ) • पररि ष – मेदोंम ांसनतवृद्ध्व च्चलभसक गुदरस्ति: अयथोउपचयों्स हों िरोनतस्थूलउच्यते ||(च.सू.21)
  • 46. • निद ि-  गुरु ,ष्स्िनध आह र क अ्यचधक सेवि  अ्यचधक म त्र मे आह र क सेवि करि  अध्यशि  म दहष दुनध ,घृत क अचधक सेवि  वपटिति सेवि  आिुप म ँस सेवि  िवीि अति क अनतसेवि  अ्यचधक मददर प ि  व रुिी मद्य क अनत सेवि  अव्य य म  ददव स्वप्ि  अव्यव य  निष्श्चांतत  अ्यचधक प्रसतित  सुख क रक आसि  अनतनिद्र  सहज एवां कु लज क रि  बीज स्वि व  स्थूल म तृवपतृजतय त | आह र जतय ववह र जतय अतय निद ि
  • 47. ववववध प्रक र के निद िों क सेवि आम रस कक उ्पवत्त मेदों ध तु की अनत वृद्चध स्थोल्य मेदों ध तु से स्त्रोतसअवरोध के वल मेदों ध तु वृद्थध व यु की अनतवृद्थध वृद्ध व यु क कोष्ठ मे प्रवेश जठर ष्गन की अनतवृद्थध पुनुः पुनुः आह र गृहण करने कक इच्छ ननरांतर मेद ध तु वृद्थध पुनुः आम रस क ननम ूण मेद ध तु वृद्थध स्थोल्य सांप्र ष्प्त चक्र –
  • 48. • सांप्र ष्प्त घिक –  दोष – त्ररदोष  दूष्य –मेद  अथधष्ठ न –सवू शरीर ववशेषकर ष्स्िग, ननतांि,उदर ,स्तन  स्रोतस –मेदोंवह  स्रोतस दुष्ष्ट –सांग ,ववम गूगमन  अष्गन ष्स्थनत –प्र रांि मे अष्गनम न्द्य, पश्च त मे तीव्रअष्गन  व्य थध स्वि व – द रुण  स ध्य स ध्यत – कष्टस ध्य य प्य
  • 49. • लक्षि – आच यू चरक के अिुस र – “अनतस्थूलस्य त वद यूषोि सो जव परोध : कृ च्छव्यव यत दौबूल्य दौगंध्यम स्वेदब ध : क्षुधनतम रम वपप स नतयोगश्चेनत िवांत्यष्टौ दोष :” |
  • 50. • आच यू व निट्ि के अिुस र – 1. अत्यथधक क्षुध वृद्थध 2. अत्यथधक तृष्ण 3. अत्यथधक स्वेद प्र दुि ूव 4. अल्पश्रम से श्व सकृ च्छत 5. अथधक नीांद आन 6. पररश्रम क क यू करने मे कदठन ई 7. ज ड्यत 8. अल्प यु 9. अल्प बल 10. उत्स ह ह नन 11. शरीर मे दुगंध 12. गद्गद्त्व
  • 51. • स्थोल्य ननम्न ष्स्थनतयों के द्व र पैद ककय ज सकत है – 1. जीवनीय तत्वों की कमी 2. अांत:स्र वव ग्रांथथयों की ववकृ नत 3. कु पोषण 4. मधुमेह 5. उच्च रक्तच प अतुः इन ष्स्थनतयों क स पेक्ष ननद न करके ही थचककत्स प्र रांि करनी च दहए |
  • 52. • स ध्य स ध्यत –  यदद रोगी किज प्रकृ नत क है – कृ च्रस ध्य /अस ध्य  अांत:स्र वव ग्रांथथयों की ववकृ नत – कृ च्रस ध्य  बीजस्वि व ,म तृवपतृजन्य त- प्र युः अस ध्य  बलव न , सांयम युक्त, थचककत्सक के ननदेश म नने व ल ,आह र-ववह र पर ननयांरण रखने व ल – स ध्य
  • 53. • उपद्रव – योगर्ि कर मे वणणूत – स्थोल्य की उथचत समय पर थचककत्स नहीां करने पर यह अत्यांत द रुण उपद्रव युक्त होकर अस ध्य हो ज त है | 1. ववसपू 2. िगन्दर 3. ज्वर 4. अनतस र 5. मेह अथव प्रमेह 6. अशू 7. श्लीपद 8. अपची 9. क मल सुश्रुत ने प्रमेह वपडक ववद्रथध एवां व तववक र को िी स्थोल्य क उपद्रव म न है |
  • 54. • चचकक्स भसद्ध ांत – A. ननद न पररवजून B. कषूण ,गुरु अपतपूण थचककत्स C. सांशोधन थचककत्स -वमन,ववरेचन ,ननरुह बष्स्त ,कषूण नस्य D. सांशमन थचककत्स a) श रीररक एवां म नभसक व्य य म b) व त-कफ न शक आह र –ववह र c) मूर-पुरीष ववरेचनीय औषथध .
  • 55. • सांशमि चचकक्स – 1) रस /िस्म /वपष्टी- प रदिस्म, त्ररमूनतूरस, वड़व ष्गनरस 2) वटी- आरोगयवथधूनी,िेदनी,कु टकी 3) चूणू –त्ररफल , वच , पुष्करमूल, त्ररकटु 4) क्व थ –मुस्त दद,अष्गनमांथ, मह मांष्जष्ठ , फलत्ररक दद 5) तैल – त्ररफल द्य, मह सुगन्ध दद 6) लौह –ववडांग द्य ,त्र्यूष्ण द्य 7) गुगगुलु – नवक,मेदोहर 8) रस यन –भशल जतु, आमलकी,लौह 9) सिू – चव्य दी , त्र्यूष्ण द्य 10) क्ष र –एरांड,यव,पुननूव 11) स्वेदहर एवां दौगंन्ध्य न शक लेप –भशरीष दद ,व स दद ,हररतक्य दी 12) योग सन एवां प्र कृ नतक थचककत्स –सूयूनमस्क र ,सव ंग सन ,हल सन मृनतक लेप ,त प सेवन अल्प म र में प्र कृ नतक आह र सेवन
  • 56. • पथ्य पथ्य - पथ्य अपथ्य आह र ववह र आह र ववह र पुर ि श ली च वल मूांग,कु ल्थ,यव, कोदो ,अरहर ,मक्तक ,मसूर ,सषूप तैल ,च वल ,वप्रयतगु ,किु,नतक्तत,कष य ,उटिोदक ,आवल | चचांत ,श्रम ,र त्रत्रज गरि ,स्त्रीसेवि ,लांघि ,अपतपूि ,व्य य म ,धूपसेवि ,उबिि| िवीि श लीध तय ,गेंहू ,उड़द ,मल ई ,र बड़ी,अांड ,म क्तखि ,र ब ,गुड़ ,िोजि के पश्च त अचधक प िी पीि एवां तैलअभ्यांग करि | शीतल जल से स्ि ि ,ददव शयि ,सुखपूवूक सवूद आर मद यक त्रबस्तर पर बेठि ,निष्श्चांतत |
  • 57. क श्यू • पररि ष – “शुटकष्स्फगुदरग्रीवो धमिीज लसांततः ्वगष्स्थशेषोsनतकृ श: स्थूलपव ू िरोमतः” |(च.सू.21/15) आधुननक थचककत्स ववज्ञ न के अनुस र गरीबी, कु पोषण एवां असांतुभलत आह र क सेवन कृ शत के मुख्य क रण है |
  • 58. • निद ि - आह र जतय ववह र जतय अतय निद ि a. रुक्ष अति प ि b. लांघि c. प्रभमत शि d. व तवधूक द्रव्यों क आह र सेवि e. कष य रस क अचधक सेवि f. अ्यल्प म त्र मे िोजि a. मल मूत्र दद वेगों को रोकि b. निद्र के वेग को रोकि c. र त्रत्र ज गरि d. नि्य मैथुि e. निरांतर व्य य म f. अनतअध्ययि g. वृद्ध वस्थ h. व नतक प्रकृ नत क होि i. निरांतर रोगी होि j. प्य स एवां क्षुध क वेग ध रि करि a. अ्यचधक श रीररक एवां म िभसक क यू b. शोक ग्रस्त c. क्रोध करि d. िय ग्रस्त रहि e. धि इ्य दद कक चचांत f. सहज एवां कु लज निद ि
  • 59. • सांप्र ष्प्त – “कष यअल्प शिप्रिनतभिरूपशोवषतो रस ध तु : शरीरमििक्रम तिल्प्व ति प्रीि नत तस्म दनतक श्यूिवनत” |(सु.सू.15/39)
  • 60. • सांप्र ष्प्त घिक – a. दोष –व त प्रध न b. दूष्य –रस c. अथधष्ठ न –सवू शरीर d. स्रोतस –रसवह e. स्रोतोंदुष्ष्ट प्रक र –ववम गूगमन f. अष्गन ष्स्थनत –ववषम ष्गन g. व्य थध स्वि व – नवीन –मृदु , जीणू – द रूण h. स ध्य स ध्यत –स ध्य /कष्टस ध्य
  • 61. • लक्षि – “शुटकष्स्फगुदरग्रीवो धमिीज लसांततः ्वगष्स्थशेषोsनतकृ श: स्थूलपव ू िरोमतः” |(च.सू.21/15) इनके अल व ननम्न लक्षण भमलते है – 1. व्य य म ,पररश्रम एवां आह र के प्रनत अननच्छ 2. आलस्य एवां थक न की ननरांतर प्रतीनत 3. उष्णत ,शीतत को सहन करनें मे असमथूत 4. मैथुन क्षमत मे कमी 5. प्र युः व त रोग से ग्रभसत रहन
  • 62. • क श्यू क स पेक्ष निद ि – I. कु पोषण जन्य क श्यू II. शोष III. ननम्न रक्तच प IV. जीणू ज्वर V. व तव्य थध VI. अांत: स्र ववग्रांथथयों की ववकृ नत
  • 63. • स ध्य स ध्यत –  प्र युः स ध्य  व त प्रकृ नत क रोगी – कृ च्रस ध्य  स्वि व से दुबूल ,अनेक व्य थध से पीडड़त अथव अांत :स्र वव ग्रष्न्थ की ववकृ नत से – य प्य / अस ध्य बीजदोष से - य प्य / अस ध्य
  • 64. • उपद्रव – आच यू चरक ने क श्यू मे ननम्नभलणखत उपद्रव होने क उल्लेख ककय है – 1. प्लीह वृद्थध 2. क स 3. क्षय 4. श्व स 5. गुल्म 6. अशू 7. उदर रोग 8. ग्रहणी दोष आच यू सुश्रुत ने िी प्लीह वृद्थध ,उदर वृद्थध ,अष्गनम ांद्य, गुल्म ,रक्तवपि आदद रोग के होने की सांिवन व्यक्त की है |
  • 65. • चचकक्स भसद्ध ांत – 1. ननद न पररवजून 2. आवश्यक होने पर मृदु सांशोधन 3. बृांहण थचककत्स ,ध तुवधूक ,बलवधूक ,वृष्य एवां व जीकरण औषधीय प्रयोग 4. ववभिन्न तपूण योगो क प्रयोग 5. लघु एवां सांतपूक आह र क प्रयोग
  • 66. सांशोधि चचकक्स मे – 1. ब ह्य एवां आभ्यांतर स्नेहन प्रयोग 2. अनुव सन बष्स्त ,बृांहण बष्स्त प्रयोग 3. सतत रूप से म र बष्स्त प्रयोग 4. बृांहण नस्य प्रयोग
  • 67. • शमि चचकक्स – 1. रस /िस्म /वपटिी – क्षुध स गर रस,अजीणूकां टक रस ,ववजय रस , र मब णरस, प्रव ल िस्म 2. विी –थचरक दद ,चांद्रप्रि ,आरोगयवरधीनी, अष्गनतुांडी 3. चूिू –अश्वगांध ,आमलकी ,शत वरी ,वपप्पली 4. आसव- अररष्ट –बल ररष्ट,द्र क्ष सव ,अश्वगांध ररष्ट 5. घृत –तैल –अश्वगांध तैल ,त्ररफल , बल घृत 6. अवलेह /प क –च्यवनप्र श,बृह्म रस यन, आमलकअवलेह 7. एकल औषध - अश्वगांध ,शत वरी,बल ,दुगध ,घृत,भमश्री,म ाँस ,कौंच,ववद री ,आमलकी इत्य दद | 8. योग सि एवां प्र कृ नतक चचकक्स –शव सन, सुख सन ,वज्र सन ,प्र ण य म,योग स धन प्र कृ नतक थचककत्स के रूप मे त जे फलों क रस एवां समुथचत पोषण करने व ले आह र द्रव्यों क उपयोग करन च दहए |
  • 68. प्रमेह • व्यु्पवत्त – ‘प्र’+भमहक्षरणे +करणेधञ च “प्र” उपसगूक भमह क्षरणे निरुष्क्तत – “प्रकषेण मेहनत क्षुरनत वीय ूददरनेन इनत प्रमेह”
  • 69. • प्रमेह पररि ष – “प्रकषेि मेहनत इनत प्रमेह” पय ूय – मेह,मूत्र दोष,बहुमूत्रत ,प्रमीढ
  • 70. ‘आस्यसुखां स्वप्नसुखां दधीनन ग्र म्यौदक नूपरस : पय ांभस नव न्नप नां गुड़ वैकृ तां च प्रमेह हेतु: कफकृ च्च सवूमच ||’(च.थच.६/४) निद ि - “गुरु ष्स्नगद्ध म्ललवण न्यनतम रम समश्नत म नवमन्नां च प नां च ननद्र म स्य सुख नन च ||त्यक्त व्य य मथचन्त न ां सांशोधनमकु वूत म च |”(च. सू.१७/७८ -७९ )
  • 71. • निद ि - सांतपूक हेतु अपतपूक हेतु आह रज ववह रज आह रज ववह रज • अनतदचधसे वि • ग्र म्यौ उदक आिूप म ँस सेवि • इक्षु ववक र सेवि • मेद- कफवधूक आह र • िवीि अति ध तय सेवि • मद्यप ि • आस्य सुख • स्वप्ि सुख • स्ि ि ्य ग • व्य य म ्य ग • ददव स्वप्ि • आलस्य • किु नतक्तत • कष य रस अनत सेवि • कषूि प्रयोग • अिशि • ववषम शि • क म–क्रोध –शोक – िय-चचांत • वमि- ववरेचि- आस्थ पि अनत सेवि • आतप अनत सेवि
  • 72. सांप्र ष्प्त - स म न्य एवां ववभशष्ट सांप्र ष्प्त के अांतगूत ब ाँट गय है – १. स म न्य सांप्र ष्प्त के अांतगूत – •सहज •कफ़ज •वपत्तज •व तज
  • 73. कफ़ज -“मेदश्च म ाँसां च शरीरां च क्लेदां कफो बष्स्तगतुः प्रदूष्यां वपत्तज -करोनत मेह न च समूदीणूमुष्ठौस्त नेव वपिां पररदूष्य च वप व तज -क्षीणेषु दोषेष्ववकृ ष्य ध तून च सन्दूष्य मेह नच कु रुतेsननश्च ||”(च.थच.६/५-६) सहज -प्रमेहोंsिुषांङीि म् ||(च.सू.२५/४०)
  • 74. • ववभशटि सांप्र ष्प्त – “सवू एव प्रमेह स्तु क लेि प्रनतकु वूतः मधुमेह्वम य ष्तत तद sस ध्य िवष्तत दह” || पूवू वणणूत ननद नों के सेवन से शरीर मे श्लेष्म ,वपि एवां म ाँस की वृद्थध अथधक रूप मे हो ज ती है | तथ रुकी हुई व यु कु वपत होकर ओज के स थ मूर शय मे प्रववष्ट हो ज ती है | इस प्रक र कष्टक री मधुमेह रोग की उत्पवि होती है |
  • 75. "बहवबद्धां मेदों म ँस शरीरजक्तलेद:शुक्रां शोणितां वस | मज्ज लभसक रसश्चौज सेव्य त इनत दूटय ववशेष: ||” प्रमेह के दोष- दूष्य- -बहुद्रव: श्लेटम दोष ववशेष: ||(च.नि.4/6)
  • 76. • दोष – द्रव श्लेष्म प्रध न त्ररदोष, अप न-व्य नव यु • दूटय – अबद्ध मेदों म ाँस शरीरजक्लेद:शुिां शोणणतां वस ,मज्ज लभसक रस ओज • स्त्रोतस – मूरवह स्रोतस , मेदोवह स्रोतस • स्त्रोतोंदुष्टि –सांग ,अनतप्रवृवि प्रक र • सांच र – रस यनी द्व र • अचधटठ ि – बष्स्त ,सवूशरीर • उद्िव – अन्तुःकोष्ठ (आमपक्व शयोंत्थ ) • अष्नि – ध त्वष्गनम ांद्य • आम- आम अन्नरस • व्य चध स्वि व –थचरक री • स ध्य स ध्यत –य प्य/अस ध्य सांप्र ष्प्त घटक -
  • 77. • िेद - 1. उदकमेह 2. इक्षु वभलक मेह 3. स ांद्र मेह 4. स ांद्रप्रस द मेह 5. शुक्तल मेह 6. शुक्र मेह 7. शीत मेह 8. भसकत मेह 9. शिे मेह 10. आल ल मेह 1. क्ष र मेह 2. क ल मेह 3. िील मेह 4. रक्तत मेह 5. मांष्जटठमे ह 6. ह ररद्र मेह वस मेह मज्ज मेह हष्स्त मेह मधु मेह १० कफ़ज ६ वपत्तज ४ व तज आच यू चरक के अिुस र
  • 78. सुश्रुत चरक व निट्ि िेल  सहज  अप थ्य निभम त्तज  स्थूल प्रमेही  कृ श प्रमेही  ध तु क्षय जतय  दोष वृत जतय  प्रकृ नतज  स्वकृ त प्रमेह रोग के अतय िेद-
  • 79. के शनख नत वृद्थध : शीतवप्रयत्वांगलत लुपशोषो म धुयूत स्येकरप दद ह :िववष्यतो मेहगदस्यरूपां मूरेsभिध वष्न्त वपपीभलक श्च ||(च.थच.६/१३-१४) पूवू रूप- दाँत दीन ां मल ढ्यत्वां प्र गुपां प णणप दयो: | द ह थचक्कणत देहे तृटस्व द्व स्यां च ज यते ||(म धव निद ि ३३/५)
  • 80. -“स म तयां लक्षिां तेष ां प्रिूत ववलमूत्रत : ||”(अ.ह्र.नि.१०/७) आच यू सुश्रुत ने सहज एवां अपथ्य ननभमिज प्रमेह के ननम्न लक्षण वणणूत ककए है – १. सहज प्रमेह (hereditary)- • कृ शत • रुक्षत • अल्प शी • वपप स युक्त • पररसरणशील रूप
  • 81. २. अपथ्यनिभमत्तज (acquired )- • स्थूलत • बि शी • ष्स्नगध शरीर • शय्य सन • स्वप्नशील
  • 82. वपिज :षड् य प्य – ववषमकियत्व त स ध्य स ध्यत -
  • 83.  श्लेटमज प्रमेह के उपद्रव – “मक्षक्षकोपसपूणम लस्यां म ांसोंपचय: प्रनतश्य य: शैथथल्य रोचक ववप क : कफप्रसेकच्छददूननद्र क सश्व सश्चेनत” |  वपत्तजतयप्रमेह के उपद्रव – “वृषणयोरवदरणां बष्स्तिेदो मेढ़्रतोदो िदद शूलष्म्लक ज्वर तीस र रोचक वमथु: पररधूम यनां द हो मूच्छ ू वपप स ननद्र न श: प ांडुरोग: पीतववण्मूरनेरत्वां” |  व तज प्रमेह के उपद्रव – “ह्रद्ग्रहो लौल्यमनिद्र स्तम्ि: कां प: शूलां बद्धपुरीष्वां” | प्रमेह उपद्रव
  • 84. “स्थूल: प्रमेही बलव निहैक: कृ शस्तथैक: पररदुबूलश्च सांबृांहिे तत्र कृ शस्य क यां सांशोधिां दोषबल चधकस्य” || (च.चच.६/१५) • सांशमि चचकक्स ( 1 ) ननद न पररवजून ( 2 ) व्य य म ( 3 ) रूक्ष अन्नप न ( 4 ) औषध व्यवस्थ प्रमेह क चचकक्स सूत्र –
  • 85. • अथू (स धि रदहत) प्रमेही की ववशेष चचकक्स  त्रबन जूत व छ त के सूयू के नीचे भिक्ष वृवि पर रहकर टहले |  मुनन व सांतों के सम न इांदद्रयो को वशच मे रखकर १०० योजन य अथधक य र करे |  स ाँव ,ननव र ख कर आांवल ,कवपत्थ ,नतन्दुक,अश्मांतक के फलों क सेवन करे |  गोमूर,गोबर क सेवन करते हुए ग यों के स थ रहे  ब्र म्हणके अनतररक्त प्रमेह रोगी हल चल ए य कू प खोदें |  ब्र म्हण रोगी शील एवां उछवृवि पर रहकर बृह्मरथ अथ ूतच वेदों क पठन-प ठन करें |  कृ श व्यष्क्त की सद रक्ष करें उससें हल न चलव ए |  इस तरह उपयुूक्त थचककत्स क प्रयोग करने से प्रमेही एक वषू मे रोग मुक्त हो सकत है |
  • 86. • बीस प्रमेह चचकक्स औषध योग- 1 . उदक मेह - हरीतकी , कट्फल , मुस्तक , लोध्र कष य य प ररज त कष य दें । 2 . इक्षु मेह - प ठ , ववडांग , अजुून , धन्वन्त्वकच कष य य ननम्ब कष य दें । 3 . स तद्र मेह - हररद्र , द रुहररद्र , तगर , ववडांग कष य य सप्तपणू कष य दें । . 4 . स तद्रप्रस द मेह - कदम्ब , श ल , अजुून , दीप्यक ( यव नी ) कष य य सप्तपणू कष य दें । 5 . शुक्तल मेह - द रुहररद्र , ववडांग , खददर , धव कष य दें । 6 . शुक्र मेह - देवद रु , कु ष्ठ , अगरु , चन्दन कष य य दूव ू , शैव ल , प्लव , करांज , कसेरु कष य य अजुून - चन्दन कष य दें । 7 . शीत मेह - द रुहररद्र , अष्गनमन्थ , त्ररफल , प ठ कष य य प ठ - गोक्षुर कष य दें । 8 . शिे मेह - प ठ , मूव ू , गोक्षुर क्व थ य त्ररफल - गुडुची कष य दें । 9 . ल ल मेह - यव नी , उशीर , हरीतकी , गुडुची कष य य त्ररफल - आरगवध कष य दें । 10 . भसकत मेह - चव्य , अिय , थचरक , सप्तपणू क्व थ य ननम्ब क्व थ दें ।
  • 87. 11 . क्ष र मेह - त्ररफल क्व थ दें । 12 . क ल मेह - योग्रोध दद गण कष य दें । 13 . िील मेह - स लसर दद गण य अश्वत्य कष य दें । 14 . लोदहत मेह – गुडूची , नतन्दुक , क श्मरी , खजूर क्व थ दें । 15 . ह ररद्र मेह - र जवृक्ष क्व थ दें । 16 . मष्ञ्जटठ मेह - मांष्जष्ठ - चन्दन क्व थ दें । 17 . वस मेह – अष्गनमांथ , भशशप कष य दें 18 . मज्ज मेह - अमृत , थचरक , कु श , कु टज , प ठ , कु टकी क्य थ दें । 19 . हष्स्त मेह - प ठ , भशरीष , पूव ू , नतन्दुक क्य थ दें । 20 . मधुमेह / क्षौद्रमेह - कदर , खददर ,
  • 88. कु छ प्रमुख योग - • रस - बसन्तकु सुम कर रस, बृहद् वनेखर रस, त रके श्वर रस, अपूवूम भलनी बसन्त रस ,हररशांकर रस • विी - भशव गुदटक , भशल जत्व दद, इन्द्रवटी, त्ररकटु गुदटक ,चन्द्रप्रि • चूिू -न्यग्रोध द्य चूणू ,त्ररफल • क्तव थ- फलत्ररक दीक्व थ,ववडांग दद,त्ररफल दद क्व थ • आसव / अररटि –लोध्रसव, मध्व सव,दन्त्य सव • घृत / तैल- ध न्वन्तर घृत, द डडम द्य घृत, त्ररकण्टक द्य घृत, त्ररफल दद घृत, प्रमेहभमदहर तैल • लेह- श लस र दद लेह, कु श वलेह • उदक-स रोदक,मधुदक,त्ररफल रस,सीधू,म ध्वीक • रस यि प्रयोग- आमलकी, भशल जतु,गुगगुलु,लशुन • सुश्रुत िे प्रमेह के भलए भशल जतु कल्प , तुवरक कल्प • एकल औषध - यथ वश्यक पल न्डु ,क रवेल्लक, ननम्ब, जम्बु मेषश्रृङ्गी, त्रबल्ब, ववजयस र, त्रबम्बी, ल मज्जक, हररद्र
  • 89. प्रमेह पीड़डक - • उपेक्षय ऽस्य ज यतते वपडक ः सप्त द रुि ः । म ांसलेटवक शेषु ममूस्ववप च सांचधषु ॥ शर ववक कच्छवपक ज भलिी सषूपी तथ । अलजी ववित ख्य च ववद्रधी चेनत सप्तमी ॥ " ( च . सू . 17 / 82 - 83 ) . . . ववद्रचधक बुधैः ॥ " ( सु . नि . 6 / 15 - 19 )
  • 90. प्रमेह मुष्क्तत लक्षि- “प्रमेदहिो यद मूत्रमवपष्च्छलमि ववलम ् । ररशदां नतक्ततकिुकां तद ऽऽरोनयां प्रचक्षते ॥” " ( सु . चच . 12 / 20 )
  • 91. पथ्य अपथ्य आह र मूग , अतसी , चि , स ँव ,पूए सैंधव ज ांगल म ांस , पिोल , करेल ग जर , शलजम ववह र चांक्रमि,लघु व्य य म, रुक्ष उद्वत्तूि ,स्ि ि,क्रीड ,कु श्ती आह र आिूप म स , त म्बुल उड़द , अध्यशि , ववरुद्ध शि , कफ मेदवधूक , आह र मधुर - अम्ल - लवि रस आदद । ववह र ददव शयि ,अनतमैथुि ,स्वेदि ,धूम्रप ि ,वेगध रि ,रक्ततमोक्षिां प्रमेह